भारत का 'महाबली' इंजन प्रोजेक्ट क्या है? राफेल और 5वीं पीढ़ी के फाइटर जेट्स को मिलेगा कावेरी का दम, पाकिस्तान और चीन सन्न
Kaveri Engine Project Trending On Social Media: 1980 के दशक में शुरू हुआ कावेरी इंजन प्रोजेक्ट सोशल मीडिया पर ट्रेंड करने लग गया है. लोग इसको तेजी से आगे बढ़ाने की मांग कर रहे हैं.

Kaveri Engine Project: ऑपरेशन सिंदूर के दौरान दुनिया ने भारत की ताकत को देखा. इस ऑपरेशन में ज्यादातर हथियार स्वदेशी इस्तेमाल किए गए. भारत लगातार अपनी डिफेंस पावर बढ़ाने में लगा हुआ है. ऐसे में एक बार फिर से स्वदेशी की मांग उठने लगी है. भारत ने पांचवीं पीढ़ी फाइटर जेट्स बनाने की दिशा में अपना पहला कदम भी रख दिया. इन जेट्स के इंजन को ध्यान में रखते हुए कावेरी इंजन सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रहा है.
दरअसल, भारत काफी समय से स्वदेशी फाइटर जेट इंजन बनाने की कोशिश कर रहा है और इसी प्रोजेक्ट का नाम कावेरी इंजन प्रोजेक्ट है, जो 1980 के दशक में शुरू हुआ था. अब लोग चाहते हैं कि इस प्रोजेक्ट में तेजी लाई जाए और इसीलिए सोशल मीडिया पर #FundKaveriengine ट्रेंड कर रहा है. इसके तहत लोगों ने मोदी सरकार से अपील की है कि कावेरी इंजन के लिए फंड मुहैया कराया जाए और जल्दी ही फाइटर जेट्स के इंजन बनाने के मामले में भारत आत्मनिर्भर हो जाए.
जानें क्या है कावेरी की कहानी?
कावेरी उस प्रोजेक्ट का नाम है जिसे डिफेंस रिसर्च एंड डेवेलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन (डीआरडीओ) भारत के लिए डेवेलप कर रहा है. डीआरडीओ की जीटीआरई लैब इसे बना रही है. इस प्रोजेक्ट पर लंबे समय से काम चल रहा है. कावेरी इंजन प्रोजेक्ट की शुरुआत 1980 के दशक में की गई थी, जिसका टारगेट 81-83 केएन थ्रस्ट वाला टर्बोफैन इंजन डेवेलप करना है. सबसे पहले इस इंजन को लड़ाकू विमान एलसीए तेजस में लगाया जाएगा लेकिन प्रोजेक्ट के डिले होने के बाद तेजस प्रोग्राम से अलग कर लिया गया.
कावेरी इंजन प्रोजेक्ट को करना पड़ा कई चुनौतियों का सामना
ये प्रोजेक्ट टेक्निकल चैलेंजेज, मैटेरियल की कमी और फंड की कमी की वजह से पीछे रह गया. इतना ही नहीं 1998 में जब भारत ने परमाणु परीक्षण कर लिया तो दुनिया के कुछ देशों ने लड़ाकू विमानों की संवेदनशील टेक्नोलॉजी भारत को देने से मना कर दिया. मुश्किलें चाहे कितनी भी आईं हों लेकिन कावेरी इंजन प्रोजेक्ट को कभी बंद नहीं किया गया. डीआरडीओ अब इसे मानव रहित हवाई वाहनों, घातक हवाई वाहनों और पांचवीं पीढ़ी के फाइटर जेट्स के लिए तैयार कर रहा है.
हाल ही में जीटीआरई को इसकी टेस्टिंग में कामयाबी भी मिली है. इस इंजन ने ड्राई वैरियंट में पिछली जो भी चुनौतियां थीं उनको पार कर लिया है. कावेरी इंजन को मुश्किल टेस्टिंग से गुजारा गया था और इंजन ने बेहतरीन नतीजा दिया.
कावेरी इंजन की खासियत
कावेरी इंजन में हाई टेंपरेचर और हाई स्पीड की कंडीशन में थ्रस्ट लॉस को कम करने के लिए एक फ्लैट-रेटेड डिजाइन है. इसका ट्विन-लेन फुल अथॉरिटी डिजिटल इंजन कंट्रोल (FADEC) सिस्टम सटीक नियंत्रण सुनिश्चित करता है, साथ ही ज्यादा विश्वसनीयता के लिए मैन्युअल बैकअप भी है. यह डिजाइन इंजन को अलग-अलग ऑपरेटिंग सिचुएशन में ऑप्टिमल परफॉर्मेंस बनाए रखने में सक्षम बनाता है.
कावेरी इंजन प्रोजेक्ट इसलिए भी अहम हो जाता है क्योंकि अगर आने वाले समय में कावेरी इंजन अपने पूर्ण थ्रस्ट टारगेट को हासिल कर लेता है तो राफेल जैसे फाइटर जेट्स के लिए एक ऑप्शन बन सकता है. इस इंजन को 55 से 58 kN के बीच थ्रस्ट पैदा करने के लिए डिजाइन किया गया है और इसके 90 kN तक ले जाने का उम्मीद लगाई जा रही है. अगर ऐसा हो जाता है तो भारत 5वीं पीढ़ी के फाइटर जेट्स बनाने में तेजी ला सकता है और दुश्मन देश पाकिस्तान-चीन की नींद तो उड़ेगी ही साथ ही अमेरिका, रूस और फ्रांस जैसे देशों पर निर्भरता कम हो जाएगी.
प्रोजेक्ट को पूरा करने में क्यों हुई देरी?
कावेरी इंजन प्रोजेक्ट को अलग-अलग चुनौतियों की वजह से देरी और असफलताओं का सामना करना पड़ा है. इनमें एयरोथर्मल डायनेमिक्स, धातु विज्ञान और नियंत्रण प्रणाली जैसी उन्नत तकनीकों को शुरू से विकसित करने में कठिनाई शामिल है. पश्चिमी प्रतिबंधों ने सिंगल-क्रिस्टल ब्लेड जैसी महत्वपूर्ण सामग्रियों को देने से मना कर दिया, जबकि भारत के पास कुशल जनशक्ति और उच्च-ऊंचाई परीक्षण सुविधाओं की कमी थी, जिसके कारण उसे रूस के CIAM जैसे विदेशी सेटअप पर निर्भर रहना पड़ा.
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Source: IOCL























