तीन तलाक असंवैधानिक है या नहीं, सुप्रीम कोर्ट करेगी फैसला: अटार्नी जनरल

नई दिल्ली: तीन तलाक के खिलाफ कानून बनाने की शक्ति संसद के पास है लेकिन ‘‘गेंद अब सुप्रीम कोर्ट के पाले’’ में है. अटॉर्नी जनरल :एजी: मुकुल रोहतगी ने कहा है कि अब कोर्ट को इस प्रथा की संवैधानिक वैधता पर निर्णय करना है.
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के हालिया हलफनामे को बताया ‘‘छलावा’’
रोहतगी ने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के हालिया हलफनामे को ‘‘छलावा’’ बताया. एमआईएमपीएलबी ने हलफनामे में कहा था कि जो लोग तीन तलाक की प्रथा को अमल में लाएंगे उनका सामाजिक बहिष्कार किया जाएगा. उन्होंने कहा कि पहले संसद ऐसे कानून ला चुकी है जिसमें छुआछूत और सती जैसी असंवैधानिक प्रथाओं से छुटकारा पाया गया है.
रोहतगी ने कहा कि संसद को कानून बनाने का अधिकार है और पहले भी वह ऐसा कर चुकी है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि इस प्रथा को अवैध करार देने के लिये कोर्ट इसमें हस्तक्षेप नहीं करे. उन्होंने कहा कि गेंद अब कोर्ट के पाले में है और उसे ही निर्णय करना है.
'कोर्ट का ध्यान बंटाने के लिए एक हताशा भरा प्रयास है हलफनामा'
अटॉर्नी जनरल का बयान इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने छह दिनों तक सुनवाई के बाद तीन तलाक के मुद्दे पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. रोहतगी ने कहा कि हलफनामा 'कोर्ट का ध्यान बंटाने के लिए एक हताशा भरा प्रयास है.'
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के हलफनामे में यह भी कहा गया है कि ‘काजियों’ को सलाह जारी कर बताया जाएगा कि दूल्हों से कहें कि वे तलाक की इस प्रथा को नहीं अपनाएंगे. उन्होंने कहा कि इस मुस्लिम संस्था का प्रयास अपने समुदाय में इसके लिये एक कानूनी शुचिता प्राप्त करने का प्रयास है.
प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष इस मामले में सुनवाई के दौरान रोहतगी ने कहा था कि यदि तीन तलाक सहित सभी तरह के विवाह विच्छेद के तरीकों को निरस्त किया जाता है तो मुस्लिम समुदाय में विवाह और विवाह विच्छेद के मामलों को नियंत्रित करने के लिये एक नया कानून लाया जायेगा.
अहमदिया संप्रदाय ने तीन तलाक को बताया कुरान के खिलाफ
देश में तीन तलाक पर जारी बहस के बीच अहमदिया संप्रदाय ने इसे कुरान और सुन्नत के खिलाफ बताते हुए कहा कि इसका समर्थन करने वाले मौलवियों पर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए. जमाअत अहमदिया मुस्लिमा के प्रवक्ता के तारिक अहमद ने कहा कि पति द्वारा पत्नी को एक ही बार में तीन तलाक बोल देने से तलाक नहीं होता. उन्होंने कहा कि इस्लाम की बुनियाद पवित्र कुरान, सुन्नत और हदीस (मुहम्मद साहब की बातों) पर टिकी है. हर मसला इन्हीं तीन के आधार पर हल किया जाना चाहिए. मुहम्मद साहब ने कहा था कि तलाक हलाल तो है लेकिन यह अल्लाह की निगाह में सबसे बुरी चीज है.
तारिक अहमद ने कहा कि इस्लाम ने यह रास्ता दिया कि जब सुलह-सफाई के तमाम रास्ते बंद हो जाएं और साथ रहना नामुमकिन हो जाए तो पति और पत्नी में तलाक हो जाना चाहिए. पुरुषों को तलाक का अधिकार दिया तो महिलाओं को खुला का अधिकार मिला, जिसमें वह कुछ स्थितियों में पति से अलग होने की मांग कर सकती हैं. उन्होंने कहा कि इस्लाम की इन बातों के आधार पर जमाअत अहमदिया मुस्लिमा का मानना है कि एक साथ तीन बार तलाक तलाक तलाक कहने पर भी इसकी गिनती एक ही मानी जाएगी. और, इसके लिए भी जरूरी है कि तलाक देने वाला पुरुष होश में हो, गुस्से में न हो और दो गवाह मौजूद हों.
पति-पत्नी में सुलह-सफाई की गुंजाइश के लिए वक्त
तारिक अहमद ने कहा कि कुरान की आयत अलबकरा: 230 से स्पष्ट है कि तलाक तीन बार अलग-अलग ही देनी होगी. एक साथ तलाक देना कुरआन के आदेश का स्पष्ट उल्लंघन होगा. इसी तरह हदीस में आता है कि मुहम्मद साहब के सामने जब यह बात आई कि किसी ने एक ही बार में तीन तलाक दे दी है तो उन्होंने कहा कि इसे एक ही गिना जाएगा. उन्होंने कहा कि एक तलाक और फिर दूसरी तलाक के बीच समय होता है जिसमें पति-पत्नी में सुलह-सफाई की गुंजाइश के लिए वक्त दिया जाता है. फिर जब निश्चित समय के बाद तीसरी बार तलाक बोला जाता है, तब तलाक पूर्ण हो जाता है और पति-पत्नी अलग हो जाते हैं.
अहमदिया संप्रदाय के प्रवक्ता ने साफ कहा कि इस्लाम में हलाला की कोई जगह नहीं है. यह इस्लामी शरीयत का स्पष्ट उल्लंघन और बड़ा गुनाह है. उन्होंने कहा कि जमाअत अहमदिया मुस्लिमा भारत सरकार और न्यायपालिका से विनम्र निवेदन करती है कि कुरआन और इस्लामी शरीयत के बुनियादी नियमों में न तो कोई कमी है और न कोई त्रुटि है. कमी और त्रुटि इन आदेशों पर अनुकरण करने और करवाने वालों में है. आजकल के तथाकथित मौलवी कुरान की शिक्षाओं को गलत रंग में दुनिया के सामने पेश कर इस्लाम को बदनाम कर रहे हैं, उनके खिलाफ जरूरी कार्रवाई होनी चाहिए.
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