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डिप्टी एसपी की झूठी गवाही और नकली मीटिंग का दावा; वो पांच सबूत जिसने दिला दी अतीक को उम्रकैद

अतीक पर पहला केस साल 1979 में दर्ज हुआ था. तब वो नाबालिग था. इसके बाद अतीक के खिलाफ अपराधिक मामलों का ये सिलसिला लगातार जारी रहा.

28 मार्च 2023 को अतीक अहमद को एमपी-एमएलए कोर्ट में उम्रकैद की सजा सुनाई गई. अतीक अहमद पर बहुजन समाज पार्टी (बसपा) विधायक राजू पाल की हत्या के चश्मदीद गवाह उमेश पाल के अपहरण का मामला दर्ज था. अदालत ने अतीक के भाई अशरफ सहित सात अन्य को बरी कर दिया. अदालत ने अतीक, दिनेश पासी और वकील खान शौकत हनीफ को दोषी ठहराया. 

प्रयागराज में जुर्म का दूसरा नाम अतीक पर 44 साल से कई मुकदमे दर्ज हैं. 1989 में अतीक ने अपने सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी शौकत इलाही को में मार गिराया गया था. 

17 साल का था तब किया था मर्डर

अतीक पर साल 1979 में इलाहाबाद में हत्या का आरोप लगा था. तब अतीक की उम्र महज 17 साल थी. तब से लेकर उसके खिलाफ 100 केस दर्ज हैं. 17 साल की उम्र से ही अतीक राज्य में कई गैंगस्टरों का नेटवर्क चला रहा था. इलाहाबाद, फूलपुर और आसपास के इलाकों में अतीक का बोलबाला हुआ करता था.

अतीक पर 1996 में अशोक साहू हत्याकांड, साल 2002 का नसीम अहमद हत्याकांड और साल 2005 में बीएसपी के विधायक राजू पाल की हत्या और राजू पाल की हत्या के एकलौते चश्मदीद गहवा उमेश पाल का अपहरण जैसे मामले दर्ज हैं. उमेश पाल मामले में अतीक को सजा दी गई है. 

अदालत ने किन सबूतों के आधार पर अतीक को ठहराया दोषी

उमेश पाल अपहरण कांड केस में अतीक के पक्ष में 52 गवाह खड़े हुए थे और उसके खिलाफ मात्र 8 ही लोगों ने गवाही दी थी. उमेश पाल के पक्ष में 19 दस्तावेजी सबूत दिए गए थे जबकि अतीक के वकील एक भी दस्तावेजी सबूत पेश नहीं कर पाए.

इन सबूतों की वजह से अतीक अहमद फंस गया 

लैंड क्रूजर: अतीक अहमद ने धूमनगंज थाना क्षेत्र के फांसी इमली के पास लैंड क्रूजर वाहन से उमेश पाल का अपहरण किया था. उमेश पाल ने अदालत में ये बता दिया था कि उसका अपहरण लैंड क्रूजर से किया गया था जिसका नंबर भी कोर्ट में था. इसकी बरामदगी पुलिस ने अतीक अहमद के पास से कर ली थी. 

झूठी साबित हुई मीटिंग वाली बात: अतीक अहमद ने अदालत में ये बयान दिया कि उमेश के अपहरण के समय वो अपने दफ्तर में  मीटिंग कर रहा था. इस बात को सच साबित करने के लिए उसने 10 से ज्यादा गवाह भी पेश किए. लेकिन कोई भी गवाह कोर्ट के सामने अतीक के इस दावे को साबित नहीं कर सका.

दसों गवाहों का कहना था कि सुबह 11:00 बजे से लेकर शाम 4:30 बजे तक अतीक के चकिया स्थित कार्यालय पर 28 फरवरी 2006 को बैठक चली. हालांकि अतीक अहमद की तरफ से इसका कोई लिखित सबूत पेश नहीं किया जा सका.  जिससे यह साबित हो सके कि उस दिन चकिया स्थित कार्यालय पर कोई मीटिंग चल रही थी. 

यह भी नहीं बताया जा सका कि उस मीटिंग का एजेंडा क्या था और इसमें कौन-कौन लोग शामिल होने वाले थे. 

डिप्टी एसपी की गवाही: अतीक अहमद ने अपने बचाव में सीबीआई के डिप्टी एसपी की भी गवाही कराई , लेकिन अतीक को इसका कोई फायदा नहीं हुआ. बचाव पक्ष के अधिवक्ताओं की ये दलील थी कि उमेश राजू पाल हत्याकांड का गवाह नहीं था. 

इस सिलसिले में  डिप्टी एसपी सीबीआई की गवाही कराई गई. जिन्होंने अपने बयान में बताया कि राजू पाल हत्याकांड का जो आरोप पत्र उनकी ओर से दाखिल किया गया उसमें कुल 77 गवाह हैं जिनमें से जनता के 61 गवाह शामिल थे. लेकिन इनमें उमेश पाल का नाम शामिल नहीं था.  

दिलीप पाल की गवाही:  उमेश पाल को इंसाफ दिलाने और अतीक को सजा दिलाने में चश्मदीद गवाह दिलीप पाल का खास किरदार रहा. दिलीप पाल अंत तक अपने बयान पर अड़ा रहा. 

दिलीप उस घटना का चश्मदीद था जिसने अपने बयान में बताया था कि घटना वाले दिन यानी 28 फरवरी 2006 को वह अपने मोटर गैराज से घर वापस आ रहा था.

दोपहर 2:00 बजे करीब वह फांसी इमली पेड़ के पास पहुंचने वाला था कि तभी देखा की पटरी पर उमेश पाल सांसद अतीक अहमद की दो गाड़ियों के बीच फंसे हुए थे.

झूठे साबित हुए दो गवाह: अतीक अहमद के साथ ही दोषी साबित हुए दिनेश पासी ने तीन गवाह पेश किए थे. जिनमें से एक ने खुद को हेलमेट बेचने वाला और दूसरे ने सीट बनाने वाला बताया था. लेकिन दोनों ही पूछताछ में साबित नहीं कर पाए.

इससे पहले कब गिरफ्तार हुआ है अतीक अहमद 

अतीक को राजू पाल की हत्या के आरोप में 2005 में गिरफ्तार किया गया था और तीन साल बाद उसे जमानत मिल गई थी. हालांकि, जेल के अंदर या बाहर, अतीक ने उत्तर प्रदेश के अंडरवर्ल्ड पर अपना दबदबा बनाए रखा. अतीक जेल के अंदर से अपने आदमियों की मदद से काम किया करता था.

अतीक पर लग चुका है रेप का आरोपियों का बचाने का आरोप

अतीक जब 2007 में जेल में बंद था तब उसपर रेप के आरोपियों को बचाने का आरोप लगा था. अतीक ने जिन लोगों को बचाया था उन सभी पर मदरसा के छात्रों का रेप करने का कथित तौर पर इल्जाम था. इसके बाद समाजवादी पार्टी ने अतीक को निष्कासित कर दिया. यह वह समय था जब बसपा प्रमुख मायावती ने यूपी में सत्ता में वापसी की थी. 

2008 में मनमोहन सरकार की मदद करने जेल से बाहर आया था अतीक ?

2008 में जब भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते को संसद में अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा, तो मनमोहन सिंह की सरकार के अधिकारियों ने गंभीर आरोपों में जेल में बंद कुछ सांसदों की ओर रूख किया. अतीक उन लोगों में से था जो फर्लो पर वोट देने के लिए निकला था और फिर अपनी बैरक में वापस लौट आया.  

चुनावी नतीजों ने दिया झटका लेकिन कम नहीं हुआ अतीक का दबदबा 

अतीक को 2009 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ से अपना दल के उम्मीदवार के रूप में  हार का सामना करना पड़ा.  लेकिन चुनावी हार का मतलब यह नहीं था कि उसका दबदबा कम हो गया था. 2012 के यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान अतीक ने जेल से अपना नामांकन पत्र दाखिल किया था. उस समय मायावती मुख्यमंत्री थीं. 

अतीक ने चुनाव प्रचार करने के लिए जमानत लेनी चाही और इलाहाबाद उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया. तब दस न्यायाधीशों ने उसकी जमानत याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया.

2013 में हुई अतीक की रिहाई

यूपी में समाजवादी पार्टी के सत्ता में आने के एक साल यानी 2013 में अतीक को रिहा किया गया था. उसने समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के रूप में यूपी के श्रावस्ती से 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन फिर से हार गया.

अतीक लंबे समय से विधायक नहीं था लेकिन उसे ये पता था कि वो सबसे बेहतर ढंग से कौन सा काम कर सकता है. अतीक और उसके लोगों ने दिसंबर 2016 में एक ईसाई अल्पसंख्यक संस्थान के कर्मचारियों पर हमला किया. यह हिंसा कैमरे में कैद हो गई.

पहले अखिलेश और फिर योगी अदित्यनाथ की सरकार ने अतीक को सजा दिलाने की ठानी

समाजवादी पार्टी का नियंत्रण जनवरी 2017 में अखिलेश यादव के पास आ गया. अखिलेश अतीक जैसों को पसंद नहीं करते थे. अतीक को गिरफ्तार न करने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी पुलिस को कड़ी फटकार लगाई. अखिलेश ने न्यायिक कदम का फायदा उठाया.  गिरफ्तारी हुई और अतीक जेल चला गया.

मार्च 2017 में, भाजपा के योगी आदित्यनाथ इस वादे पर यूपी के सीएम बनें कि वह अपराधियों को जेल के अंदर भेजवाएंगे. अतीक को उसके गढ़ इलाहाबाद से राज्य की देवरिया जेल ले जाया गया था. उसी दौरान पुलिस की कार्रवाई में आजम खान और मुख्तार अंसारी जैसे लोगों को भी निशाना बनाया गया.

2018 में अतीक लोकसभा उपचुनाव में जेल से निर्दलीय के रूप में लड़ने के लिए फूलपुर लौट आया, लेकिन राज्य की नई राजनीतिक वास्तविकताओं को देखते हुए अब अतीक का जीतना और भी मुश्किल था.

उस दौरान लखनऊ के एक व्यापारी का कथित तौर पर अपहरण कर लिया गया और उसे देवरिया जेल ले जाया गया, जहां अतीक ने रंगदारी नहीं देने पर उसकी पिटाई कर दी. अतीक के खिलाफ ऐसे और भी मामले सामने आए. 

इसके बाद अतीक को बरेली जेल ले जाया गया. जेल अधीक्षक घबराए हुए थे, वो अतीक को हिरासत में नहीं लेना चाहते थे. अप्रैल 2019 में, योगी सरकार ने अतीक को प्रयागराज की नैनी जेल में स्थानांतरित कर दिया.  ये वही समय था जब सुप्रीम कोर्ट देवरिया जेल मामले में अपना फैसला सुनाने वाला था. फैसले के बाद अतीक का नया पता साबरमती जेल था.

इसी समय यूपी पुलिस ने अतीक गैंग को तबाह करने के लिए गिरफ्तारी, बंदूक लाइसेंस और संपत्ति और बैंक खाते की जब्ती करनी शुरू कर दी थी. इसके बाद, अशरफ और अतीक के बेटों को भी गिरफ्तार किया गया.

अतीक के परिवार का अब कैसे  होगा गुजारा 

अतीक की पत्नी शाइस्ता परवीन ने मीडिया को ये बताया था कि मेरे पति, बहनोई अशरफ और मेरे दो बेटे और करीब 250 समर्थक जेल में हैं और हमारे घरों को अवैध रूप से ध्वस्त कर दिया गया है. हमारे 13 बैंक खातों को जब्त कर लिया गए हैं और हम वित्तीय संकट से गुजर रहे हैं. 

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