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सनातन धर्म के लिए क्या ये सचमुच नववर्ष है, हिंदू कैलेंडर आसानी से कैसे समझें?

आजकल अंग्रेजी कैलेंडर यानी ग्रेगोरियन काफी प्रचलित है. इसी के अनुसार लोग नया साल से लेकर जन्मदिन आदि मनाते हैं. लेकिन सनातन धर्म में हिंदू कैलेंडर का महत्व है. हिंदू कैलेंडर को आप इस तरह समझ सकते हैं.

हिंदू कैलेंडर आसानी से कैसे समझे? क्या यह सचमुच नव वर्ष हैं?

आज नववर्ष के दिन सब आपको शुभकामनाएं देंगे. सोशल मीडिया के माध्यम से या फिर कोई अन्य माध्यम से और आप भी उत्तर देंगे शुभकामनाओं का. लेकिन क्या आपको पता है कि सनातनी हिंदू कैलेंडर जोकि सबसे पुराना है, उस कैलेंडर के अनुसार हम लोगों का नव वर्ष चैत्र माह में पड़ता है. इस साल (2024) में सनातनियों का नव वर्ष 9 अप्रैल को होगा.

लेकिन उस दिन कोई शुभकामनाएं देते हुए नहीं दिखाई पड़ता. यही विडंबना है हम सबकी क्योंकि हम सब कहीं ना कहीं पश्चिमी सभ्यता से ग्रसित हैं. यह एक कड़वी बात है लेकिन यही सत्य है. क्या आपने कभी किसी को हिंदू पंचांग के अनुसार जन्मदिन मनाते देखा है, जवाब होगा बहुत कम लोग. सबसे पहले तो हम सभी को हिंदू पंचांग समझने की जरूरत है. इस आलेख के माध्यम से हम हिंदू पंचांग समझने की कोशिश करेंगे. अभी तो प्रचलन में अंग्रेजी कैलेंडर है, उसे ग्रेगोरियन (Gregorian) कैलेंडर भी कहते हैं और हमारे ऋषि एवं पूर्वज विक्रम संवत कैलेंडर के अनुसार चलते थे जोकि ग्रेगोरियन (Gregorian) से भी पुरातन (पुराना) है. यह कैलेंडर (विक्रम संवत) राजा विक्रमादित्य ने शुरु किया था.

विक्रम संवत कैलेंडर के अनुसार कितने माह हैं?

  • चैत्र (मार्च-अप्रैल)
  • वैशाख (अप्रैल-मई)
  • ज्येष्ठ (मई-जून)
  • आषाढ़ (जून-जुलाई)
  • श्रावण (जुलाई-अगस्त)
  • भाद्रपद (अगस्त-सितंबर)
  • असविना (सितंबर-अक्टूबर)
  • कार्तिका (अक्टूबर-नवंबर)
  • मार्गशीर्ष (नवंबर-दिसंबर)
  •  पौष (दिसंबर-जनवरी)
  • माघ (जनवरी-फरवरी)
  • फाल्गुन (फरवरी-मार्च)

(अधिक मास: – यह मास हर साल नहीं होता. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह तीन साल बाद आता है. (हिंदू कैलेंडर में 12 माह आते हैं, जिनका आधार चंद्रमा की गति है. सूर्य कैलेंडर मे एक वर्ष 365 दिन और लगभग 6 घंटे का होता है. जबकि हिंदू कैलेंडर चंद्रमा का एक वर्ष 354 दिनों का माना जाता है. इन दोनो कैलेंडर वर्ष के बीच लगभग 11 दिन का अंतर है. यह 11 दिवस का अंतर तीन वर्ष में एक महीने के बराबर हो जाता है. इस अंतर को दूर करने के लिए हर तीन साल के अंतराल में एक चंद्र महीना अस्तित्व में आता है. अधिक मास को शास्त्र में पुरषोत्तम मास अथवा मलमास भी कहते हैं.)

हिंदू कैलेंडर में माह में कितने दिन होते हैं ?

हर महीने को दो चरणों में विभाजित किया जाता हैं: –

  • शुक्ल पक्ष (15 दिन)- अमावस्या से आरंभ होता है और पूर्णिमा (पंद्रवे दिन) को समाप्त होता है.
  • कृष्ण पक्ष (15 दिवस) - पूर्णिमा को आरंभ होता हैं और अमावस्या (पंद्रवे दिन) को समाप्त होता है.

30 दिन की गणना इस प्रकार होती है-

  1. कृष्ण–पक्ष प्रतिपदा,
  2. कृष्ण–पक्ष द्वितीय,
  3. कृष्ण–पक्ष तृतीया,
  4. कृष्ण–पक्ष चतुर्थी,
  5. कृष्ण–पक्ष पंचमी,
  6. कृष्ण–पक्ष षष्ठी,
  7. कृष्ण–पक्ष सप्तमी,
  8. कृष्ण–पक्ष अष्टमी,
  9. कृष्ण–पक्ष नवमी,
  10. कृष्ण–पक्ष दशमी,
  11. कृष्ण–पक्ष एकादशी,
  12. कृष्ण–पक्ष द्वादशी,
  13. कृष्ण–पक्ष त्रयोदशी,
  14. कृष्ण–पक्ष चतुर्दशी,
  15. अमावस्या
  16.  शुक्ल–पक्ष प्रतिपदा,
  17.  शुक्ल–पक्ष द्वितीया,
  18.  शुक्ल–पक्ष तृतीया,
  19.  शुक्ल–पक्ष चतुर्थी,
  20.  शुक्ल–पक्ष पंचमी,
  21.  शुक्ल–पक्ष षष्ठी,
  22. शुक्ल–पक्ष सप्तमी,
  23.  शुक्ल–पक्ष अष्टमी,
  24. शुक्ल–पक्ष नवमी,
  25. शुक्ल–पक्ष दशमी,
  26.  शुक्ल–पक्ष एकादशी,
  27. शुक्ल–पक्ष द्वादशी,
  28. शुक्ल–पक्ष त्रयोदशी,
  29. शुक्ल–पक्ष चतुर्दशी,
  30. पूर्णिमा

हिन्दू पंचांग के अनुसार अभी कौन सा वर्ष चल रहा हैं?

विक्रम संवत कैलेंडर अनुसार 20280 है. इसकी गणना करना बहुत आसान है. आप Gregorian कैलेंडर में 57 वर्ष जोड़ लीजिए वही हिंदू विक्रम संवत कैलेंडर का वर्ष है. उदाहरण २०23+57=2080

तिथि कैसे समझें?

  • कृष्ण–पक्ष दशमी= महीने का 10वां दिन.
  • अमावस्या = माह का 15 वां दिन.
  • शुक्ल–पक्ष प्रतिपदा=16वां दिन.
  • पूर्णिमा = माह का 30वां दिन. चंद्र देव को भगवान शिव ने बचाया था दक्ष के श्राप से. इसलिए चंद्रमा 15 दिवस में घटते और बढ़ते हैं. 

तिथि कैसे लिखा जाता है?

इसका प्रारूप इस प्रकार हैं: –

माह/पक्ष/दिन/साल

उद्धरण: –कार्तिक, शुक्ल पक्ष, पंचमी 2080

कितने हिंदू कैलेंडर हैं?

विक्रम संवत और शाक संवत सबसे ज्यादा प्रचलिक कैलेंडर हैं. लेकिन संत लोग सबसे ज्यादा विक्रम संवत ही मानते हैं.

 ये भी पढ़ें: व्रत क्यों रखना चाहिए, इससे क्या लाभ होता हैं? जानिए शास्त्रीय विधि और वैज्ञानिक पक्ष

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

मुंबई के रहने वाले अंशुल पांडेय धार्मिक और अध्यात्मिक विषयों के जानकार हैं. 'द ऑथेंटिक कॉंसेप्ट ऑफ शिवा' के लेखक अंशुल के सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म और समाचार पत्रों में लिखते रहते हैं. सनातन धर्म पर इनका विशेष अध्ययन है. पौराणिक ग्रंथ, वेद, शास्त्रों में इनकी विशेष रूचि है, अपने लेखन के माध्यम से लोगों को जागरूक करने का कार्य कर रहें.
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