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NDA Vs INDIA: JDU से लेकर एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार तक ने बदला खेमा...जानें पिछले कुछ सालों का इतिहास

Lok Sabha Election: नीतीश को भी सत्ता में रहने का शौक है, इसलिए जब तक सरकार का गठन न हो जाए तब तक यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि वह किस खेमे में रहेंगे.

Lok Sabha Election 2024: एक तरफ कर्नाटक में इंडिया महागठबंधन की बैठक हुई. वहीं दूसरी ओर देश की राजधानी दिल्ली में बीजेपी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने भी बैठक की. आगामी लोकसभा चुनाव में सत्तापक्ष की ओर से तो एनडीए का पीएम चेहरा तय है. वहीं विपक्ष में अभी तक कुछ भी तय नहीं है. एनडीए की तर्ज पर 'इंडिया' अभी भी नेतृत्वहीन है. वैसे, कांग्रेस ने पीएम पद पर रुख साफ करते हुए कह दिया है कि हमें कुर्सी का लालच नहीं है. इसके बाद विपक्ष में पीएम चेहरे के बगैर चुनाव लड़ने का निर्णय लिया गया है. 

दोनों गठबंधन में कई दल इधर से उधर
माना जाता है कि राजनीति में कोई भी परमानेंट न तो दुश्मन होता है और न ही दोस्त. जैसी परिस्थिति और लाभ दिखता है वैसा निर्णय दल के नेता लेते हैं. अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में कई मजबूत दल ऐसे हैं जो पहले यूपीए में थे, लेकिन अब वह एनडीए का हिस्सा बन गए हैं. वहीं, जो पिछली बार एनडीए में थे वह इस बार इंडिया महागठबंधन में हैं. दलों में संख्या की बात की जाए तो इसमें भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए का पलड़ा भारी है. एनडीए में बीजेपी को मिलाकर कुल दलों की संख्या 39 है. वहीं पूर्व में यूपीए और अब इंडिया महागठबंधन में कुल दलों की संख्या 26 है, दलों की संख्या के मामले में भी एनडीए बढ़त पर है. इसमें एक दल एक सीट का अंतर कर सकता है. 

ये दल यूपीए से आए एनडीए में
देखा जाए तो गठबंधन के लिहाज से यूपीए फायदे की स्थिति में नजर आ रहा है. पिछली बार यूपीए में मजबूत साथी के रूप में शामिल शिवसेना के दो टुकड़े हो गए हैं. जिसमें सत्ताधारी एकनाथ शिंदे गुट इस बार एनडीए के साथ आ चुका है. इसके अलावा महाराष्ट्र से ही एक और मजबूत दल एनसीपी शरद पवार जो कांग्रेस के मजबूत सहयोगी थे, उनको भी बड़ा झटका लगा है. उनके भतीजे अजित पवार भी इस बार उनसे अलग होकर एनडीए के साथ आ गए हैं. इसके अलावा जीतनराम मांझी भी चिराग पासवान के पीछे-पीछे एनडीए की शरण में हैं.
 
जेडीयू एनडीए छोड़कर इंडिया गठबंधन में
जहां तक बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए की बात है तो उन्हें सबसे बड़ा झटका नीतीश कुमार की जेडीयू से मिला है. नीतीश की जेडीयू को बीजेपी के बाद एनडीए में सर्वाधिक 16 सीटें मिली थीं. हालांकि, नीतीश को भी सत्ता में रहने का शौक है, इसलिए जब तक सरकार का गठन न हो जाए तब तक यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि वह किस खेमे में रहेंगे. इंडिया गठबंधन की जीत के बाद नीतीश को प्रधानमंत्री नहीं बनाया गया तो फिर से एनडीए के खेमे में चले जाएं, इस बात की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता. 

नीतीश के लिए ममता बनेंगी मुसीबत
पिछली बार टीएमसी यानी ममता बनर्जी किसी दल में शामिल नहीं हुईं थीं. उन्होंने अकेले चुनाव लड़ते हुए कुल 24 सीटें हासिल की थीं. ममता के बाद यूपीए की सहयोगी द्रमुक (DMK) ही एकमात्र ऐसी पार्टी थी जो टीएमसी के समकक्ष 24 सीटों तक पहुंची थी. ममता के जुड़ने से निश्चित रूप से विपक्ष में मजबूती आई है. इसके अलावा आम आदमी पार्टी (आप) भी सरकार के निर्माण में अपना आंशिक योगदान दे सकती है. अगर ममता की पार्टी अपना पिछला प्रदर्शन दोहराने में सफल होती है तो तय मानिए नीतीश कुमार राह में वह रोड़ा बन सकती है. 

ये दल भी हैं महत्वपूर्ण
चुनाव में अभी समय है इसलिए ममता के मन में वास्तव में क्या है यह जानना मुश्किल है. इसके अलावा पिछले चुनाव में 22 सीटें जीतने वाले वाईएसआरसीपी का रुख भी देखने वाला होगा. वाईएसआरसीपी ने पिछली बार अकेले चुनाव लड़ा था. इस बार अंत में वह किसके साथ जाते हैं, यह देखने वाली बात होगी. इसी तरह उत्तर प्रदेश में मायावती का मन भी अभी तक किसी तरफ नहीं झुका है. पिछले चुनाव में भी मायावती की पार्टी बीएसपी ने 10 सीटें जीती थीं. इस बार भी उनका रोल अहम होगा. इसी तरह पिछले चुनाव में स्वतंत्र रूप से लड़ने वाली बीजेडी ने भी 12 सीटें हासिल की थीं. इस बार चुनाव में इनका किरदार भी अहम भूमिका निभाएगा.

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