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EXPLAINED: 54 'डंकियों' को भारत डिपोर्ट किया, 'डंकी रूट' पर इज्जत से लेकर मौत का जोखिम, फिर क्यों जाते भारतीय?

ABP Explainer: एक्सपर्ट्स के मुताबिक, भारतीय लोगों को अमीर बनने का झूठा सपना दिखाया जाता है कि अमेरिका जाकर वह कामयाब हो जाएंगे. जबकि लाखों रुपए खर्च करने के बाद जान बचने की गारंटी भी नहीं मिलती है.

26 अक्टूबर यानी रविवार की देर रात दिल्ली एयरपोर्ट पर अमेरिका से एक फ्लाइट लैंड हुई. लेकिन इसमें कोई आम पैसेंजर नहीं, बल्कि वो 35 भारतीय थे, जो बिना पास्पोर्ट और वीजा के अमेरिका में घुस गए थे. अमेरिका ने सभी 54 भारतीयों को वापस भारत डिपोर्ट कर दिया. दरअसल, यह सभी लोग डंकी रूट से अमेरिका में दाखिल हुए थे. डंकी रूट नाम से मजाकिया लगे, लेकिन इसके रास्ते में जंगल और रेगिस्तान से लेकर लाशें और इंसानी खोपड़ियां भी मिलती हैं.

तो आइए ABP एक्सप्लेनर में समझते हैं कि जानलेवा डंकी रूट क्या है, कैसे बिना पास्पोर्ट-वीजा के अमेरिका में घुसते और भारतीयों को ऐसा करने की नौबत क्यों आती है...

सवाल 1- 35 भारतीयों को अमेरिका से वापस भारत भेजने का मामला क्या है?
जवाब- करनाल के डीएसपी संदीप कुमार ने ANI को बताया कि 35 भारतीयों ने अवैध रूप से अमेरिका में घुसने की कोशिश की, जिन्हें अमेरिका ने वापस भारत डिपोर्ट कर दिया. इनमें 16 लोग करनाल, 14 कैथल और 5 कुरुक्षेत्र समेत सभी 54 लोग हैं. डिपोर्टेशन की प्रोसेस पूरी होने के बाद सभी लोगों को उनके परिवार से मिला दिया गया.

संदीप कुमार ने बताया कि इस ग्रुप ने डंकी रूट का इस्तेमाल किया था, जिनका इस्तेमाल भारत से अमेरिका मानव तस्करी के लिए होता है. यह अवैध और खतरनाक रास्ता है. कई गावों और कस्बों से लोग डंकी रूट का इस्तेमाल करके अमेरिका में दाखिल होते हैं, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकलता.

 

संदीप कुमार ने बताया कि इस ग्रुप ने डंकी रूट का इस्तेमाल किया था.
संदीप कुमार ने बताया कि इस ग्रुप ने डंकी रूट का इस्तेमाल किया था.

सवाल 2- आखिर यह डंकी रूट होता क्या है?
जवाब- 'डंकी रूट' शब्द पंजाबी शब्द 'डंकी' यानी DUNKI से निकला है, जिसका मतलब है- एक जगह से दूसरी जगह जाना. जब लोग पैसा कमाने के लिए अमेरिका जाना चाहते हैं लेकिन पासपोर्ट और वीजा न मिलने की वजह से वे डंकी रूट अपनाते हैं. लोग महीनों तक घने जंगल, बर्फीली नदी और तपते रेगिस्तान का मुश्किल सफर तय करके अवैध तरीके से अमेरिका पहुंचते हैं. हर साल हजारों भारतीय लाखों रुपए खर्च कर अमेरिका जाने के लिए ये अवैध तरीका अपनाते हैं. पॉपुलर टर्म में इसे 'डंकी रूट' कहा जाता है.

भारत से अमेरिका की दूरी करीब 13,500 किलोमीटर है. हवाई रास्ते से अमेरिका जाने में 17 से 20 घंटे लगते हैं. हालांकि 'डंकी रूट' से यही दूरी 15,000 किलोमीटर तक हो जाती है और इस सफर में महीनों लग जाते हैं. ये सफर करने वालों को आम तौर पर 'डंकी' कह दिया जाता है.

सवाल 3- डंकी रूट से अमेरिका जाने के कितने रास्ते हैं और यह कितने मुश्किल हैं?
जवाब- डंकी रूट से अमेरिका जाने के 2 रास्ते हैं…

पहला रास्ता: -40 डिग्री की जानलेवा सर्दी में कनाडा से अमेरिका पहुंचना

  • सबसे पहले डंकी को कनाडा के लिए टूरिस्ट वीजा अप्लाय करना होता है, जिससे भारत से कनाडा तक आसानी से पहुंचा जा सके. कनाडा के टोरंटो पहुंचने पर डंकी को एजेंट के कॉल के इंतजार में कई दिनों तक होटल में रुकना पड़ता है.
  • एजेंट डंकी को टोरंटो से 2,100 किलोमीटर दूर मनितोबा प्रॉविंस तक लेकर जाता है. मनितोबा में सर्दी इतनी ज्यादा होती है कि आंखों से निकले आंसू पलकों पर ही जम जाते हैं.
  • डंकी को मनितोबा से 1,834 किमी दूर एमरसन गांव पहुंचाया जाता है. यह गांव कनाडा और अमेरिका बॉर्डर पर है. यहां से डंकी -40 डिग्री की जानलेवा सर्दी में पैदल चलकर अमेरिका पहुंचते हैं. इस रास्ते में घुटनों तक बर्फ जमी होती है और दूर-दूर तक कोई इंसान नजर नहीं आता. डंकी 49वें पैरलल बॉर्डर पर पहुंचते हैं.

18 जनवरी 2022 को गुजरात के एक परिवार ने कनाडा होते हुए डंकी रूट के जरिए अमेरिका पहुंचने की कोशिश की थी. इसमें 39 साल के जगदीश पटेल, 37 साल की उनकी पत्नी वैशाली, 11 वर्षीय बेटी विहांगी और 3 साल का बेटा धार्मिक था, लेकिन अमेरिका पहुंचने से पहले ही पूरे परिवार की सर्दी से मौत हो गई. अमेरिकी बॉर्डर से सिर्फ 12 मीटर दूर पुलिस को चारों लोगों के शव मिले.

 

अमेरिका और कनाडा के बीच का यह बॉर्डर करीब 3,500 किमी लंबा है. इस रास्ते से अमेरिका पहुंचने में लगभग 30 दिन लगते हैं, लेकिन बर्फीले और जानलेवा होने की वजह से डंकी इस रूट को कम ही चुनते हैं.
अमेरिका और कनाडा के बीच का यह बॉर्डर करीब 3,500 किमी लंबा है. इस रास्ते से अमेरिका पहुंचने में लगभग 30 दिन लगते हैं, लेकिन बर्फीले और जानलेवा होने की वजह से डंकी इस रूट को कम ही चुनते हैं.

दूसरा रास्ता: घने जंगलों और रेगिस्तान पार कर अमेरिका पहुंचना

भारत में डंकी रूट का सबसे आम रास्ता रास्ता साउथ अमेरिका होते हुए अमेरिका पहुंचाता है, लेकिन इस रास्ते में घने जंगल, पहाड़, नदियां और रेगिस्तान पार करना होता है. इसके तीन पड़ाव हैं…

पहला पड़ाव: भारत से लैटिन अमेरिकी देश पहुंचना

  • इसमें इक्वाडोर, बोलीविया और गुयाना जैसे देश शामिल हैं. इन देशों में भारतीयों को वीजा ऑन अराइवल मिलता है. मतलब ये कि इन देशों में जाने के लिए पहले से वीजा लेने की जरूरत नहीं है.
    ब्राजील और वेनेजुएला समेत कुछ अन्य देशों में भारतीयों को आसानी से टूरिस्ट वीजा दे दिया जाता है. यहां से डंकी कोलंबिया पहुंचते हैं.
  • डंकी रूट इस बात पर डिपेंड करता है कि जिस एजेंट के जरिए आप जा रहे हैं, उसके संबंधित देशों में कितने कनेक्शन है. हालांकि, लैटिन अमेरिकी देशों में पहुंचना कठिन नहीं है, फिर भी यहां पहुंचने में 10 महीने लगते हैं.
  • कई लोग दुबई के रास्ते लैटिन अमेरिकी देश जाते हैं. इसमें उन्हें महीनों कंटेनर्स में रहना पड़ता है.

दूसरा पड़ाव: लैटिन अमेरिकी देशों से अमेरिकी बॉर्डर पहुंचना

  • कोलंबिया पहुंचने के बाद डंकी पनामा में दाखिल होते हैं. इन दोनों देशों के बीच खतरनाक जंगल 'डेरियन गैप' है, जिसे पार करना बेहद जोखिम भरा है. नदी-नालों के बीच में जरीले कीड़े और सांप का हमेशा डर बना रहता है. इस जंगल में डंकी से लूट होती है. महिला हो या पुरुष यहां के अपराधी उनके साथ रेप तक करते हैं.
  • कई बार डंकी अगर थोड़ी देर के लिए सो गया तो सांप उसे डस लेता है. इस जंगल में डंकियों की लाशें मिलना कोई नई बात नहीं है. यहां कोई सरकार नहीं है. अगर किस्मत ने साथ दिया और सब कुछ ठीक रहा तो डंकी 10 से 15 दिन में 105 किमी पैदल चलकर पनामा का जंगल पार कर जाता है.
  • अगर कोई डंकी पनामा जंगल से नहीं जाना चाहता तो उसे कोलंबिया से 150 किलोमीटर लंबी नदी पार करनी होती है. यहां से डंकी सेंट्रल अमेरिका के देश निकारागुआ के लिए नाव लेते हैं. नाव से सफर करने के बाद दूसरी नाव में ट्रांसफर होते हैं, जो मेक्सिको के लिए जाती है. इस नदी में बॉर्डर पुलिस पैट्रोलिंग तो करती ही है, नदी में खतरनाक जानवर भी जान लेने के लिए तैयार रहते हैं.
  • इसके बाद डंकी ग्वाटेमाला पहुंचता है. ह्यूमन ट्रैफिकिंग यानी मानव तस्करी के लिए ग्वाटेमाला एक बड़ा कोऑर्डिनेशन सेंटर है. अमेरिकी बॉर्डर की ओर बढ़ते हुए यहां डंकी को दूसरे एजेंट को हैंडओवर किया जाता है.

 

इस जंगल में डंकियों की लाशें मिलना कोई नई बात नहीं है.
इस जंगल में डंकियों की लाशें मिलना कोई नई बात नहीं है.

तीसरा पड़ाव: मेक्सिको से बॉर्डर क्रॉस करके सीधे अमेरिका में दाखिल होना

  • अब डंकी को मेक्सिको से यूएस बॉर्डर जाना होता है. रास्ते में अलग-अलग तरह की मुसीबतें हैं. सर्दी के साथ बीच में रेगिस्तान भी पड़ता है. इसके बाद डंकी पहुंचता है यूएस-मेक्सिको सीमा पर, जहां 3,140 किलोमीटर लंबी दीवार बनी हुई है.
  • डंकी इसी को कूदकर अमेरिका में दाखिल होते हैं. जो लोग दीवार को पार नहीं कर पाते, वे रियो ग्रांडे नदी को पार करने का खतरनाक रास्ता चुनते हैं. CNN की रिपोर्ट के मुताबिक, 2014 से 2023 के दौरान 650 अप्रवासी मेक्सिकन बॉर्डर पार करते समय मारे गए.

 

CNN की रिपोर्ट के मुताबिक, 2014 से 2023 के दौरान 650 अप्रवासी मेक्सिकन बॉर्डर पार करते समय मारे गए.
CNN की रिपोर्ट के मुताबिक, 2014 से 2023 के दौरान 650 अप्रवासी मेक्सिकन बॉर्डर पार करते समय मारे गए.

अमेरिका जाने से पहले डंकी से उसका पासपोर्ट और पहचान वाले दस्तावेज ले लिए जाते हैं. अगर उसकी पहचान हो जाएगी तो उसे वापस इंडिया डिपोर्ट कर दिया जाएगा.

सवाल 4- डंकी रूट से अमेरिका जाने का कितना खर्च आता है?
जवाब- भारत से एक डंकी के अमेरिका पहुंचने का औसत खर्च 20 से 50 लाख रुपए है. कभी-कभी ये खर्च 70 लाख तक पहुंच जाता है. इसकी पेमेंट तीन किश्तों में होती है...

  1. भारत से निकलने पर
  2. कोलंबिया बॉर्डर पहुंचने पर
  3. अमेरिकी बॉर्डर के पास पहुंचने पर

पैसों का भुगतान नहीं होने पर एजेंटों के गिरोह मेक्सिको या पनामा में डंकी की हत्या करके पीछा छुड़ा लेते हैं.

सवाल 5- आखिर इतनी मुसीबतों के बावजूद अमेरिका क्यों जाते हैं भारतीय?
जवाब- भारतीय लोग बेहतर अवसर के लिए भारत से बाहर जाने का इरादा करते हैं, लेकिन कई लोग एजुकेशन की कमी या किसी अन्य वजह से लीगल तरीके से नहीं जा पाते. विदेश मामलों के जानकार और JNU के प्रोफेसर राजन कुमार बताते हैं कि भारतीय लोगों को अमीर बनने का झूठा सपना दिखाया जाता है कि अमेरिका जाकर वह कामयाब हो जाएंगे...

  • अमेरिका में घुसने के बाद डंकी जानबूझकर अपने आप को वहां की पुलिस के हवाले कर देता है. इसके बाद उसे जेल में डाला जाता है, जिसे ‘इमिग्रेशन कैम्प’ कहा जाता है.
  • डंकी को जेल से छुड़ाने के लिए वकील हायर किया जाता है. इसका खर्च एजेंट या डंकी का कोई रिश्तेदार उठाता है. वकील अपनी दलीलों से कोर्ट को भरोसा दिलाता है कि डंकी को अमेरिका में रहने दिया जाए. इसके बाद डंकी को जेल से रिहा किया जाता है.
  • डंकी अमेरिका पर बोझ न बने, इसलिए उसे कमाने और खाने की अनुमति दी जाती है, जो बढ़ती रहती है. 8-10 साल में ग्रीन कार्ड मिल जाता है यानी डंकी अब यूएस में परमानेंट रह सकता है और उसे काम करने का अधिकार है. इसके 10-15 साल बाद उसे अमेरिका की नागरिकता भी मिल जाती है.
  • जिस तरह से भारत में अवैध कॉलोनियों को वैध करने के लिए हर 5 से 7 साल के बीच स्कीम निकाली जाती है. ठीक वैसे ही अमेरिका में अवैध लोगों को नागरिकता देने के लिए स्कीम निकाली जाती है. इसमें कुछ फीस भरने के बाद डंकी अमेरिका का नागरिक बन जाता है.

प्रो. राजन कुमार के मुताबिक, भारतीय लोग डंकी रूट से जान जोखिम में डालकर अमेरिका पहुंच तो जाते हैं, लेकिन सालों तक डिटेंशन सेंटर में इंतजार के बाद कोर्ट में सुनवाई होती है. केस जीत भी गए तो 105 दिनों के लिए बर्तन धोने और झाड़ू लगाने जैसे काम करने होते हैं, ताकि वह गुजारा कर सकें. अमेरिका जाकर अमीर हो जाना इतना आसान नहीं है. 8-10 साल बाद भी ग्रीन कार्ड मिलने के चांस ज्यादा नहीं होते. ऐसे में डंकियों को वापस भारत भेज दिया जाता है या फिर सारी जिंदगी जेल में गुजारनी पड़ती है.

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) की सितंबर 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में सबसे ज्यादा बेरोजगारी दर 37.3% हरियाणा में है. यह देश की औसत बेरोजगारी दर से 4 गुना ज्यादा है. हरियाणा के ढाटरथ, मोरखी और कलवा जैसे गांव डंकी हब बन चुके हैं. खेत, घर और सोना बेचकर लोग रोजगार के लिए अमेरिका जाने का इंतजाम कर रहे हैं.

ज़ाहिद अहमद इस वक्त ABP न्यूज में बतौर सीनियर कॉपी एडिटर (एबीपी लाइव- हिंदी) अपनी सेवाएं दे रहे हैं. इससे पहले दो अलग-अलग संस्थानों में भी उन्होंने अपनी सेवाएं दी. जहां वे 5 साल से ज्यादा वक्त तक एजुकेशन डेस्क और ओरिजिनल सेक्शन की एक्सप्लेनर टीम में बतौर सीनियर सब एडिटर काम किया. वे बतौर असिस्टेंट प्रोड्यूसर आउटपुट डेस्क, बुलेटिन प्रोड्यूसिंग और बॉलीवुड सेक्शन को भी लीड कर चुके हैं. ज़ाहिद देश-विदेश, राजनीति, भेदभाव, एंटरटेनमेंट, बिजनेस, एजुकेशन और चुनाव जैसे सभी मुद्दों को हल करने में रूचि रखते हैं.

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