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अयोध्या विवाद पर SC में कल सुनवाई, जानिए- इस केस को लेकर क्या-क्या हैं संभावनाएं

अगर कोर्ट नियमित सुनवाई को तैयार हो जाता है, तब बात इस पर आएगी कि इसे कितने दिन में पूरा किया जाएगा. इसके लिए कोर्ट सभी पक्षों से पूछेगा कि उन्हें अपनी जिरह करने को पूरा करने के लिए कितना-कितना समय चाहिए.

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को अयोध्या विवाद पर सुनवाई करेगा. मामला चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 जजों की बेंच में लगेगा. बेंच के बाकी 4 सदस्य हैं- जस्टिस एस ए बोबडे, एन वी रमना, डी वाई चंद्रचूड़, अशोक भूषण और एस अब्दुल नज़ीर.

आइए हम उन संभावित परिस्थितियों को देख लेते हैं, जो इस सुनवाई में बन सकती हैं. सुनवाई शुरू होने की तारीख मिल सकती है इस बात की पूरी उम्मीद है कि मामले से जुड़े पक्ष खासतौर पर हिंदू पक्ष और यूपी सरकार मामले की सुनवाई जल्द शुरू करने की मांग करेंगे. केस नियमित रूप से सुनकर एक तय समय सीमा में निपटाने की मांग भी रखेंगे. बेंच के जज इस पर चर्चा कर, समय की उपलब्धता के हिसाब से एक तारीख दे सकते हैं. हो सकता है ये तारीख बिल्कुल पास की हो. ये भी हो सकता है कि तारीख कुछ महीने बाद की हो.

टल भी सकती है सुनवाई इससे पहले अलग-अलग वजहों से मुकदमे की सुनवाई टलती रही है. 2010 में मामला दाखिल होने के बाद से दस्तावेजों का अनुवाद न हो पाने की बात कही जाती रही. अब भी मामले से जुड़े 7 भाषाओं के दस्तावेजों का सही अनुवाद उपलब्ध न होने का मसला कोर्ट के सामने है. 10 जनवरी को कोर्ट ने रजिस्ट्री से इस बात की रिपोर्ट मांगी थी कि दस्तावेज कोर्ट में रखे जाने के हिसाब से तैयार हैं या नहीं. ऐसे में काफी हद तक ये रजिस्ट्री की रिपोर्ट पर निर्भर करेगा कि नियमित सुनवाई जल्द शुरू हो सकेगी या नहीं.

सभी पक्षों से बहस का वक्त पूछा जाएगा हो सकता है कि जज मांग के मुताबिक नियमित सुनवाई पर आदेश दें. अगर कोर्ट नियमित सुनवाई को तैयार हो जाता है, तब बात इस पर आएगी कि इसे कितने दिन में पूरा किया जाएगा. इसके लिए कोर्ट सभी पक्षों से पूछेगा कि उन्हें अपनी जिरह करने को पूरा करने के लिए कितना-कितना समय चाहिए.

बहस का समय कोर्ट तय कर सकता है अगर कोर्ट ये तय कर लेता है कि वह एक तय समय सीमा में सुनवाई को पूरा करेगा, तो वो सभी पक्षों के वकीलों से अपनी जिरह का समय सीमित करने के लिए कह सकता है. 2016 में कोर्ट ने तीन तलाक मामले की सुनवाई के दौरान यही रुख अपनाया था. इसके चलते 7-8 दिनों में सुनवाई पूरी हो गई थी. हालांकि, अयोध्या मामले के विस्तार को देखते हुए इतने कम समय में सुनवाई पूरी होने की कोई संभावना नहीं है. फिर भी कोर्ट सुनवाई खत्म करने की एक समय सीमा तय कर सकता है.

अलग से दाखिल अर्ज़ियों को भी देखा जाएगा मामले के तीन मुख्य पक्षकारों रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड के अलावा कई हिंदू और मुस्लिम पक्षकार हैं, जो मुकदमे से शुरू से जुड़े हुए हैं. कोर्ट को उन सब की बात सुननी होगी. इसके अलावा कुछ और याचिकाएं हैं, जिन्हें मुख्य मामले के साथ लगा दिया गया है. जैसे शिया वक्फ बोर्ड विवादित जगह को शिया मस्जिद बताते हुए हिंदुओं को सौंपने की बात कह रहा है. इसके अलावा कुछ बौद्ध याचिकाकर्ता भी जगह को बौद्ध स्मारक बताते हुए अपना दावा कर रहे हैं. इसके अलावा बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी की भी अर्ज़ी है जो विवाद के चलते अयोध्या में पूजा करने में आने वाली दिक्कत का हवाला दे रहे हैं. स्वामी ने पूजा को मौलिक अधिकार बताते हुए कोर्ट से इसे सुनिश्चित करने की मांग की है.

इस तरह के याचिकाकर्ता जिनका मुख्य मामले से सीधे लेना-देना नहीं है. बेंच को उनकी सुनवाई पर भी फैसला लेना होगा. उसे ये तय करना होगा कि इन्हें सुना जाए या नहीं. अगर सुना जाए तो कब और कितने समय के लिए.

केंद्र की अलग से अर्ज़ी केंद्र सरकार ने कोर्ट में अर्ज़ी दाखिल कर अयोध्या में अधिगृहित ग़ैरविवादित ज़मीन उसके मूल मलिकों को लौटाने की दरख्वास्त की है. कहा है कि वहां अधिगृहित 67.7 एकड़ जमीन में से 0.3 एकड़ ज़मीन पर ही मुकदमा है. बाकी ज़मीन मूल मालिकों को लौटाने दिया जाए. केंद्र की मांग है कि सुप्रीम कोर्ट अयोध्या में यथास्थिति बनाए रखने का पुराना आदेश वापस ले. ग़ैरविवादित ज़मीन में से ज़्यादातर रामजन्मभूमि न्यास की है. ज़मीन मिलने पर निर्माण शुरू हो सकता है

इससे मिलती मांग वाली कुछ और याचिकाएं भी कोर्ट में दाखिल हुई हैं. इन याचिकाओं में 1993 में हुए अधिग्रहण को गलत बताने के अलावा पूजा के अधिकार का भी हवाला दिया गया है. 5 जजों की बेंच को ये तय करना होगा कि वो पहले मुख्य मामले पर सुनवाई करेगी या इस मसले को.

हाई कोर्ट जितना समय नहीं लगेगा ऊपर लिखी तमाम स्थितियों के आधार पर ही ये तय हो सकेगा कि अयोध्या मामले की सुनवाई कब, कैसे और कितने समय में होगी. हालांकि, इतना जरूर है कि सुप्रीम कोर्ट में उतना समय नहीं लगेगा, जितना हाई कोर्ट में लगा. इसकी वजह ये है कि हाई कोर्ट ने अयोध्या भूमि विवाद में सिविल कोर्ट की तरह काम किया. वहां पर तमाम सबूतों को परखा गया. लोगों के बयान दर्ज किए गए. इसमें कई सालों का वक्त लगा. सुप्रीम कोर्ट को अपीलों पर सुनवाई करनी है. इसलिए, जो बातें हाई कोर्ट में कहीं जा चुकी हैं और उनके आधार पर हाई कोर्ट ने जो निष्कर्ष दिया है, उसकी समीक्षा सुप्रीम कोर्ट में होगी.

इसके बावजूद अभी ये कह पाना मुश्किल है कि क्या देश में बने माहौल के मुताबिक अगले कुछ महीनों में ही कोर्ट इस मामले की सुनवाई खत्म करके फैसला दे देगा. या फिर कोर्ट इसे भी दूसरे मामलों की तरह देखते हुए अपनी प्रक्रिया के मुताबिक सुनवाई करेगा. अगर ऐसा होता है तो फिर सुनवाई में काफी समय लग सकता है.

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