'भारत के विचार के खिलाफ है धर्मनिरपेक्षता', RSS नेता के बयान को लेकर छिड़े विवाद पर बोले CM हिमंत बिस्वा सरमा
धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद शब्द को लेकर उठे विवाद के बीच असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि जब हम आपातकाल के बारे में बात करते हैं तो इसके बचे प्रभाव को दूर करने का भी यह सही टाइम है.

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने शनिवार (28 जून, 2025) को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सुझाव को दोहराते हुए संविधान की प्रस्तावना से धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद को हटाने की वकालत की. उन्होंने कहा कि यह सही समय है जब इमरजेंसी से जुड़ी विरासतों को हटाया जाए, जिनमें ये शब्द भी शामिल हैं.
गुवाहाटी स्थित बीजेपी मुख्यालय में द इमरजेंसी डायरीज (इयर्स दैट फोर्ज्ड ए लीडर) नाम की किताब का विमोचन करते हुए असम के मुख्यमंत्री ने कहा कि ये शब्द मूल संविधान का हिस्सा नहीं थे और इन्हें हटा दिया जाना चाहिए, क्योंकि धर्मनिरपेक्षता सर्व धर्म समभाव के भारतीय विचार के खिलाफ है और समाजवाद कभी भी भारत की मूल आर्थिक दृष्टि का हिस्सा नहीं था.
'पीएम मोदी औपनिवेशिक शासन की विरासत को मिटाने के लिए काम कर रहे'
हिमंत बिस्वा सरमा ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि आज हमने द इमरजेंसी डायरी बुक का विमोचन किया, जो इमरजेंसी के दौरान संघर्ष और प्रतिरोध के बारे में है. उन्होंने कहा कि जब हम आपातकाल के बारे में बात करते हैं तो इसके बचे प्रभाव को दूर करने का भी यह सही टाइम है, जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी औपनिवेशिक शासन की विरासत को मिटाने के लिए काम कर रहे हैं. इमरजेंसी के 2 मुख्य परिणाम संविधान में धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद जैसे शब्दों को जोड़ना था.
'धर्मनिरपेक्षता सर्वधर्म समभाव के भारतीय विचार के खिलाफ'
सरमा ने कहा कि मेरा मानना है कि धर्मनिरपेक्षता सर्व धर्म समभाव के भारतीय विचार के खिलाफ है. समाजवाद भी वास्तव में हमारा आर्थिक दृष्टिकोण कभी नहीं था, हमारा ध्यान हमेशा सर्वोदय अंत्योदय पर रहा है. इसलिए मैं भारत सरकार से प्रस्तावना से इन दो शब्दों को हटाने का अनुरोध करता हूं, क्योंकि वे मूल संविधान का हिस्सा नहीं थे और बाद में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा जोड़े गए थे.
क्या कहा था RSS नेता दत्तात्रेय होसबोले ने?
इमरजेंसी को लेकर आयोजित एक कार्यक्रम में RSS नेता दत्तात्रेय होसबोले ने कहा था कि संविधान की प्रस्तावना में समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष शब्द इमरजेंसी के दौरान शामिल किए गए थे और ये कभी भी उस संविधान का हिस्सा नहीं थे, जिसे बीआर आंबेडकर ने तैयार किया था.
RSS के महासचिव ने कहा कि आपातकाल के दौरान जब मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए, संसद काम नहीं कर रही थी, न्यायपालिका भी पंगु हो गई, तब ये शब्द जोड़े गए. इसलिए उन्हें प्रस्तावना में रहना चाहिए या नहीं, इस पर विचार होना चाहिए.
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Source: IOCL
























