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मिस्टर रेल मिनिस्टर, हम यात्रा करना चाहते हैं, अंतिम यात्रा नहीं!

नई दिल्ली: मिस्टर रेल मिनिस्टर. आपकी रेल देश में लेट है. और देश की आम जनता के नाम के आगे भी लेट यानी स्वर्गीय लगा रही है. देश की जनता अपनी गाढ़ी कमाई खर्च कर सुरक्षित और मंगलमय यात्रा करना चाहती है. लेकिन विडंबना देखिए, सुरक्षित यात्रा के नाम पर आपकी ट्रेन घंटों घंटों सिर्फ सरकती रह जाती है. फिर भी हादसों की रफ्तार कम नहीं होती. रेल मंत्रालय संभालने वाले प्रभु जी आज आपको समझना होगा. ये देश रेल में यात्रा करना चाहता है अंतिम यात्रा नहीं. यात्रा चाहिए, अंतिम यात्रा नहीं क्या होगा इस बात का तमगा लेने से कि दुनिया का सबसे चौथा बड़ा रेल नटवर्क हिंदुस्तान का है. जबकि तीन साल के आंकड़े कहते हों कि रोज औसत 83 रेल हादसे भारत में हो रहे हैं. सुनने-समझने में बहुत अच्छा लगता है कि एक ट्वीट पर रेल मंत्री दूध, कंबल, बच्चों के लिए डायपर तक ट्रेन में पहुंचवा देते हैं. लेकिन रेल हादसों में आप के अपनों की जान नहीं जाएगी. इसकी गारंटी कब मिलेगी ? एक ट्रेन लेट होती है तो कितने रुपए का नुकसान होता है? किस प्रदेश में होते हैं सबसे ज्यादा रेल हादसे ? कौन से महीने में होते हैं सबसे ज्यादा रेल एक्सीडेंट ? दिन में कितने बजे होते हैं सबसे ज्यादा मौत के हादसे ? 38 दिन में कानपुर ने दो रेल हादसे देख लिए हैं. और अफसर शुक्र मना रहे हैं कि कोई मरा नहीं. सिर्फ मामूली सुधारों का झुनझुना बजाती हैं सरकारें. लेकिन मौत की नींद सुलाने वाले सुस्त और लापरवाह रेल सिस्टम से आजादी कब मिलेगी ? कानपुर से सिर्फ पचास किलोमीटर दूर कागज के पत्तों की तरह बिखरे सियालदह-अजमेर एक्सप्रेस के सिर्फ 15 डिब्बे नहीं हैं. ये भारतीय रेल के जंग चुके सिस्टम और चरमरा चुकी सुरक्षा प्रणाली की बिखरी हुई सोच है. जिसने आज भी सैकड़ों लोगों को मौत के मुहाने पर खड़ा कर दिया. 38 दिन पहले जिस कानपुर के पुखरायां में रेल हादसे में 145 लोगों की जान गई, उसी कानपुर के रूरा में आज सुबह सियालदह-अजमेर एक्सप्रेस के 15 डिब्बे उतर गए. 50 से ज्यादा लोग जख्मी हो गए. और देश के रेल मंत्री जीरो एक्सीटेंड एक्शन प्लान का अब भी सिर्फ झुनझुना ही बजा रहे हैं. रेल दुर्घटना के आंकड़े इसीलिए आज हमको कहना पड़ रहा है कि रेल मंत्री जी, जनता यात्रा करना चाहती है ट्रेन में अंतिम यात्रा नहीं. सिर्फ एक रुपए में दस लाख रुपए का बीमा करके सीना फुलाने से अच्छा होगा कि देश की रेल आम लोगों को जिंदगी की गारंटी दे. 2012 में देश में 31 हजार 612 रेल दुर्घटना हुई. 2013 में 31 हजार 236 रेल हादसे देश में हुए. 2014 में 28 हजार 360 रेल हादसों से देश दहला. तीन साल के आंकड़े कहते हैं कि देश में औसत रोज 83 हादसे हो रहे हैं. आज भी रेलवे ने कह दिया कि हम हादसे की जांच करेंगे. रेलवे कहता है कि हादसों का कारण कोहरा है. इसलिए आज रेल मंत्रालय को आंकड़ों का आईना जरूर देखना होगा. रेलवे दुखड़ा रो देता है कि हादसे कोहरे या बारिश में बाढ़ के कारण होते हैं. लेकिन सच्चाई ये है कि रेल हादसे देश के बारहों महीने में होते हैं. आंकड़ों के आईने में रेल को देखिए मंत्री जी आंकड़े कहते हैं कि जनवरी फरवरी में अगर 4000 से ज्यादा रेल हादसे हुए तो अक्टूबर-नवंबर में करीब 4840 रेल हादसे हुए हैं. मार्च अप्रैल जब कोहरा नहीं होता तब भी तो 4515 रेल हादसे इन दो महीनों में हुए. हादसों के वक्त पर गौर किया जाए तो ज्यादातर रेल हादसे सुबह 6 से दोपहर बारह बजे के बीच होते हैं. 2014 के आंकड़े कहते हैं कि अगर रात बारह से सुबह 6 बजे के बीच 4556 रेल एक्सीडेंट देश में हुए हैं तो सुबह 6 बजे से दोपहर बारह बजे के बीच हादसों की तादाद 9773 पहुंच गई. एक आरटीआई से ये भी पता चला है कि देश के आजाद होने के बाद अगर पहली बार 1962 में रेल हादसा हुआ तो 10 हजार मुआवजा तय किया गया. लेकिन पिछले 19 साल से देश में रेल हादसे पर चार लाख रुपए ही मुआवजा दिया जा रहा है. रेल मंत्रालय कहता है कि कोहरे में यात्रियों की सुरक्षा को ध्यान में रखकर ट्रेनें धीमी चलाई जाती हैं. लेकिन क्या फायदा जब धीमी रफ्तार पर भी रेल हादसे का शिकार हो जाए. बातें बुलेट ट्रेन की होती हैं लेकिन रोज लाखों लोग रेलवे की लेटलतीफी के जाल में फंस रहे हैं. देश में कुल 68 हजार किलोमीटर लंबी पटरी है. जिसमें उत्तर भारत की 10 हजार किमी पटरी पर ट्रेनें कोहरे में लेट होती हैं.रेल मंत्रालय खुद बताता है कि दिसंबर, जनवरी, फरवरी में 18 हजार यात्री ट्रेन लेट होती हैं. यानी रोज 4 लाख मुसाफिर ट्रेन लेट होने के कारण प्रभावित हो रहे हैं. एक अनुमान के मुताबिक ट्रेन लेट होने पर रेलवे को सालाना लगभग 1200 करोड़ का नुकसान सहना पड़ता है. यहां आपको एक एक्स्ट्रा जानकारी भी दे दें. कैग की एक रिपोर्ट के मुताबिक हर साल चेन पुलिंग से ही रेलवे को तीन हजार करोड़ रुपए का नुकसान होता है. कोहरे का इलाज तो फिर क्या 160 साल से ज्यादा पुरानी भारतीय रेल हर साल कोहरे में ट्रेन की लेटलतीफी का हल नहीं खोज सकती. अगर देश अंतरिक्ष पर पहुंच सकता है तो फिर कोहरे का इलाज भारतीय रेल क्यों नहीं बताती? त्रिनेत्र डिवाइस यानी रेलवे की तीसरी आंख की भी जानकारी आज ले लीजिए. जिससे दावा है कि कोहरे में भी रेल बिना हादसे और बिना लेट हए दौड़ पाएगी. त्रिनेत्र ऐसी ड़िवाइस है जिसमें उच्च क्षमता का आप्टिकल वीडियो कैमरा, अति संवेदनशील इंफ्रारेड कैमरा और रेडार आधारित ट्रेन मैपिंग सिस्टम लगा होगा. जिनकी मदद से ट्रेन ड्राइवर को 1200 मीटर पहले ही सिग्नल की स्थिति की सटीक जानकारी होगी. दक्षिण भारत में इसका सफल टेस्ट कर लिया है. अब उत्तर भारत में इस तकनीक को परखा जा रहा है.
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