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29 अक्टूबर को सिर्फ बनेगा ही नहीं बल्कि बदलेगा इतिहास, पटरी पर दौड़ेगी बिना इंजन वाली पहली भारतीय ट्रेन
16 कोचों वाली ये ट्रेन शताब्दी की तुलना में सफर के समय को 15% तक घटा सकती है. इस फुल एसी ट्रेन को भारत में ही महज़ 18 महीनों में तैयार किया गया है. इसे इस हिसाब से बनाया गया है कि लोगों को ड्राइवर के केबिन के भीतर का सबकुछ नज़र आए.
![29 अक्टूबर को सिर्फ बनेगा ही नहीं बल्कि बदलेगा इतिहास, पटरी पर दौड़ेगी बिना इंजन वाली पहली भारतीय ट्रेन Made in India: First engineless train, 'train 18' is to go trail on 29 October and will replace Shatabadi Express 29 अक्टूबर को सिर्फ बनेगा ही नहीं बल्कि बदलेगा इतिहास, पटरी पर दौड़ेगी बिना इंजन वाली पहली भारतीय ट्रेन](https://static.abplive.com/wp-content/uploads/sites/2/2018/10/26104416/train18.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
नई दिल्ली: 29 तारीख को न सिर्फ इतिहास बनने वाला है बल्कि इतिहास बदलने भी वाला है. इस दिन भारत की पहली बिना इंजन वाली ट्रेन को पटरियों पर इसलिए दौड़ाया जाएगा ताकि इसका सफल परीक्षण किया जा सके. इससे इतिहास तो बनेगा ही लेकिन इतिहास बदलेगा भी. दरअसल, ख़बर है कि 'ट्रेन 18' नाम की ये ट्रेन 30 साल पुरानी शताब्दी की वारिस साबित होगी और अगर ऐसा होता है तो इतिहास बदल जाएगा.
ये ट्रेन सेल्फ-प्रोपल्सन मॉड्यूल से चलती है जिसकी वजह से इसे इंजन की कोई दरकार नहीं है. इसकी ख़ासियत ये है कि ये ट्रेन 160 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से सफर कर सकती है. वहीं, इसमें जो एडवांस तकनीक लगी है उसकी वजह से ये बिना क्षण गवाए रफ्तार पकड़ सकती है.
16 कोचों वाली ये ट्रेन शताब्दी की तुलना में सफर के समय को 15% तक घटा सकती है. इस फुल एसी ट्रेन को भारत में ही महज़ 18 महीनों में तैयार किया गया है. इसे इस हिसाब से बनाया गया है कि लोगों को ड्राइवर के केबिन के भीतर का सबकुछ नज़र आए.
चेन्नई स्थित इंटीग्रल कोच फैक्ट्री (आईसीएफ) के मैनेजर सुधांशु मनी ने कहा, "प्रोटोटाइप (मूलरूप) बनाने में 100 करोड़ रुपए का ख़र्च आया है लेकिन बाद में ये कीमत घट जाएगी." उन्होंने कहा कि 29 अक्टूबर को इसे पटरी पर उतारा जाएगा और फिर तीन से चार दिनों तक फैक्ट्री के बाहर इसका परीक्षण किया जाएगा. इसके बाद इसे अनुसंधान डिजाइन और मानक संगठन को आगे के परीक्षण के लिए सौंप दिया जाएगा.
वैसे 'ट्रेन 18' को सितंबर में ही लॉन्च किया जाना था लेकिन लगातार किए गए बदलावों की वजह से इसमें देरी हुई. इस ट्रेन की ख़ासियत को मसझने के लिए आप मेट्रो ट्रेनों की संरचना को देख सकते हैं जिसमें डब्बे एक दूससे से जुड़े होते हैं और इंजन गायब होता है. न्यूज़ एजेंसी आईएएनएस के हवाले से ख़बर है कि एक बार इस ट्रेन के लॉन्च हो जाने के बाद शताब्दी ट्रेनों की जगह इसे चलाया जाएगा.
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