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कहीं आप भी तो पॉपकॉर्न ब्रेन की दिक्कत से नहीं जूझ रहे हैं, जानें इस समस्या की असली वजह
अगर आप भी हर दूसरे सेकेंड पर चैनल बदलते रहते हैं और मोबाइल की स्क्रीन को स्क्रॉल करना आपकी आदत बन गया है तो हो सकता है कि पॉपकॉर्न ब्रेन के शिकार हों.
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पॉपकॉर्न ब्रेन को कैसे कंट्रोल करें ( Image Source :Freepik )
Popcorn Brain Fever: टीवी देखते वक्त क्या आप भी हर मिनट पर चैनल बदल बदल कर देखने के आदी हो गए हैं. मोबाइल पर एक पेज पर फोकस नहीं कर पाते और दिमाग उछल उछल कर दूसरी चीजों की तरफ भागता है. आपका ब्रेन बच्चों की तरह बार बार दूसरी चीजों की तरफ भाग रहा है और आप फोकस नहीं कर पा रहे हैं तो आप यकीनन पॉपकॉर्न सिंड्रोम के शिकार हो रहे हैं. जी हां, दुनिया भर में पॉपकॉर्न सिंड्रोम ब्रेन के शिकारों की संख्या बढ़ती जा रही है.
क्या होता हो पॉपकॉर्न सिंड्रोम
ये एक तरह का सिंड्रोम है जिसमें दिमाग उछल उछल कर हर दूसरी तीसरी चीज को देखने के लिए भागता है. कोई भी बात या चीज उसकी उत्सुकता को शांत नहीं कर पाती और वो बस कुछ नया देखने और जानने के लिए इधऱ उधर भागता रहता है. ऐसे में दिमाग में धैर्य की कमी हो जाती है और दिमाग जरूरी चीजों पर फोकस कर पाने में नाकाम हो जाता है. चलिए जानते हैं कि पॉपकॉर्न ब्रेन आखिर क्या है और ये सेहत के लिए कैसे खतरनाक हो सकता है.
स्थिर नहीं रहता दिमाग
रिसर्च कहती है कि जब किसी व्यक्ति में अटेंशन स्पैन यानी ध्यान बनाए रखने का समय कम हो जाता है तो वो पॉपकॉर्न सिंड्रोम का शिकार माना जा सकता है. 2004 तक टीवी की स्क्रीन पर किसी चीज को देखने औऱ चैनल बदलने के लिए लोग ढाई मिनट खर्च करते थे. 2012 में ये स्पैन कम होकर सवा मिनट हो गया. फिलहाल वक्त में लोग मोबाइल या टीवी की स्क्रीन पर महज 47 सैकेंड तक ही टिक पाते हैं. यानी 47 सेकेंड बाद उनका दिमाग दूसरी चीज की तरफ मुड़ जाता है. पॉपकॉर्न की तरह उछलने वाला ये दिमाग हर सैकेंड पर बदल रहा है, वो एक से दूसरी चीज पर कूद रहा है और कुछ कर नहीं पा रहा है. यानी उसका फोकस और पेशेंस नदारद हो गया है. पॉपकॉर्न की तरह उछल उछल कर फोकस गंवाने वाले दिमाग को कई तरह की परेशानियों का सामना भी करना पड़ रहा है.
रिसर्च कहती है कि जब किसी व्यक्ति में अटेंशन स्पैन यानी ध्यान बनाए रखने का समय कम हो जाता है तो वो पॉपकॉर्न सिंड्रोम का शिकार माना जा सकता है. 2004 तक टीवी की स्क्रीन पर किसी चीज को देखने औऱ चैनल बदलने के लिए लोग ढाई मिनट खर्च करते थे. 2012 में ये स्पैन कम होकर सवा मिनट हो गया. फिलहाल वक्त में लोग मोबाइल या टीवी की स्क्रीन पर महज 47 सैकेंड तक ही टिक पाते हैं. यानी 47 सेकेंड बाद उनका दिमाग दूसरी चीज की तरफ मुड़ जाता है. पॉपकॉर्न की तरह उछलने वाला ये दिमाग हर सैकेंड पर बदल रहा है, वो एक से दूसरी चीज पर कूद रहा है और कुछ कर नहीं पा रहा है. यानी उसका फोकस और पेशेंस नदारद हो गया है. पॉपकॉर्न की तरह उछल उछल कर फोकस गंवाने वाले दिमाग को कई तरह की परेशानियों का सामना भी करना पड़ रहा है.
पॉपकॉर्न सिंड्रोम के नुकसान
हेल्थ एक्सपर्ट कहते हैं कि पॉपकॉर्न ब्रेन दिमाग में अस्थिरता पैदा कर रहा है. इससे जरूरी फोकस की कमी हो रही है और दिमाग अवसाद का शिकार हो रहा है. जब दिमाग किसी चीज पर टिक नहीं पाता है तो वो संतुष्ट नहीं हो पाता और इसकी वजह से वो दुखी और उछला महसूस करता है. पॉपकॉर्न ब्रेन की वजह लोगों के सीखने, याद करने और संवेदनाओं को महसूस करने की प्रवृत्ति पर गहरा असर पड़ रहा है. पॉपकॉर्न ब्रेन का असर दिमागी क्षमता पर भी पड़ रहा है क्योंकि इससे मेमोरी पर भी बुरा असर पड़ता है औऱ इंसान किसी विषय पर गहरी जानकारी लेने के लिए नाकामयाब रहता है.
हेल्थ एक्सपर्ट कहते हैं कि पॉपकॉर्न ब्रेन दिमाग में अस्थिरता पैदा कर रहा है. इससे जरूरी फोकस की कमी हो रही है और दिमाग अवसाद का शिकार हो रहा है. जब दिमाग किसी चीज पर टिक नहीं पाता है तो वो संतुष्ट नहीं हो पाता और इसकी वजह से वो दुखी और उछला महसूस करता है. पॉपकॉर्न ब्रेन की वजह लोगों के सीखने, याद करने और संवेदनाओं को महसूस करने की प्रवृत्ति पर गहरा असर पड़ रहा है. पॉपकॉर्न ब्रेन का असर दिमागी क्षमता पर भी पड़ रहा है क्योंकि इससे मेमोरी पर भी बुरा असर पड़ता है औऱ इंसान किसी विषय पर गहरी जानकारी लेने के लिए नाकामयाब रहता है.
ऐसे करें कंट्रोल
डॉक्टर कहते हैं कि दिमाग को कंट्रोल करने के लिए कई तरह की मेंटल एक्टिविटीज हैं और कुछ आदतें भी ऐसी हैं जिनके जरिए आप पॉपकॉर्न ब्रेन को कंट्रोल कर सकते हैं. अखबार पढ़ने की आदत डालिए. मोबाइल पर डिपेंडेंसी कम कीजिए. अपनी हॉबीज पर फोकस कीजिए और उसके लिए समय निकालिए. लोगों से मिलना जुलना बढ़ाइए. मेडिटेशन से भी आपको लाभ होगा. सप्ताह में कम से कम एक दिन के लिए डिजिटल डिटॉक्स कीजिए यानी मोबाइल से दूरी बनाइए.
Disclaimer: इस आर्टिकल में बताई विधि, तरीक़ों और सुझाव पर अमल करने से पहले डॉक्टर या संबंधित एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें.
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डॉ. सब्य साचिन, वाइस प्रिंसिपल, जीएसबीवी स्कूल
Opinion