रूस-यूक्रेन ड्रोन हमले में 'ट्रोजन हॉर्स' की एंट्री! क्या युद्ध में धोखेबाजी का दूसरा नाम है ट्रोजन हॉर्स रणनीति?
ट्रोजन हॉर्स (Trojan Horse) क्या है. युद्ध में धोखेबाजी का दूसरा नाम ट्रोजन हॉर्स है? महाभारत में भी ऐसी युद्ध रणनीति अपनाई गई थी. जहां छल, भ्रम और गोपनीय रणनीति से दुश्मन को मात दी गई थी.

यूक्रेन (Ukraine) ने रूस पर ट्रोजन-हॉर्स रणनीति का इस्तेमाल करके बड़ा नुकसान पहुंचाया है, इसके लिए यूक्रेन ने महीनों पहले ही तैयारी शुरू कर दी थी. अब नतीजा पूरी दुनिया के सामने है. इस युद्ध रणनीति के तहत यूक्रेन ने ट्रकों और ड्रोन से बड़ा हमला किया है.
जिससे रूस (Russia) हिल गया है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि ट्रोजन-हॉर्स रणनीति नई नहीं है, महाभारत के युद्ध में भी ऐसी रणनीति का प्रयोग किए जाने के प्रमाण मिलते हैं, कह सकते हैं यूक्रेन ने जिस रणनीति को अपना कर युद्ध में रूस को सोचने के लिए मजबूर कर दिया है वैसे रणनीति से भारत बहुत पहले से परिचित है.
ट्रोजन हॉर्स क्या होता है?
'ट्रोजन हॉर्स' यानी ऐसा धोखा जिसे शत्रु उपहार समझकर स्वीकार कर ले और वही उसके विनाश का कारण बन जाए. यह युद्ध नीति महाभारत और ग्रीक महाकाव्य इलियड (Iliad) से प्रेरित है, जहां यूनानियों ने एक विशाल लकड़ी के घोड़े में सैनिकों को छिपा कर ट्रॉय नगर पर आक्रमण किया था.
आज के दौर में यह रणनीति आधुनिक तकनीक के साथ मिलकर और भी खतरनाक हो गई है. बीते दिन यूक्रेन ने ड्रोन को ट्रकों में छिपाकर रूस के अंदर एयरबेस पर हमला किया जो ट्रोजन हॉर्स की आधुनिक मिसाल है.
महाभारत में ट्रोजन हॉर्स जैसी कौन-कौन सी रणनीतियां अपनाई गईं?
महाभारत का युद्ध जो 18 दिनों तक चला. ऐसा माना जाता है कि महाभारत के युद्ध में करीब 1 अरब 66 करोड़ 20 हजार योद्धाओं की मौत हुई. इस युद्ध में 24,165 योद्धाओं का पता नहीं चला है. महाभारत के युद्ध में पांडव और कौरवों तरफ से 18 अक्षौहिणी सेनाओं ने भाग लिया था.
महाभारत के युद्ध में अश्वत्थामा की ‘झूठी मृत्यु’ की खबर एक संधि का परिणाम थी. इस युद्ध में द्रोणाचार्य युद्ध में अपराजेय हो रहे थे. उन्हें युद्ध से हटाने के लिए युधिष्ठिर ने एक अर्धसत्य कहा गया जिसकी चर्चा आज भी होती है 'अश्वत्थामा मारा गया'.
महाभारत में एक जगह श्लोक मिलता है 'अश्वत्थामा हतः इति नार: कुंजरो वा' जिसका अर्थ है कि अश्वत्थामा मारा गया है… लेकिन हाथी. लेकिन यह बात द्रोणाचार्य ने पूरी नहीं सुनी. उन्होंने यह मान लिया कि उनका पुत्र मारा गया है और उन्होंने अस्त्र-शस्त्र छोड़ दिए.
यही छल उनकी मृत्यु का कारण बना. क्योंकि द्रोणाचार्य के पुत्र का नाम भी अश्वत्थामा था. द्रोणाचार्य को ये भ्रम इसलिए हुआ क्योंकि ये बाद धर्मराज युधिष्ठिर ने कही थी जो सदैव सत्य बोलने के लिए जाने जाते हैं. यह एक शुद्ध मानसिक ट्रोजन हॉर्स था, जहां भ्रम फैलाकर जीत सुनिश्चित की गई. रूस-यूक्रेन युद्ध में भी यही स्थिति देखी गई.
महाभारत की चक्रव्यूह नीति
चक्रव्यूह के बारे में सभी जानते हैं कि यह एक जटिल युद्ध रणनीति थी, जिसमें प्रवेश करना तो आसान था लेकिन बाहर निकलना लगभग असंभव. अभिमन्यु को इसकी पूरी जानकारी नहीं थी, फिर भी उसे अंदर भेजा गया.
यह रणनीति पांडवों की नहीं, कौरवों की ट्रोजन शैली थी, जहां एक योद्धा को फंसाकर उसे निष्क्रिय कर मार दिया गया. महाभारत की ये घटना बताती है कि युद्ध केवल शक्ति से नहीं, रणनीति से भी जीता जाता है.
कर्ण से कवच-कुंडल छीनने की चाल
दानवीर कर्ण को वरदानस्वरूप जन्म से कवच और कुंडल मिले थे, जो उसे अजेय बनाते थे. उसे कोई भी हरा नहीं सकता था. देवता भी नहीं. एकबार इंद्रदेव ने एक ब्राह्मण बनकर उससे दान में कवच और कुंडल मांग लिए. देखा जाए तो यह दान, एक देवताओं की एक 'ट्रोजन चाल' थी ताकि अर्जुन समय आने पर महाभारत के युद्ध में पराजित कर सके.
क्या ये रणनीतियां शास्त्र-सम्मत थीं?
अब प्रश्न उठता है कि क्या छल- धोखेबाजी से भरी ये चाले जायज थीं? इस पर महाभारत में कहा गया है 'धर्मो रक्षति रक्षितः' यानी युद्ध का धर्म ही उसकी दिशा तय करता है.
जब अधर्म बढ़े, तो अधर्म को हराने के लिए युक्ति धर्म बन जाती है. यानि जब लक्ष्य धर्म की स्थापना हो, तो रणनीति यहां तक की छल भी सत्य बन जाता है.
फिर से लौट रही हैं युद्ध की पुरानी चालें!
ड्रोन हमलों, साइबर अटैक, फेक इंफॉर्मेशन और AI आधारित डिसइंफॉर्मेशन सभी आधुनिक ट्रोजन हॉर्स की शक्लें हैं. यूक्रेन ने रूस के एयरबेस पर हमले के लिए जो ड्रोन स्ट्रेटजी अपनाई वह महाभारत के युद्ध में अपनाई गई छल और कौशल की एक तकनीकी झलक है.
महाभारत की युद्ध रणनीतियां आज भी जीवित है, बस माध्यम बदल गया है!
महाभारत सिखाता है कि युद्ध (War) केवल शस्त्रों से नहीं, रणनीति, मनोविज्ञान और युक्तियों से भी युद्ध जीता जाता है. ये सत्य है कि आज विश्व में चाहे वो रूस-यूक्रेन हो या साइबर वॉर, महाभारत की युद्ध-नीति पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक लगने लगीं है.
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