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हमारा संविधान: कैसे हुआ भारत के संविधान का निर्माण, पढ़ें- पूरी कहानी आसान शब्दों में

Constitution of India: कैसे बना था भारत का संविधान ? कितना समय लगा था. आइए जानते हैं सबकुछ..

Constitution of India: संविधान देश की वह किताब है जो समाज के आखिरी तबके पर खड़े व्यक्ति को भी यह अधिकार देता हैं उसके साथ हर क्षेत्र में समानता का बर्ताव हो. आज संविधान दिवस है. आज ही के दिन साल 1949 में देश के संविधान का मसौदा तैयार हुआ था. ऐसे में आइए जानते हैं कि आखिर भारत का संविधान बना कैसे. इसकी निर्माण की पूरी प्रक्रिया पर प्रकाश डालते हैं.

कैसे बना संविधान

296 चुने हुए लोग, लगभग 3 साल का समय, 12 सत्र और 167 बैठकों के बाद देश को मजबूत करने वाला एक संविधान तैयार हुआ था. इसके बनते ही भारत धर्म, जाति, क्षेत्र, भाषा में बंटा हुआ भूभाग नहीं बल्कि एक संप्रभुता संपन्न राष्ट्र बना. संविधान महज एक किताब नहीं है, भारत की आत्मा है. संविधान देश का सर्वोच्च कानून है. हमारी इस ख़ास सीरीज का मकसद है कि देश का हर नागरिक इस सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज को जान सके. इसके हर पन्ने में दर्ज अपने अधिकारों को सरल भाषा में समझ सके. सबसे पहले इस सवाल का जवाब जान लेते हैं कि आखिर संविधान है क्या?

संविधान है क्या

संविधान वो ग्रंथ है, जो सरकार, प्रशासन और व्यवस्था के तमाम अंगों को कामकाज की शक्ति देता है, और उनका दायरा भी तय करता है. यानी देश कैसे चलेगा, सरकार किस तरह से काम करेगी, व्यवस्था का हर अंग कैसे काम करेगा, ये संविधान से तय होता है. संविधान के महत्व को समझने के लिए आप जरा सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट से सरकार के फैसलों को बदले जाने या रद्द किए जाने के मामलों को याद करें. कोर्ट ऐसा इसलिए करता है क्योंकि सरकार, संसद या राज्य विधानसभा का कोई भी फैसला या कानून संविधान का उल्लंघन करने वाला नहीं हो सकता. मतलब देश में जो कुछ भी होगा, संविधान के मुताबिक होगा.

संविधान निर्माण कैसे हुआ

भारतीय संविधान के निर्माण की बात करें तो यह हम सभी जानते हैं कि दुनिया में जब से शासन की व्यवस्था है, तब से शासन के नियम तय किए जाते हैं. भारत के सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद और अथर्ववेद में सामान्य लोगों की सभा और वरिष्ठ जनों की समिति के जरिए शासन-प्रशासन के काम की व्यवस्था का ज़िक्र है. कौटिल्य के अर्थशास्त्र, पाणिनी के अष्टाध्यायी के साथ ही ऐतरेय ब्राह्मण, मनुस्मृति जैसे कई ग्रन्थों में शासन की व्यवस्था, उसके अलग-अलग अंगों के अधिकार जैसी बातों का ब्यौरा है. अशोक के शिलालेख भी एक तरह से शासन व्यवस्था का ही बखान करते हैं.

आजादी के आंदोलन के दौरान ज़्यादातर बड़े स्वतंत्रता सेनानी कानून के जानकार थे. उन्होंने महसूस किया कि भारत में शासन व्यवस्था के लिए नियम बनाने की जरूरत है. वो चाहते थे कि शासन व्यवस्था के नियम तय करने के लिए भारत के लोगों की एक संविधान सभा का गठन हो. अंग्रेज सरकार इसके लिए सहमत नहीं थी.1935 में अंग्रेजों ने मांग को शांत करने के लिए अपनी तरफ से गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट बनाया. लेकिन कांग्रेस ने इसका ये कहकर विरोध किया कि इसे भारत के लोगों ने नहीं बनाया है.

आखिरकार, दूसरे विश्वयुद्ध के बाद जब भारत की आजादी की संभावनाएं बढ़ने लगीं, तब संविधान सभा का गठन किया गया. इस संविधान सभा में पहले 389 चुने हुए सदस्य थे, जो देश विभाजन के बाद 296 हो गए. ये सदस्य देश की अलग-अलग असेंबली से चुनकर आए थे. ये देश के अलग-अलग हिस्सों, समुदायों का प्रतिनिधित्व करने वाले लोगों का एक समूह था, जो कानून और दूसरे पहलुओं की भी जानकारी रखता था. कई सदस्य खुद कानून विशेषज्ञ थे.

इसके बाद जो प्रोविंशियल असेम्बली थी, उनसे ही प्रतिनिधि चुने गए और संविधान सभा बनी. दिसम्बर 1946 में उसकी पहली मीटिंग हुई. सत्ता का हस्तांतरण तब तक नहीं हुआ था, वो 15 अगस्त 1947 को हुआ लेकिन संविधान सभा ने दिसंबर 1946 में अपना काम शुरू कर दिया था.

सोमवार, 9 दिसंबर 1946 को सुबह 11 बजे से संविधान सभा की पहली बैठक हुई. इस बैठक का मुस्लिम लीग ने यह कहकर बहिष्कार किया कि मुसलमानों के लिए अलग देश का गठन किया जाना चाहिए. संविधान सभा की कुल 165 दिन बैठकें हुई. सभा के अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद थे. सभा के संवैधानिक सलाहकार सर बेनेगल नरसिंग राउ थे. बी एन राउ ने दुनिया के बहुत सारे संविधानों का अध्ययन किया. यूके, आयरलैंड, कनाडा और अमेरिका जाकर वहां के कानून के विद्वानों से विस्तृत चर्चा की. फिर अक्टूबर 1947 में उन्होंने संविधान का पहला ड्राफ्ट तैयार किया. फिर ये ड्राफ्ट डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता वाली 7 सदस्यीय ड्राफ्टिंग कमिटी को सौंपा गया.

राउ की तरफ से तैयार ड्राफ्ट पर विचार करने के बाद डॉक्टर अंबेडकर की ड्राफ्टिंग कमिटी ने 21 फरवरी 1948 को एक नया ड्राफ्ट संविधान सभा के अध्यक्ष को सौंपा. इस ड्राफ्ट पर लोगों से सुझाव मांगे गए. इसके आधार पर ड्राफ्ट में कई बदलाव किए गए. बदला हुआ ड्राफ्ट 4 नवंबर 1948 को संविधान सभा मे रखा गया. फिर इस ड्राफ्ट पर बहस शुरू हुई. अगले 1 साल तक संविधान निर्माताओं ने एक-एक प्रावधान पर विस्तार से चर्चा की. क्या रखना है, क्या नहीं? किसमें बदलाव की ज़रूरत है? सभी बातों पर चर्चा और ज़रूरी बदलाव करने के बाद 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा ने ड्राफ्ट को स्वीकार कर लिया. इस तरह से उसे भारत के संविधान का दर्जा मिल गया.

इसके बाद 24 जनवरी 1950 संविधान सभा की बैठक हुई. इसमें जन गण मन को राष्ट्रगान का दर्जा मिला. वंदे मातरम को बराबर सम्मान के साथ राष्ट्र गीत स्वीकार किया गया. 26 जनवरी 1950 से संविधान देश में पूरी तरह लागू हो गया.

बी एन राउ ने लगभग 60 देशों के संविधान का अध्ययन किया था. डॉक्टर अंबेडकर समेत संविधान सभा के कई और सदस्यों को भी दूसरे देशों की शासन व्यवस्था की अच्छी जानकारी थी. नतीजा रहा- अलग-अलग देशों की व्यवस्था के ऐसे हिस्सों को संविधान में जगह देना, जो भारत के लिए सही लगे. मसलन- राष्ट्रपति को संवैधानिक प्रमुख और सेना का सर्वोच्च कमांडर बनाना अमेरिका से लिया गया, संसदीय चुनाव, संसद में 2 सदनों लोकसभा और राज्यसभा की व्यवस्था, केंद्र को राज्यों से ज़्यादा शक्तिशाली बनाने वाला संघीय ढांचा कनाडा से और वेस्टमिंस्टर प्रणाली यानी संसद के लिये जवाबदेह मंत्रिमंडल का प्रावधान ब्रिटेन से लिया गया.

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