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60 साल तक फाइलों में फंसा रहा मुंबई का अटल सेतु, सिर्फ 6 साल में कैसे बनकर हुआ तैयार?

Mumbai Atal Setu History: साल 2008 में अनिल अंबानी की रिलायान्स इंफ्रा ने अटल सेतु की बोली लगाई और पीपीपी मॉडल के तहत अनिल अंबानी को यह ब्रिज 9 साल 11 महीने में बनाकर तैयार करना था.

Mumbai Atal Setu History: 12 जनवरी 2024 को पीएम मोदी ने अटल सेतु (मुंबई-ट्रांस हार्वर लिंक) का उद्घाटन किया. इस पुल से मुंबई वासियों की जिंदगी काफी हद तक आसान हो गई. पुल के बनने के बाद मुंबई के सेवरी से रायगढ़ जिले के चिर्ले के बीच की दूरी 15 से 20 मिनट तक सिमट गई. पहले इस दूरी को तय करने में दो घंटे लग जाते थे. उद्घाटन के बाद यह देश का सबसे लंबा पुल बन चुका है. इस पुल की लंबाई 22 किमी है जिसमें से 16. 5 किमी का हिस्सा समुद्र के ऊपर है, जबकि 5.5 किमी का हिस्सा जमीन पर बना है.

अब आपको बताते हैं इस पुल को बनाने की जरूरत क्यों महसूस हुई? दरअसल मुंबई की आबादी करीब दो करोड़ से ज्यादा है और हर साल इस संख्या में इजाफा ही हो जाता है. अब जनसंख्या ज्यादा है तो गाड़ियों की तादाद भी ज्यादा होगी, नतीजा मुंबई का ट्रैफिक आउट ऑफ कंट्रोल हो जाता है. इस वजह से यहां सी ब्रिज बनाने की जरूरत महसूस हुई.

अटल सेतु का इतिहास और निर्माण की लंबी जद्दोजहद

बात शुरू होती 60 के दशक से तब के बंबई से लगी खाड़ी यानी बे और मेन लैंड के बीच एक पुल बनाने की सोची गई. सबसे पहले अमेरिकन कंसल्टेंसी फर्म विलबर स्मिथ एसोसिएट ने 1963 में इसका आइडिया सुझाया. 2 अक्टूबर 1963 को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने हिमाचल प्रदेश में भाखड़ा नंगल डैम का उद्घाटन किया और इसी दौरान इस पुल का निर्माण कार्य भी शुरू हुआ, लेकिन किसी वजह से इस पर आगे काम नहीं हो पाया और इसे पूरा होने में 61 साल लग गए. पुल का काम लेट हुआ, फिर आया 90 का दशक और सरकार की नजर फिर से इस प्रोजेक्ट पर पड़ी. इसके लिए 2006 में टेंडर्स निकाले गए. 

साल 2008 में अनिल अंबानी की रिलायान्स इंफ्रास्ट्रक्चर ने इसकी बोली लगाई और पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप यानी पीपीपी मॉडल के तहत अनिल अंबानी को यह ब्रिज 9 साल 11 महीने में बनाकर तैयार करना था. उस वक्त इसकी लागत थी 6000 करोड़ रुपए.

अनिल अंबानी की रिलायान्स इंफ्रा ने प्रोजेक्ट से खींच लिए हाथ

2008 में अनिल अंबानी को कांट्रैक्ट तो मिला, लेकिन कुछ महीनों बाद अंबानी की कंपनी ने प्रोजेक्ट से हाथ खींच लिए और इसके बाद टेंडर दर टेंडर बिडिंग पे बिडिंग हुई और प्रोजेक्ट जस का तस वहीं का वहीं रुक गया. फिर इसे बनाने वाली नोडल एजेंसी को बदला गया. अब जिम्मेदारी मुंबई मेट्रोपोलिटन रीजन डेवलपमेंट अथॉरिटी यानी एमएमआरडीए के पास आ गई. यहां से काम ने थोड़ी सी रफ्तार पकड़नी शुरू की एमएमआरडीए ने इसके लिए जापान की एजेंसी जापान इंटरनेशनल कॉपरेशन एजेंसी यानी जेआईसीए के साथ एक एग्रीमेंट साइन किया. इस एग्रीमेंट के तहत जेआईसीए पूरे प्रोजेक्ट की लागत का 80 प्रतिशत फंड करने के लिए सहमत हो गई. इसके अलावा बाकी का खर्च केंद्र और फडणवीस सरकार को मिलकर उठाना था. पूरी डील और टेंडर की प्रक्रिया दिसंबर 2017 में पूरी हो गई और 2018 के शुरुआती दिनों में इस पर काम भी शुरू हो गया. 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस ब्रिज को लेकर कहा था, "मैं 24 दिसंबर 2016 का दिन नहीं भूल सकता जब मैं मुंबई ट्रांस हार्बर लिंग अटल सेतु के शिलान्यास के लिए यहां आया था तब मैंने छत्रपति शिवाजी महाराज को नमन करते हुए कहा था कि लिख कर रखिए देश बदलेगा भी और देश बढ़ेगा भी जिस व्यवस्था में सालों साल काम लटकाने की आदत पड़ गई उससे देशवासियों को कोई उम्मीद नहीं लोग सोचते थे उनके जीते जी बड़े प्रोजेक्ट पूरे हो जाए यह मुश्किल ही है."

नाम की तरह पुल भी 'अटल'         

अटल सेतु को इतना मजबूत बनाया गया है कि यह समुद्री तूफानों को भी सह सकता है, बड़े-बड़े जहाज आसानी से इसके नीचे से निकलकर पास के बंदरगाहों पर जा सकते हैं अगले 100 साल तक इस ब्रिज को कुछ भी नहीं होगा. ये दावे एमआरडीए करती रही है. हालांकि अब इस पुल का उद्घाटन हुआ तो लोगों ने इस पर लगने वाले टोल का खूब विरोध किया. उनका कहना है कि एक बार में पुल को पार करने के लिए 250 रुपये का टोल लेना बहुत ज्यादा गलत है. यह बहुत ज्यादा है वहीं सरकार ने कहा कि शुरुआत में 500 रुपये का टोल का प्रस्ताव लाया गया था लेकिन सरकार ने जनता की भलाई के लिए इसे घटाकर आधा कर दिया.  खैर इस तरह के पुल देश की बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिए बेहद जरूरी है और उम्मीद करते हैं कि भविष्य में इस तरह के इंफ्रास्ट्रक्चर के प्रोजेक्ट को लटकाया नहीं जाएगा उन्हें ठंडे बस्ते में नहीं डाला जाएगा. 

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डिस्क्लेमर: यह पेड फीचर आर्टिकल है. एबीपी नेटवर्क प्राइवेट लिमिटेड/या एबीपी लाइव किसी भी तरह से इस आर्टिकल के कटेंट या यहां व्यक्त किए गए विचारों के लिए जिम्मेदार नहीं है. पाठकों को अपने विवेक का इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है.

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