बच्चों में क्यों बढ़ रहा मायोपिया का खतरा? डॉक्टर से जान लें हर एक बात
बच्चों में मायोपिया या निकट दृष्टि दोष दुनिया भर में चिंता का विषय बन चुका है. बच्चों में यह दिक्कत तब होती है, जब बच्चों की आईबॉल लंबी हो जाती है. इससे दूर की चीजें धुंधली दिखाई देती हैं.

कई बच्चों को बचपन से ही देखने की समस्याएं होती हैं, जिसके चलते छोटी उम्र में ही बच्चों को चश्मा लग जाता है. दरअसल, बच्चों में मायोपिया या निकट दृष्टि दोष दुनिया भर में चिंता का विषय है. बच्चों में यह दिक्कत तब होती है, जब बच्चों की आईबॉल लंबी हो जाती है. इससे बच्चों को पास की चीजें साफ दिखाई देती है, लेकिन दूर की चीजें धुंधली नजर आती है. पहले यह समस्या इतनी कॉमन नहीं थी, लेकिन अब तेजी से बढ़ रही है और खासकर बच्चों में देखने को मिल रही है. आपको यह बताते हैं कि बच्चों में मायोपिया का खतरा क्यों बढ़ रहा है और डॉक्टर इसे लेकर क्या कहते हैं?
बच्चों में क्यों बढ़ रहा मायोपिया का खतरा?
मायोपिया एक जेनेटिक बीमारी होती है. अगर माता-पिता में से कोई मायोपिक है तो बच्चे में इसका खतरा बढ़ जाता है. वहीं अगर माता और पिता दोनों ही इससे प्रभावित हो तो इसका खतरा और भी ज्यादा होता है. रिसर्च बताती है कि हमारे जीन आंखों की वृद्धि को प्रभावित करते हैं और इसी अनुवांशिकता के कारण आईबॉल लंबा हो सकता है. जिससे दूर की चीजें धुंधली दिखाई दे सकती है, लेकिन दुनिया भर में बढ़ रहे मायोपिया के पीछे केवल जीन ही एकमात्र वजह नहीं है .
लाइफस्टाइल और स्क्रीन टाइम से भी खतरा
डॉक्टरों के अनुसार आजकल बच्चों की लाइफस्टाइल मायोपिया बढ़ाने के बड़ा कारण बन रही है. फोन और लैपटॉप जैसी चीजों पर लंबे समय तक पढ़ाई करना, गेम खेलना, बच्चों की आंखों पर दबाव डालता है. जबकि आउटडोर गेम खेलने और नेचुरल सनलाइट में समय बिताने से बच्चों की आंखें सुरक्षित रहती है. रिसर्च बताती है कि रोजाना 90 से 120 मिनट नेचुरल सनलाइट में समय बिताने से आंखों की असामान्य वृद्धि को धीमा किया जा सकता है. लेकिन शहरों में जगह की कमी, एग्जाम का प्रेशर और बाहर खेलने के कम मौके बच्चों के लिए इस सुरक्षा को कम कर रहे हैं. वहीं डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट के अनुसार 2050 तक लगभग आधी दुनिया की आबादी मायोपिक हो सकती है. खासकर बच्चों में जल्दी मायोपिया शुरू होने से भविष्य में गंभीर आंखों की समस्याओं का खतरा बढ़ सकता है. इन समस्याओं में रेटिना कंस्ट्रक्शन और ग्लूकोमा जैसी गंभीर बीमारियां शामिल है.
क्या करें माता-पिता?
डॉक्टरों के अनुसार मायोपिया को रोकने या कम करने में जीन से ज्यादा रोजमर्रा की आदतें जरूरी होती है. ऐसे में बच्चों को लेकर पेरेंट्स छोटे-छोटे बदलाव करके भी मायोपिया के खतरे को कम कर सकते हैं. इसके लिए पेरेंट्स हर साल बच्चों की आंखों की जांच करा सकते हैं, ताकि समय पर यह समस्या पकड़ में आए. इसके अलावा बच्चों को रोजाना कम से कम एक से दो घंटे बाहर खेलने भेजें. वहीं बच्चों का स्क्रीन टाइम सीमित करें और मोबाइल या लैपटॉप पर लगातार समय बिताने से रोकें. इसके अलावा माता-पिता बच्चों पर 20-20-20 का नियम भी अपना सकते हैं, जिसमें हर 20 मिनट पढ़ाई या स्क्रीन देखने के बाद 20 सेकंड के लिए 20 फीट दूर देखना होता है. वहीं बच्चों के खाने में विटामिन ए, सी और ओमेगा-3 से युक्त शामिल करने से भी इस समस्या को कम किया जा सकता है.
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Source: IOCL

























