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क्या बिहार बन गया है पत्रकारों के लिए 'फील्ड ऑफ डेथ', जानिए राजदेव रंजन से लेकर विमल यादव तक की कहानी

पत्रकारों के हत्यारे बेखौफ होकर घूम रहे हैं. हत्या का शिकार हुए पत्रकारों के 94 प्रतिशत से ज्यादा मामले या तो अदालतों में लंबित हैं या आरोपी अपर्याप्त सबूतों की वजह से बरी हो जाते हैं.

बिहार के अररिया जिले में तड़के सुबह कुछ लोगों ने एक पत्रकार के घर में घुसकर गोली मारकर हत्या कर दी. पीड़ित की पहचान विमल यादव के रूप में हुई, जो दैनिक जागरण में काम करते थे. रानीगंज स्थित उनके आवास पर पहुंचे चार लोगों ने उनके सीने में गोली मार दी. यादव की मौके पर ही मौत हो गई. इस घटना से पोस्टमार्टम हाउस पर भारी हंगामा हुआ. पुलिस अधीक्षक और क्षेत्र के एक सांसद सहित पुलिस अधिकारी वहां मौजूद थे. 

अररिया के एसपी अशोक कुमार सिंह के अनुसार, 'बिहार के अररिया में रानीगंज बाजार इलाके में दैनिक जागरण के एक पत्रकार विमल की सुबह लगभग 5.30 बजे चार लोगों ने गोली मारकर हत्या कर दी'.

पुलिस ने इस हत्याकांड में शामिल चार आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है.  आरोपियों ने 2019 में विमल यादव के भाई की भी हत्या कर दी थी. विमल उस मामले में एकमात्र गवाह था और जानकारी के अनुसार उस पर गवाही बदलने का दबाव था.

घटना के बाद लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता चिराग पासवान ने कानून और व्यवस्था लागू करने में विफलता के लिए नीतीश के नेतृत्व वाली बिहार सरकार की आलोचना की. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी इस घटना पर दुख व्यक्त किया.

बिहार में पत्रकार की हत्या कोई नई बात नहीं है. राज्य में पत्रकारों की हत्या की लंबी लिस्ट है. इस आर्टिकल में बिहार में अपराध का शिकार हुए पत्रकारों, उसकी वजह और मौत के आंकड़ों को जानने की कोशिश करेंगे. 

राजदेव रंजन की हत्या- राजदेव रंजन सीवान बिहार के रहने वाले थे. वो हिंदुस्तान डेली में पत्रकार थे. राजदेव की हत्या 13 मई 2016 को गोली मारकर कर दी गई थी. उनकी मृत्यु को मीडिया कवरेज मिला था. राजदेव की मौत को पत्रकारिता के लिए खतरा बताया गया था. उन्हें राष्ट्रीय जनता दल के पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन के खिलाफ लिखने के लिए जाना जाता था.

राजदेव रंजन सीवान रेलवे स्टेशन से अपने कार्यालय जा रहे थे, जब बाइक पर सवार हमलावरों ने उनकी हत्या कर दी. रंजन को गर्दन और सिर में गोली लगी थी. उसे पहले आंखों के बीच और गर्दन में गोली मारी गई थी. गोलीबारी की यह घटना सीवान बाजार इलाके में रात करीब आठ बजे हुई. रंजन की बाद में अस्पताल में मौत हो गई थी.

मीडिया में छपी जानकारी के मुताबिक रंजन के हत्यारे सीवान में किसी गिरोह के सदस्य बताए गए थे. खबरों के मुताबिक रंजन के परिवार का कहना था राजदेव की हत्या के पीछे शहाबुद्दीन का हाथ है. रंजन के कई साथी पत्रकारों के अनुसार उन्हें पहले भी धमकी दी गई थी. ये भी बताया गया कि मोहम्मद शहाबुद्दीन ने कथित तौर पर एक हिट लिस्ट बनाई थी और रंजन का नाम उस लिस्ट में सातवें स्थान पर थे.

दो पत्रकारों की गोली मारकर हत्या - बिहार में 12 नवंबर 2016 को 24 घंटे के दौरान अलग-अलग घटनाओं में अज्ञात लोगों ने दो पत्रकारों की गोली मारकर हत्या कर दी थी.  पहली घटना सासाराम के अमर टोला में हुई. दैनिक भास्कर के स्थानीय पत्रकार 35 वर्षीय रिपोर्टर धर्मेंद्र सिंह की मोटरसाइकिल सवार तीन लोगों ने हत्या कर दी. 

पुलिस ने बताया था कि हमलावरों ने सिंह के पेट में उस समय गोली मारी जब वह सड़क किनारे एक दुकान पर चाय पी रहे थे. पुलिस से मिली जानकारी के मुताबिक घटना रोहतास जिले में अवैध उत्खनन इकाइयों पर रिपोर्टर के लेखों से जुड़ी बताई गई थी. 

दूसरी घटना में दरभंगा के केवटगामा पंचायत की थी. पत्रकार से ग्राम प्रधान बने रामचंद्र यादव की अज्ञात लोगों ने उस समय गोली मारकर हत्या कर दी, जब वह एक स्थानीय प्रखंड विकास अधिकारी से मिलने के बाद घर लौट रहे थे. 

कुशेश्वर स्थान पुलिस के मुताबिक अपराधियों ने यादव की पीठ में गोली मारी, जिससे उनकी तुरंत मौत हो गई. मृतक पिछले साल मुखिया बनने से पहले एक हिंदी अखबार में काम करते थे.

भोजपुर में दो पत्रकारों की हत्या- 26 मई 2018 को बिहार के भोजपुर में दो पत्रकारों की हत्या कर दी गई. बिहार की राजधानी पटना से करीब 80 किलोमीटर दूर भोजपुर में ग्राम परिषद के प्रमुख और उसके लोगों ने दो पत्रकारों की कार से कुचल कर हत्या कर दी. दैनिक भास्कर के लिए काम करने वाले नवीन निश्चल और उनके सहयोगी विजय सिंह बाइक पर थे. तभी कार ने टक्कर मार दी. रिपोर्ट के मुताबिक कार में मुखिया मोहम्मद हरसू और उनका बेटा था.  

हरसू के खिलाफ कई आपराधिक मामले दर्ज हैं. हरसू का बेटा घटना के बाद गायब हो गया था. भीड़ ने गाड़ी को घेर लिया और आग लगा दी थी.

पत्रकार सुभाष कुमार महतो की गोली मारकर हत्या-  20 मई 2022 को बेगूसराय में सुभाष कुमार महतो की चार हमलावरों ने गोली मार कर हत्या कर दी. महतो को सिर में गोली मारी गई थी. जब वह अपने पिता और अन्य रिश्तेदारों के साथ शादी के रात्रिभोज में शामिल होने के बाद अपने घर के पास टहल रहे थे. हमलावर मौके से फरार हो गए. उन्हें स्थानीय अस्पताल ले जाया गया  जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया. 

सुभाष कुमार महतो  की हत्या के बारे में 'कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स' में कहा गया कि बिहार के अधिकारियों को पत्रकार सुभाष कुमार महतो की हत्या की पूरी जांच करनी चाहिए और इसके लिए जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराना चाहिए.

भारतीय प्रेस परिषद (पीसीआई) की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 25 सालों में भारत में 90 पत्रकार मारे गए हैं. इन सभी मामलों में विभिन्न वर्गों के प्रभाव की वजह से अपराधियों को कम सजा मिलती है. यह एक खतरनाक आंकड़ा है और राज्य में प्रेस की स्वतंत्रता के लिए पर एक सवाल है.

ग्रामीण और छोटे शहरों के पत्रकारों को ज्यादा खतरा

जानकार ये मानते हैं कि भारत पत्रकारों के लिए असुरक्षित होता जा रहा है. फ्री स्पीच कलेक्टिव के लिए गीता सेशु के एक अध्ययन के मुताबिक 2020 में 67 पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया और लगभग 200 पर शारीरिक रूप से हमला किया गया. उत्तर प्रदेश में एक लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार की घटना को कवर करने जा रहे एक पत्रकार को पांच महीने की जेल हुई.

असम, उत्तर प्रदेश और कश्मीर और बिहार पत्रकारों के लिए सबसे खतरनाक राज्य माने जाते हैं. कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स की रिपोर्ट बताती है कि भारत में रिपोर्टिंग एक खतरनाक पेशा हो सकता है. ग्रामीण और छोटे शहरों के पत्रकारों को बड़े शहरों के मुकाबले जान का खतरा ज्यादा होता है. 

सीपीजे ने हाल ही में एक रिपोर्ट पेश की थी. इसमें उन 27  भारतीय पत्रकारों की लिस्ट थी, जिनकी 1992 के बाद से उनके काम के सीधे संबंध में हत्या कर दी गई है. इस लिस्ट में एक भी किसी भी बड़े संस्थान का अंग्रेजी भाषा का रिपोर्टर नहीं था. 

ये लिस्ट ग्रामीण या छोटे शहर के पत्रकारों से भरी हुई है. ज्यादातर हिंदी भाषी पत्रकार थे. जम्मू कश्मीर में मारे गए पत्रकारों में फ्रीलांसर पत्रकारों का नाम भी है जो ज्यादातर प्रिंट मीडिया के लिए काम करते थे सैदान शफी और अल्ताफ अहमद फक्तू का नाम इसी लिस्ट में आता है.

2021 में भारत में चार पत्रकार मारे गए, जिससे भारत पत्रकारों के लिए तीसरा सबसे खतरनाक देश बन गया. पिछले पांच सालों में कम से कम 18 पत्रकार मारे गए हैं. 

क्या है पत्रकारों की हत्या की वजह 

कई मामलों में भारतीय पत्रकार आम तौर पर स्थानीय संगठित अपराध गतिविधियों को कवर करने की कोशिश करते हैं. इससे वो टारगेट किलिंग का शिकार होते हैं. 

क्या सोचते हैं स्थानीय पत्रकार

बिहार के एक पत्रकार ने नाम ने छापने की शर्त पर एबीपी न्यूज को बताया कि राज्य में पत्रकार सुरक्षित नहीं हैं. जिस तरह से पत्रकारों की हत्या हो रही हैं उससे  मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की छवि पर भी प्रश्नचिन्ह लग रहे हैं.

पत्रकार ने बताया कि कई हत्याओं के पीछे की वजह राजनीतिक दबाव मानी जाती है. ज्यादातर हत्याएं पेशेवर तरीके से होती हैं. इसलिए ये नहीं माना जा सकता कि हत्याओं के पीछे की वजह कोई छोटी-मोटी आपसी रंजिश नहीं हो सकती.

जिस तरह से योजनाबद्ध तरीके से हत्या को अंजाम दिया जाता है इसके पीछे ताकतवर हाथ होते हैं.  

 

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