The bengal Files Review: हिला डालती हैं विवेक अग्निहोत्री की ये फिल्म, हिम्मत है तो ही देखें
The bengal Files Review: विवेक अग्निहोत्री की फिल्म द बंगाल फाइल्स 5 सितंबर को सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी हैं. फिल्म देखने का प्लान बना रहे हैं तो पहले पढ़ लें रिव्यू.
विवेक अग्निहोत्री
अनुपम खेर, पल्लवी जोशी, मिथुन चक्रवर्ती, दर्शन कुमार, नमाशी चक्रवर्ती, एकलव्य सूद
सिनेमाघर
इस तरह की फिल्मों के साथ दिक्कत ये है कि फिल्म कैसी है ये बात कम लोग समझना चाहते हैं. लोग बस एजेंडा और प्रोपेगैंडा की ही बात करते हैं. जो समर्थ हैं वो फिल्म को अच्छा ही बोलेंगे और अगर नहीं खराब ही बोलेंगे. चाहे फिल्म देखी हो या ना देखी हो, ऐसी फिल्मों के साथ ज्यादातर लोग ऐसा ही करते हैं. ताशकंद फाइल्स और कश्मीर फाइल्स के बाद विवेक रंजन अग्निहोत्री ने बंगाल की फाइल्स खोली हैं और जबरदस्त तरीके से खोली हैं.
कहानी
इस फिल्म में दो बंगाल दिखाए गए हैं, एक अभी का और एक आजादी से पहले का. यहां डायरेक्ट एक्शन डे की बात कही गई है, नोअखाली में हुए दंगे दिखाए गए हैं, हिंदू जेनोसाइड दिखाया गया है. ये सब किस तरह से दिखाया गया है ये आप फिल्म में ही देखिए. उसे ज्यादा बताना ठीक नहीं.
कैसी है फिल्म
ये एक हार्ड हिटिंग फिल्म है, इस फिल्म के कई सीन आपको चौंका देते हैं, हैरान कर देते हैं, परेशान कर देते हैं. कई सीन आप देख नहीं पाएंगे, इसलिए अगर आप कमजोर दिल के हैं तो सोच समझकर ही देखिएगा. दंगों के सीन जिस क्रूरता से दिखाए गए हैं, वो आपको सोचने पर मजबूर कर देता है कि क्या वाकई ऐसा हुआ था. आज के बंगाल के हालात भी जिस तरह से दिखाए गए हैं वो हैरान करते हैं. आजादी से पहले के दौर को अच्छे से क्रिएट किया गया है. इस फिल्म के साथ एक ही दिक्कत है और वो है इसकी लंबाई, ये फिल्म लगभग साढ़े तीन घंटे की है. कुछ मोनोलॉग लंबे लगते हैं लेकिन शायद इस तरह की फिल्म का असर अधूरा ना रह जाए इसलिए वैसा करना डायरेक्टर विवेक अग्निहोत्री ने जरूरी समझा होगा. लेकिन अगर इसे थोड़ा सा छोटा कर दिया जाता तो इसका असर और ज्यादा होता. जैसे मिथुन चक्रवर्ती का ट्रैक अगर फिल्म में ना भी होता तो फिल्म पर कोई असर नहीं पड़ता. उन्हें क्यों डाला गया ये समझ से परे हैं लेकिन कुल मिलाकर ये फिल्म वो दिखा जाती है जो दिखाना आसान नहीं था.
एक्टिंग
दर्शन कुमार ने कमाल का काम किया है. एक सीबीआई अफसर जो कशमकश में फंसा है, अपने अफसरों की सुने या ईमानादारी से काम करे. इस जद्दोजहद में फंसे शख्स अमर के किरदार में दर्शन जान डाल गए. अनुपम खेर ने महात्मा गांधी का रोल जिस तरह से निभाया है वो दिखा गया कि क्यों वो हिंदी सिनेमा के सबसे कमाल के एक्टर्स में से एक हैं. पल्लवी जोशी अपनी चुप्पी से जो कमाल की एक्टिंग कर जाती हैं वो बस थिएटर में जाकर ही आप एक्सपीरिंयस कर सकते हैं. सिमरत कौर ने पल्लवी जोशी की जवानी के किरदार में कमाल तरीके से निभाया है. गदर 2 जैसी फिल्म के बाद इस तरह के रोल में वो चौंका गईं. शाश्वत चटर्जी ने कमाल का काम किया है, वो एक एमएलए के किरदार में जबरदस्त क्रूरता दिखाते हैं. नमाशी चक्रवर्ती चौंका जाते हैं, एकलव्य सूद ने एक सिख के किरदार को जबरदस्त तरीके से प्ले किया है. मिथुन चक्रवर्ती का किरदार फिल्म में गैर जरूरी लगता है, वो क्या बोलते हैं समझ भी नहीं आता, हालांकि किरदार भी वैसा है लेकिन वो इसे जस्टिफाई नहीं कर पाते.
डायरेक्शन और राइटिंग
विवेक अग्निहोत्री की राइटिंग बढ़िया है, उनकी रिसर्च पर तो सवाल उठाया ही नहीं जा सकता लेकिन दिक्कत ये है कि वो रिसर्च इतनी ज्यादा कर लेते हैं कि वो एक फिल्म में समा ही नहीं पाती. और इसी वजह से फिल्म लंबी हो गई है, डायरेक्शन बढ़िया है.
कुल मिलाकर ये फिल्म देखिए और खुद फैसला कीजिए
रेटिंग- 3.5 स्टार्स

























