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INS Vikrant: स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर आईएनएस विक्रांत में है कई खास बातें, अगले साल नौसेना के जंगी बेड़े में होगा शामिल

INS Vikrant: साल 2022 में स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर आईएनएस विक्रांत भारतीय नौसेना के जंगी बेड़े में शामिल हो जाएगा. हाल ही में अरब सागर में पूरे पांच दिनों तक विक्रांत पर समुद्री परीक्षण किए गए.

INS Vikrant: 75वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से देश के पहले स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर, आईएनएस विक्रांत के निर्माण का जिक्र किया था. ऐसे में आज हम आपको कोच्चि लेकर चलते हैं, जहां हाल ही में अपने समुद्री ट्रायल के बाद विक्रांत लौटा है. आखिर क्यों जरूरत है भारत को विक्रांत की और किस तरह विक्रांत देश की समुद्री ताकत में कई गुना इजाफा करने जा रहा है? ये जानने के लिए एबीपी न्यूज़ खुद विक्रांत पर पहुंचा था. अगले साल 2022 में विक्रांत भारतीय नौसेना के जंगी बेड़े में शामिल हो जाएगा.

देश के दक्षिणी छोर पर केरल के कोच्चि हार्बर से अरब सागर की तरफ बढ़ते भारत के पहले स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर आईएनएस विक्रांत की तस्वीरें कुछ दिनों पहले पूरी दुनिया ने देखी थी. पहली बार देश के स्वदेशी विमान-वाहक युद्धपोत को बंदरगाह से बाहर निकालकर सी-ट्रायल के लिए समंदर ले जाया गया था. अरब सागर में पूरे पांच दिनों तक विक्रांत पर समुद्री परीक्षण किए गए. इस दौरान उसके इंजन और टरबाइन से लेकर उस पर तैनात होने वाले हेलीकॉप्टर्स के ऑपरेशन्स का सफल परीक्षण किया गया.

पांच दिन के बाद विक्रांत वापस कोचिन शिपयार्ड लौट आया है. अब विक्रांत पर तैनात होने वाले फाइटर जेट्स और हेलीकॉप्टर्स को तैनात करने की तैयारी चल रही है. ऐसा करते ही इंडिजेनस एयरक्राफ्ट कैरियर यानी आईएसी-विक्रांत भारतीय नौसेना की जंगी बेड़े में शामिल हो जाएगा. जंगी बेड़े में शामिल होते ही उसका नाम हो जाएगा आईएनएस यानी इंडियन नेवल शिप, विक्रांत. लेकिन ऐसा करने में अभी कुछ और वक्त लग सकता है. लेकिन उससे पहले ही एबीपी न्यूज़ पहुंचा कोच्चि स्थित कोचिन शिपयार्ड, जहां देश के सबसे घातक समुद्री हथियार को बनाने का फाइनल टच चल रहा है. 

एयरक्राफ्ट कैरियर विक्रांत को बनाने के पीछे की कहानी हम आपको आगे बताएंगे, लेकिन उससे पहले उसकी ताकत से आपको रूबरू करा देते हैं. दरअसल, किसी भी विमान वाहक युद्धपोत की ताकत होती है उस पर तैनात किए जाने वाले लड़ाकू विमान और हेलीकॉप्टर. समंदर में एयरक्राफ्ट कैरियर एक फ्लोटिंग एयरफील्ड के तौर पर काम करता है. उस पर तैनात फाइटर जेट्स और हेलीकॉप्टर कई सौ मील दूर तक समंदर की निगरानी और सुरक्षा करते हैं. दुश्मन का कोई युद्धपोत तो क्या पनडुब्बी तक भी उसके आसपास फटकने की कोशिश नहीं करती है. विक्रांत की टॉप स्पीड 28 नॉट्स है और ये एक बार में 7500 नॉटिकल मील की दूरी तय कर सकता है. इस पर तैनात फाइटर जेट्स भी एक-दो हजार मील की दूरी तय कर सकते हैं.

30 फाइटर जेट्स और हेलीकॉप्टर होंगे तैनात

किसी भी एयरक्राफ्ट कैरियर की ताकत उसका फ्लाइट-डेक होता है यानी उसका रनवे. यही वजह है एबीपी न्यूज़ की टीम सबसे पहले विक्रांत के रनवे पर पहुंची. यह करीब 262 मीटर लंबा है यानि दो फुटबॉल ग्राउंड से भी बड़ा. विक्रांत की चौड़ाई है करीब 62 मीटर और ऊंचाई है 50 मीटर. एबीपी न्यूज़ को मिली जानकारी के मुताबिक भारत के स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर पर करीब 30 फाइटर जेट्स और हेलीकॉप्टर तैनात होंगे. इन 30 एयरक्राफ्ट्स में 20 लड़ाकू विमान होंगे और 10 हेलीकॉप्टर. इन 20 लड़ाकू विमानों में 12 रूस से लिए गए 'मिग-29के' फाइटर जेट्स होंगे, जिन्हें ब्लैक पैंथर के नाम से जाना जाता है. 'मिग-29के' के अलावा 08 भारत के स्वदेशी 'एलसीए-नेवी' एयरक्राफ्ट या फिर उसका ही टूइन इंजन वर्जन यानी टीईडीबीएफ (टूइन इंजन डेक बेस्ट फाइटर) होगा. हालांकि, टीईडीबीएफ को बनने में अभी काफी वक्त लग सकता है. ये दोनों विमान फिलहाल हिंदुस्तान एयरोनोटिक्स लिमिटेड बना रहा है.


INS Vikrant: स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर आईएनएस विक्रांत में है कई खास बातें, अगले साल नौसेना के जंगी बेड़े में होगा शामिल

विक्रांत पर जो रोटरी विंग एयरक्राफ्ट्स होंगे, उनमें छह एंटी-सबमरीन हेलीकॉप्टर्स होंगे, जो दुश्मन की पनडुब्बियों पर खास नजर रखेंगे. भारत ने हाल ही में अमेरिका से ऐसे 24 मल्टी-मिशन हेलीकॉप्टर, एमएच-60आर यानी रोमियो हेलीकॉप्टर का सौदा किया है. इनमें से दो (02) रोमियो हेलीकॉप्टर भारत को मिल भी गए हैं. इसके अलावा दो टोही हेलीकॉप्टर और दो ही सर्च एंड रेस्कयू मिशन में इ‌स्तेमाल किए जाने वाले होंगे.

स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर विक्रांत का आदर्श वाक्य है, 'जयेम सम युधि स्पृधा:'. ऋगवेद से लिए गए इस सूक्ति का अर्थ है अगर कोई मुझसे लड़ने आया तो मैं उसे परास्त करके रहूंगा. इस‌ नए विक्रांत को भारतीय नौसेना के रिटायर हो चुके एयरक्राफ्ट कैरियर विक्रांत के नाम पर ही नामकरण किया गया है, जिसने 1971 के युद्ध में पाकिस्तान पर विजय में एक अहम भूमिका निभाई थी.

भारत को कम से कम दो एयरक्राफ्ट कैरियर की जरूरत इसलिए है क्योंकि भारत की करीब सात हजार किलोमीटर लंबी समुद्री सीमाएं दो तरफा है. एक है पूर्व में बंगाल की खाड़ी से सटी और दूसरी है पश्चिम में अरब सागर से सटी. ऐसे में भारत को दो अलग-अलग मोर्चों पर दो विमान-वाहक युद्धपोत की जरूरत थी. इसके अलावा हिंद महासागर में भारत का करीब 23 लाख वर्ग मील का स्पेशल इकॉनोमिक जोन है, उसकी सुरक्षा करने के लिए भारत को दो एयरक्राफ्ट कैरियर की जरूरत है. हाल ही में भारत का आईएनएस विराट एयरक्राफ्ट कैरियर भी रिटायर हो गया था. ऐसे में भारतीय नौसेना के पास फिलहाल आईएनएस विक्रमादित्य एयरक्राफ्ट कैरियर है जो भारत ने रूस से वर्ष 2013 में लिया था.

विक्रांत के पहले (कमीशनिंग) कमांडिंग ऑफिसर कमाडोर विद्याधर हरेक ने एबीपी न्यूज़ को बताया कि आजादी के बाद भारत के नीति-निर्धारकों ने देश की नौसेना के लिए तीन (03) एयरक्राफ्ट कैरियर की अवधारणा तैयार की थी क्योंकि किसी भी देश की नौसेना की सबसे बड़ी ताकत उसका एयरक्राफ्ट कैरियर होता है. भारतीय नौसेना को आईएनएस विक्रांत की इसलिए भी जरूरत है क्योंकि एलएसी पर चीन से चल रहे विवाद का असर हिंद महासागर में भी देखने को मिल रहा है. चीन के युद्धपोत और पनडुब्बियों की गतिविधियां इंडियन ओसियन रीजन में काफी बढ़ गई हैं. ऐसे में दुश्मनों की गतिविधियों पर लगाम लगाने के लिए विक्रांत की सख्त जरूरत है.

पावर प्रोजेक्शन

विक्रांत के फ्लाइट डेक पर पहुंचने के बाद एबीपी न्यूज़ की टीम पहुंची फ्लाइ-को यानि फ्लाइट-कंट्रोल में. ये फ्लाइट-को विक्रांत के कमांड एंड कंट्रोल सेंटर के तौर पर काम करता है. यहां तैनात नौसेना के अधिकारियों ने बताया कि विक्रांत जब भारत के जंगी बेड़े में शामिल होकर समंदर में तैनात होगा तो उसके साथ कई और युद्धपोत भी ऑपरेट करेंगे. विक्रांत एक कैरियर बैटल ग्रुप (सीबीजी) के तौर पर भारत की समुद्री सीमाओं के पार जाकर भारत का 'पावर प्रोजेक्शन' भी करेगा.

भारतीय नौसेना के विक्रांत एयरक्राफ्ट कैरियर के फ्लाइ-डेक यानी रनवे को स्कीइंग तकनीक पर तैयार किया गया है. इस तकनीक को शॉर्ट टेकऑफ बट अरेस्टेड रिकवरी यानी स्टोबार भी कहा जाता है. इसके मायने ये है कि छोटे रनवे से स्कीइंग के जरिए टेकऑफ क्योंकि इसका रनवे मात्र 250 मीटर का है इसलिए इस पर अरेस्टेड रिकवरी तकनीक से फाइटर जेट्स को लैंड कराया जाएगा. विक्रांत पर तैनात कुल 30 एयरक्राफ्ट्स में से 10 एक समय में फ्लाइट-डेक पर होंगे और बाकी 20 विक्रांत में ही बने एक बड़े से हैंगर में होंगे. हैंगर से फाइटर जेट्स और हेलीकॉप्टर्स को फ्लाइट-डेक तक लाने के लिए दो विशालनुमा लिफ्ट बनाई गई हैं.

एयरक्राफ्ट कैरियर विक्रांत का निर्माण भारत के लिए एक ऐतिहासिक और गर्व करने वाला पल है क्योंकि भारत उन चुनिंदा देशों की श्रेणी में शामिल हो गया है जिनके पास ऐसी बेहतरीन तकनीक है जो स्टेट ऑफ द आर्ट विमान-वाहक युद्धपोत के डिजाइन से लेकर निर्माण करने और उसे हथियारों तक से लैस कर सकता है. अभी तक अमेरिका, रूस, चीन और ब्रिटेन जैसे देश ही विमान वाहक युद्धपोत बना सकते हैं. नौसेना के मुताबिक, 'आत्मनिर्भर भारत' और 'मेक इन इंडिया' का भी ये एक नायाब नमूना है क्योंकि विक्रांत देश का अब तक का सबसे बड़ा युद्धपोत है, जिसका निर्माण खुद भारत ने ही किया है. लेकिन इसका निर्माण इतना आसान नहीं था.

स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर विक्रांत का निर्माण कोचिन-शिपयार्ड ने किया है. नौसेना के मुताबिक, कोविड महामारी की चुनौतियों के बावजूद कोचिन शिपयार्ड ने सी-ट्रायल को शुरू कर एक मील का पत्थर हासिल किया है. हालांकि, आपको बता दें कि मौजूदा विमान वाहक युद्धपोत आईएनएस विक्रांत अपने तय समय से पीछे चल रहा है. वर्ष 2009 में विक्रांत का निर्माण कार्य शुरू हुआ था और वर्ष 2013 में पहली बार समंदर में 'लॉन्च' किया गया था. विक्रांत में 75 प्रतिशत स्वदेशी उपकरण लगे हैं. इसके लिए खासतौर से स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) ने ऐसी स्टील तैयार की है जिस पर जंग नहीं लग सकती है. हालांकि, नौसेना के कमाडोर वी गणपति ने बताया की विक्रांत का डिजाइन 80 के दशक में तैयार हो गया था. लेकिन 1997 में पुराने विक्रांत के डिकमीशन (रिटायर) होने और फिर कारगिल युद्ध के चलते भारत को दूसरे एयरक्राफ्ट कैरियर की जरूरत महसूस हुई. उसके बाद ही नए विक्रांत को सीसीएस यानी कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी ने बनाने की मंजूरी प्रदान की थी.

विक्रांत की खास कवरेज के दौरान एबीपी न्यूज़ की टीम विक्रांत के अंदर भी पहुंची. समंदर से कई मीटर नीचे ट्रबाइन और इंजन रूम में भी पहुंची. स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर में करीब ढाई हजार किलोमीटर लंबी इलेक्ट्रिक केबिल लगी हैं. यानी अगर इसमें लगी केबिल को बिछाया जाए तो वो कोच्चि से दिल्ली तक पहुंच सकती है. विक्रांत में 150 किलोमीटर लंबे पाइप और 2000 वॉल्व लगे हैं. पिछले 11 सालों से करीब 2000 इंजीनियर, वर्कर्स और टेक्निशियन्स की टीम इसे बनाने में दिन-रात जुटी रही. इसके अलावा कम्युनिकेशन सिस्टम, नेटवर्क सिस्टम, शिप डाटा नेटवर्क, गन्स, कॉम्बेट मैनेजमेंट सिस्टम इत्यादि सब स्वदेशी है. विक्रांत को बनाने में करीब 20 हजार करोड़ का खर्चा आया है. विक्रांत को बनाने से कोचिन शिपयार्ड से जुड़ी 50 से ज्यादा भारतीय कंपनियां और करीब 40 हजार अप्रत्यक्ष रोजगार मिल पाया है.

स्वर्णिम इतिहास रचेगा

भारतीय नौसेना की दक्षिणी कमान के फ्लैग ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ (एफओसीएनसी), वाइस एडमिरल ए के चावला ने एबीपी न्यूज़ से खास बातचीत में बताया कि विक्रांत में 76 प्रतिशत स्वदेशी कंटेंट है. ये भारतीय नौसेना के जंगी बेड़े का अब तक का सबसे बड़ा जहाज है, जिसका वजन करीब 40 हजार टन है. उनका मानना है कि नया विक्रांत आने वाले समय में भारत और भारतीय नौसेना के लिए स्वर्णिम इतिहास रचेगा और जब भी कोई चुनौती होगी वो ना केवल उसका सामना करेगा, बल्कि दुश्मनों के छक्के भी छुड़ाएगा. आईएनएस विक्रांत पर 1700 नौसैनिक तैनात किए जा सकते हैं. महिला नौसैनिकों के लिए स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर में खास व्यवस्था की गई है. पहले सी-ट्रायल के दौरान इस पर छह महिला ऑफिसर तैनात थीं.

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