दिल्ली: पराली को खाद में बदलने के लिए बायो डिकम्पोजर का छिड़काव शुरू, सीएम केजरीवाल ने की शुरुआत
सीएम केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली में लगभग 700-800 हेक्टेयर ज़मीन है जहां गैर बासमती धान उगाई जाती है. वहां पराली होती है. इसे कई बार जलाना पड़ता था, अब यहां घोल छिड़का जाएगा.

नई दिल्ली: पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण से निपटने के लिए दिल्ली में आज से बायो डिकम्पोज़र तकनीक से बने घोल का खेतों छिड़काव शुरू कर दिया गया है. नरेला के हिरनकी गांव में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने छिड़काव की प्रक्रिया शुरू की. दिल्ली के पूसा भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) ने इस तकनीक को विकसित किया है. 3 एकड़ के खेत से छिड़काव की शुरुआत की गई है.
जानकारी के मुताबिक दिल्ली में करीब 2000 एकड़ गैर-बासमती खेती वाली ज़मीन है, जिसमे पराली पैदा होती है. उसमें से करीब 1500 एकड़ ज़मीन में छिड़काव के लिए दिल्ली के किसानों से अनुमति मिल गई है और बाकी से बातचीत जारी है.
वैज्ञानिकों की टीम सैंपल की इकट्ठा कर रही है
जिस खेत में घोल का छिड़काव किया जा रहा है वहां से पूसा इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों की टीम वहां से सैम्पल कलेक्शन भी कर रही है. पूसा रिसर्च इंस्टीट्यूट की प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉ लिवलीन शुक्ला ने छिड़काव के बाद की प्रक्रिया के बारे में समझाते हुए बताया कि स्प्रे के बाद गेहूं की बुआई के लिए जो पानी देते हैं वो देकर छोड़ देंगे. 15 दिन बाद ये पराली इतनी गल जाएगी कि बुआई इनकी आराम से हो जाएगी. 25 दिन में ये काफी हद तक गल जाता है. 25 दिन के बाद भी पूसा की टीम खेत से सैम्पल लेगी और इस मिट्टी में गेहूं की फसल जब कट जाएगी तबका सैम्पल भी लेंगे.
इसके साथ ही उन्होंने बताया कि इससे पता चलेगा कि कार्बन, नाइट्रोजन, फास्फोरस और जीवाणुओं की मात्रा कितनी बढ़ी है. ये भूमि की उर्वरता बढ़ेगी. धान की कटाई और गेहूं की बुआई के बीच मे 10-15 दिन का समय होता है तो 15 दिन में काफी गल कर अगली फसल के लिये ज़मीन तैयार हो जायेगी. पूरी तरह से खाद बनने में 30-40 दिन लगेंगे और 15 दिन में बुआई के लायक हो जायेगा.
खेतों में हो रहे छिड़काव पर किसानों का क्या कहना है?
जिन किसानों के खेतों में घोल का छिड़काव कराया जा रहा है उन किसानों का कहना है कि सरकार की ओर से पहले एक टीम गांव-गांव गई थी और पूरी प्रक्रिया के बारे में बताया था. इसलिये उन्हें चिंता नहीं है कि अगली बुआई में किसी तरह की समस्या आएगी. नवम्बर के पहले हफ्ते में बुआई का काम शुरू करते हैं तब तक उम्मीद है कि ज़मीन तैयार हो जायेगी. अगर ये सफल रहा तो आगे से पराली के लिए यही तकनीक इस्तेमाल की जाएगी. इससे पहले कोई तरीका न होने के चलते उन्हें पराली जलानी पड़ती थी क्योंकि खरीददार भी ज़्यादा नहीं मिलते.
सारा इंतजाम दिल्ली सरकार ने किया है- अरविंद केजरीवाल
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा, "पराली जलाने की समस्या से निजात पाने के लिए पूसा इंस्टीट्यूट ने घोल बनाने का तरीका निकाला है. आज से 10 दिन पहले ये प्रक्रिया शुरू हुई थी. दिल्ली में लगभग 700-800 हेक्टेयर ज़मीन है जहां गैर बासमती धान उगाई जाती है. वहां पराली होती है जिसे कई बार जलाना पड़ता था. अब ये घोल यहां छिड़का जाएगा जिसका सारा इंतज़ाम दिल्ली सरकार ने किया है.”
किसानों को इसके लिए दाम देने की जरूरत नहीं
मुख्यमंत्री ने कहा, “सारा घोल दिल्ली सरकार ने बनवाया है और इसे छिड़कने के लिये ट्रैक्टर का इंतज़ाम और छिड़कने वालो का सारा इंतज़ाम दिल्ली सरकार ने किया है. किसान को इसके लिए कोई दाम देने की ज़रूरत नहीं है. अगले कुछ दिन के अंदर 700-750 हेक्टेयर में छिड़काव हो जाएगा और 20-25 दिन के अंदर ये सारी पराली खाद में तब्दील हो जाएगी. अगली फसल बोने के लिए 20-25 दिन में ज़मीन तैयार हो जाएगी."
जमीन की उर्वरता और पैदावार बढ़ेगी
किसानों पर इसका क्या असर होगा इस पर केजरीवाल ने कहा, "मैं उम्मीद करता हूं कि पूसा इंस्टीट्यूट पिछले 4-5 साल से इस पर प्रयोग कर रहा है और जो उनका दावा है वो सही है और इसका फायदा होगा. अभी तक किसान इसको जलाया करते थे जलाने से जो उपयोगी बैक्टेरिया होते थे ज़मीन में वो भी मर जाया करते थे. अब इनको खाद भी कम इस्तेमाल करनी होगी और ज़मीन की उर्वरता बढ़ेगी और पैदावार भी बढ़ेगी."
पड़ोसी राज्य का धुंआ दिल्ली आने लगा- केजरीवाल
पड़ोसी राज्यों से होने वाली पराली की समस्या पर मुख्यंत्री ने कहा, "मुझे चिंता इस बात की है कि आस पास के राज्यों में फिर से पराली जलाने का काम शुरू हो गया है. जिसकी वजह से धुआं धीरे धीरे दिल्ली पहुंचने लगा है. पिछले 10 महीने से दिल्ली में प्रदूषण नियंत्रण में थे लेकिन अब फिर पॉल्युशन बढ़ने लगा है. मुझे चिंता दिल्ली के लोगों की है, पंजाब और हरियाणा के लोगों की है. आप ये सोचिये की पंजाब से जो धुआं आता है दिल्ली तक आते आते थोड़ा कम हो जाता है लेकिन जिस गांव में किसान अपनी पराली जलाने को मजबूर हो रहा है उस गांव के अंदर कितना प्रदूषण होगा ये आप सोच सकते हैं. पंजाब हरियाणा उत्तर प्रदेश के किसान दुखी हो रहे हैं दिल्ली की जनता दुखी हो रही है और सारी सरकारें आंख बंद करके बैठी हुई हैं. मैं उम्मीद करता हूँ कि बाकी सरकारें भी ठोस कदम उठाएंगी ताकि किसानों को भी इससे राहत मिल सके और सारे उत्तर भारत को प्रदूषण से मुक्ति मिल सके."
केंद्र पर सीएम ने साधा निशाना
केंद्र सरकार और पड़ोसी राज्यों पर निशाना साधते हुए केजरीवाल ने कहा, "पिछले कितने सालों से हर साल इस समय में पूरा उत्तर भारत प्रदूषण की वजह से दुखी हो जाता है लेकिन ऐसा क्यों है कि कोई कदम नहीं उठाये जा रहे हैं? हमे किसी को ब्लेम नहीं करना है सबको मिलकर इसका समाधान निकालना है. अगर दिल्ली सरकार 700 हेक्टेयर के लिए कर सकती है तो बाकी सरकारें भी कर सकती हैं. जब हमने ये शुरू किया था तो मैंने काफी कोशिश की सम्पर्क करने की केंद्र सरकार से, अगर वो चाहते तो कुछ तो काम कर सकते थे. पूसा वाली तकनीक हमें काफी लेट पता चली उनको भी पता था. सबको गंभीर होना पड़ेगा."
गौरतलब है कि पराली को खाद में बदलने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने 20 रुपये की कीमत वाली 4 कैप्सूल का एक पैकेट तैयार किया है. 4 कैप्सूल से पराली पर छिड़काव के लिए 25 लीटर तरल पदार्थ बनाया जा सकता है और 1 हेक्टेयर में इसका इस्तेमाल कर सकते हैं.
तरल पदार्थ बनाने के लिये पहले 5 लीटर पानी में 100 ग्राम गुड़ उबालना है और ठंडा होने के बाद घोल में 50 ग्राम बेसन मिलाकर कैप्सूल घोलना है. इसके बाद घोल को 10 दिन तक एक अंधेरे कमरे में रखना होगा, जिसके बाद पराली पर छिड़काव के लिए तरल पदार्थ तैयार हो जाता है. दिल्ली सरकार ने नजफगढ़ के खड़खड़ी नाहर गांव में घोल बनाने के लिये एक निर्माण केंद्र बनाया है जहाँ बड़े पैमाने पर घोल बनाने का काम चल रहा है.
Source: IOCL





















