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एक रुपये में कुलभूषण जाधव की लड़ाई लड़ने वाले वकील हरीश साल्वे की कहानी

नई दिल्ली: एक बेहद आला दिमाग और निहायत मेहनती वकील, जो अपनी इन खूबियों के चलते लगभग अजेय बन गया है. वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे की शख्सियत पर ये वाक्य बिल्कुल सटीक बैठता है. विदेश मंत्री सुष्मा स्वराज ने बताया था कि हरीश साल्वे ने कुलभूषण जाधव का केस लड़ने की फीस महज एक रुपये ली.

साल्वे को जब सरकार ने इंटरनेशनल कोर्ट में देश का पक्ष रखने की ज़िम्मेदारी सौंपी तब अदालती हलकों में सबको पता था कि उनसे बेहतर दांव कोई हो ही नहीं सकता. आज उनकी काबिलियत का लोहा देश ही नहीं, दुनिया भी मान रही है.

देश के कद्दावर राजनेता एन के पी साल्वे के बेटे हरीश ने राजनीति की बजाय वकालत को करियर बनाया. हालांकि, ये जान लेना जरूरी है कि वकालत उनके खून में है. उनके दादा पी के साल्वे अपने ज़माने के मशहूर वकील थे.

61 साल के हरीश साल्वे 1999 से 2002 के बीच देश के सॉलिसिटर जनरल रहे. उनका 40 साल से ज़्यादा का करियर चमकदार सफलताओं से भरा हुआ है. मुकदमा आपराधिक हो, सिविल या कार्पोरेट, साल्वे ज़बर्दस्त तैयारी के साथ कोर्ट में आते हैं. जब वो दलीलें रखते हैं तो उनकी ये तैयारी साफ़ नज़र आती है. उनकी पैनी, धारदार और तथ्यपूर्ण पैरवी केस को उनके मुवक्किल के पक्ष में मोड़ देती है.

पिछले दिनों देश ने उनका नाम तब सुना था जब हिट एंड रन मामले में फिल्म स्टार सलमान खान को सज़ा मिलने के बावजूद उन्होंने सलमान को जेल जाने से बचा लिया था. उन्होंने कानून का ऐसा बारीक़ नुक्ता पकड़ा कि बॉम्बे हाई कोर्ट ने सलमान को ज़मानत दे दी.

देश के सबसे बड़े वकीलों में से एक हरीश साल्वे एक बार पेश होने के 8 से 25 लाख रुपए तक फीस लेते हैं. उनकी कामयाबियों को देखते हुए ऐसी महंगी फीस देने वालों की कोई कमी नहीं है. हालांकि, पिछले कुछ सालों में साल्वे ने भारत में केस लेने कम कर दिए हैं. वो इंग्लैंड के बार में रजिस्टर्ड बैरिस्टर हैं. काफी वक्त लंदन में बिताते हैं और इंटरनेशनल कॉर्पोरेट आर्बिट्रेशन के मामले देखते हैं.

हरीश साल्वे के बारे में अपनी किताब लीगल ईगल में विस्तार से लिखने वाली वरिष्ठ पत्रकार इंदु भान ने एबीपी न्यूज़ को बताया, " साल्वे इंजीनियर बनना चाहते थे. पिता चार्टड एकाउंटेंट थे. इसलिए उन्होंने भी सीए की पढ़ाई की. जाने-माने वकील ननी पालखीवाला ने उनकी काबिलियत को पहचाना और एलएलबी करने की सलाह दी."

हरीश साल्वे के जीवन का पहला केस ही एक अज़ीम शख्सियत से जुड़ा था. 1975 में जाने-माने अभिनेता दिलीप कुमार पर टैक्स चोरी के आरोप लगे. मामला बतौर सीए इनके पिता के पास आया. हरीश ने वकील के तौर पर मामले को इनकम टैक्स ट्रिब्यूनल से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक गए. हालांकि, तब काफी जूनियर रहे साल्वे ने जिरह नहीं की थी.

बेयरर बॉन्ड्स के खिलाफ हरीश साल्वे ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की. तब वो वरिष्ठ वकील सोली सोराबजी के जूनियर थे. तब के बड़े-बड़े वकीलों के बीच जब साल्वे ने जिरह की तो बेंच के सदस्य जस्टिस पी एन भगवती ने उनकी तारीफ की और कहा कि वो जब तक चाहें तब तक बोलें. समय की कोई पाबंदी नहीं है. सुनवाई के अंत में तब के एटॉर्नी जनरल एल एन सिन्हा ने भी युवा हरीश की तारीफ की.

1992 में दिल्ली हाईकोर्ट ने साल्वे को वरिष्ठ वकील का दर्जा दिया. धीरे-धीरे वो तमाम कार्पोरेट घरानों के पसंदीदा वकील बनते गए. केजी बेसिन गैस केस में हरीश साल्वे मुकेश अंबानी की तरफ से पेश हुए. अनिल अंबानी की तरफ से राम जेठमलानी और मुकल रोहतगी थे. लगभग 2 महीना चली सुनवाई में साल्वे की दलीलें आज भी अदालती गलियारों में चर्चा का विषय बनती हैं.

भोपाल गैस मामले में यूनियन कार्बाइड के केशव महिंद्रा के ख़िलाफ़ ग़ैर-इरादतन हत्या के आरोपों को सुप्रीम कोर्ट में ख़ारिज़ करवाना साल्वे के करियर का एक और अहम केस था. उनकी दलीलों ने 14 हज़ार करोड़ के टैक्स मामले में वोडाफोन को सुप्रीम कोर्ट से जीत दिलाई.

इंदु भान के मुताबिक, "हरीश साल्वे की शख्सियत सिर्फ कोर्ट केस तक सीमित नहीं है. वो तमाम विषयों पर किताबें पढ़ते हैं. कला के शौकीन हैं और पियानो बजाने में उस्ताद हैं."

आपको बताते चलें कि साल्वे दिल्ली प्रदूषण के मामले में सुप्रीम कोर्ट के सलाहकार हैं. उनकी कोशिशों से ही दिल्ली से होकर गुजरने वाले ट्रकों पर लगाम लगी. डीज़ल टैक्सी पर लगाम लगाने के लिए भी उन्होंने उतनी ही मेहनत की जितना बाकी मामलों में करते हैं.

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