Farmers Protest: Rakesh Tikait का दावा- MSP पर कानून के समर्थक थे PM मोदी, केंद्र पर बहस से भागने का लगाया आरोप
Kisan Mahapanchayat Today: बीकेयू के नेता राकेश टिकैत ने रविवार को मांग की कि केंद्र देश में किसानों के हितों की रक्षा के लिए फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी के लिए एक कानून लाए.
Kisan Mahapanchayat Today: भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के नेता राकेश टिकैत ने रविवार को मांग की कि केंद्र देश में किसानों के हितों की रक्षा के लिए फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी के लिए एक कानून लाए. उन्होंने कहा कि पीएम मोदी के नेतृत्व में साल 2011 में गठित की गई कमिटी की सिफारिश को सरकार लागू करे. साथ ही उन्होंने कहा कि सरकार किसानों से बातचीत करे. टिकैत ने कहा कि किसानों कोदिल्ली आने से रोका जा रहा है.
केंद्र पर मुद्दे को लेकर बहस से भागने का आरोप
मुंबई में संयुक्त शेतकरी कामगार मोर्चा (SSKM) के बैनर तले आजाद मैदान में आयोजित किसान महापंचायत में हिस्सा लेने आए राकेश टिकैत ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एमएसपी के समर्थक थे, जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे और वे किसानों के हितों की गारंटी सुनिश्चित करने के लिए एक राष्ट्रव्यापी कानून चाहते थे. उन्होंने मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर इस मुद्दे पर बहस से भागने का आरोप लगाया.
मृतक किसानों के परिजनों के लिए वित्तीय सहायता की मांग
राकेश टिकैट ने कहा, "केंद्र को किसानों को एमएसपी की गारंटी देने के लिए एक कानून लाना चाहिए. कृषि और श्रम क्षेत्रों से जुड़े कई मुद्दे हैं, जिन पर ध्यान देने की जरुरत है और हम उन्हें उजागर करने के लिए पूरे देश में यात्रा करेंगे." टिकैत ने यह भी मांग की कि केंद्र के तीन कृषि विपणन कानूनों के खिलाफ साल भर के विरोध प्रदर्शन में जान गंवाने वाले किसानों के परिजनों को वित्तीय सहायता दी जाए.
प्रदर्शनकारी किसानों के साथ कई दौर की बातचीत
मालूम हो कि इस महीने की शुरुआत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन कृषि कानूनों को वापस लेने के सरकार के फैसले की घोषणा की थी. किसान तीन कृषि कानूनों- कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) कानून, कृषि (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार कानून और आवश्यक वस्तु संशोधन कानून, 2020 के विरोध में दिल्ली की सीमाओं पर नवंबर 2020 से ही प्रदर्शन कर रहे हैं.
केंद्र ने प्रदर्शनकारी किसानों के साथ कई दौर की बातचीत की थी. केंद्र की ओर से कहा गया था कि कानून किसानों के हित में हैं, जबकि प्रदर्शनकारियों का दावा था कि कानूनों की वजह उन्हें कॉर्पोरेट घरानों की दया पर छोड़ दिया जाएगा.