GST में मंदिर पर टैक्स और चर्च-मस्जिद को छूट का वायरल सच

नई दिल्ली: देश में जीएसटी लागू हुए चार दिन हो चुके हैं. सरकार लगातार लोगों को जीएसटी को लेकर जागरुक कर रही है. सरकार हर रोज भ्रम दूर करने की कोशिश कर रही है लेकिन जीएसटी को लेकर नए-नए दावों की बाढ़ आई हुई है.
जीएसटी को लेकर सोशल मीडिया पर कई चौंकाने वाले दावे किए जा रहे हैं. सोशल मीडिया पर ऐसा ही मैसेज वायरल हो रहा है और इस मैसेज ने में भी हैरान करने वाला दावा किया जा रहा है.
क्या है जीएसटी को लेकर वायरल दावा ?
सोशल मीडिया पर लोग कह रहे हैं कि देश में जीएसटी के नाम पर जो ऐतिहासिक बदलाव हुआ है उसमें मंदिर और मस्जिद के बीच भेदभाव किया गया है. वायरल मैसेज में लिखा, ''या तो मुगल ही हिंदुओं से जजिया वसूलते थे या अब मोदी वसूलेंगे. जितने भी देवस्थान बोर्ड हैं वहां जो कोई एक हजार रुपए से ज्यादा का चढ़ावा देगा सरकार उस चढ़ावे मंदिर से टैक्स वसूल करेगी. इस तरह देश के दो बड़े मंदिर तिरुपति बालाजी और वैष्णोदेवी मंदिर जीएसटी के दायरे में आ गए हैं.''
क्या है वायरल दावे का सच? एबीपी न्यूज़ ने वायरल दावे की पड़ताल शुरू की. पड़ताल में हमें देश के वित्त मंत्रालय की तरफ से किए गए ये तीन ट्वीट मिले जिसमें सरकार ने ऐसे दावों पर ध्यान ना देने की अपील की थी.
सरकार ने अपने बयान में कहा, ''हम लोगों से अपील करते हैं कि वो सोशल मीडिया पर इस तरह की अफवाहें ना फैलाएं. ये पूरी तरह गलत है. सरकार ने धर्म के आधार पर जीएसटी में धर्म के आधार पर किसी तरह का भेदभाव नहीं किया गया है.''
आपको बता दें कि किसी भी धार्मिक संस्थान पर जीएसटी का कोई प्रावधान नहीं है. धार्मिक संस्थानों को मिलने वाले चंदे को आय नहीं माना गया है. इसलिए न उस पर आयकर लगता है न कोई सेल्स टैक्स या सर्विस टैक्स. धार्मिक संस्थान अपने उपयोग के लिए जो सामान खरीदते हैं उस पर किसी आम खरीददार की तरह जीएसटी देना होगा.
इसलिए मंदिर मस्जिद या चर्च के नाम पर सोशल मीडिया पर जो दावे किए जा रहे हैं उन पर ध्यान ना दें. ये पूरी तरह से गलत और निराधार हैं. एबीपी न्यूज़ की पड़ताल में मंदिर मस्जिद के नाम पर जीएसटी के सांप्रदायिक भेदभाव वाला दावा झूठा साबित हुआ है.
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