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Cat Ownership: घर में पाल रखी है बिल्ली तो हो जाएं सावधान, आपको हो सकता है सीरियस मेंटल डिसऑर्डर

Cat Owners: इंसान आजकल अपना खाली समय भरने के लिए तरह-तरह के जानवर पाल रहा है, उनमें से एक है बिल्ली. चलिए आपको बताते हैं कि बिल्ली पालने के नुकसान क्या-क्या हैं.

Cat Ownership Mental Health: आजकल इंसान, इंसानों से ज्यादा जानवरों से प्यार करने लगा है. लेकिन अब थोड़ा रूक जाइए.  अगर आप कैट पैरेंट हैं, तो सतर्क हो जाना जरूरी है. 17 स्टडीज के एनालिसिस के बाद यह रिजल्ट सामने आया है कि बिल्ली पालने से स्किजोफ्रेनिया जैसे मानसिक रोगों का जोखिम दोगुना हो सकता है.

ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड सेंटर फॉर मेंटल हेल्थ रिसर्च के साइंटिस्ट ने बिल्ली के संपर्क और साइकोटिक बीमारियों के बीच एक मजबूत संबंध पाया है. चलिए आपको बताते हैं कि रिसर्च में क्या निकला. 

स्टडी में क्या सामने आया

साइकेट्रिस्ट जॉन मैक्ग्राथ और उनकी टीम ने पिछले 40 साल में 11 देशों, जिनमें अमेरिका और ब्रिटेन भी शामिल हैं. उनमें इसको लेकर हुई 17 स्टडीज की समीक्षा की. Schizophrenia Bulletin में पब्लिश इस मेटा-एनालिसिस में यह मिला कि जिन लोगों का बिल्ली से संपर्क रहा, उनमें आगे चलकर मेंटल हेल्थ विकसित होने की संभावना लगभग दोगुनी थी. रिसर्चर ने दूसरे कारणों के असर को हटाकर भी यही पैटर्न पाया.

संभावित वजह

इस संबंध को समझाने के लिए जिस वजह की सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है, वह है Toxoplasma gondii. एक पैरासाइट जो आमतौर पर बिल्लियों में पाया जाता है. यह कैट फिकल मैटर, काटने, या फिर अधपके मीट और गंदे पानी के जरिए भी शरीर में पहुंच सकता है. एक बार अंदर आने पर यह दिमाग तक जा सकता है और न्यूरोट्रांसमीटरों को प्रभावित कर सकता है, जिससे व्यक्तित्व में बदलाव, साइकोटिक लक्षण या मानसिक बीमारियां ट्रिगर हो सकती हैं. हालांकि वैज्ञानिक यह भी साफ कर रहे हैं कि सिर्फ संबंध मिलना ही कारण साबित नहीं करता.

स्टडी की सीमाएं और उलझनें

रिस्क दोगुना सुनने में जितना बड़ा लगता है, तस्वीर उतनी सरल नहीं है. 17 में से 15 स्टडीज केस-कंट्रोल थीं. यानी पहले से बीमार और स्वस्थ लोगों की तुलना की गई, न कि उन्हें लंबे समय तक फॉलो किया गया. ऐसे डिजाइन से कारण-प्रभाव साबित नहीं होता. कई स्टडीज की क्वालिटी भी बहुत अच्छी नहीं थी और उनके नतीजे एक जैसे नहीं थे. कुछ स्टडीज ने तो इस दावे का खंडन भी किया. जैसे, अमेरिका में कॉलेज स्टूडेंट्स पर हुई एक स्टडी में कैट ओनरशिप और स्किजोटाइपी स्कोर के बीच कोई स्पष्ट रिलेशन नहीं मिला. एक अन्य स्टडी में जिन लोगों को बिल्ली ने काटा था, उनमें साइकोटिक-जैसे लक्षण ज्यादा दिखे. लेकिन रिसर्चर का मानना था कि इसमें शायद दूसरे बैक्टीरिया  की भूमिका हो सकती है.

इन रिसर्च में कुछ अलग ही बात

हर रिसर्च इस संबंध को सपोर्ट नहीं करती. उदाहरण के लिए, यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन की 2017 की स्टडी ने 5,000 लोगों को जन्म से 18 साल तक फॉलो किया और कैट एक्सपोजर और आगे चलकर साइकोटिक लक्षणों के बीच कोई ठोस संबंध नहीं पाया. इस स्टडी में सामाजिक-आर्थिक स्थिति जैसे फैक्टर्स को भी कंट्रोल किया गया था, जिससे कैट-स्किजोफ्रेनिया थ्योरी और कमजोर लगती है.

कैट ओनर क्या समझें

ताजा मेटा-एनालिसिस यह साबित नहीं करता कि बिल्ली पालना स्किजोफ्रेनिया का कारण है. यह सिर्फ एक संभावित रिस्क फैक्टर की ओर इशारा करता है. रिसर्चर खुद कह रहे हैं कि इस संबंध को समझने के लिए बड़े और बेहतर डिजाइन वाले अध्ययनों की जरूरत है. अगर आपके घर में बिल्ली है, तो घबराने की जरूरत नहीं है. बस कुछ आसान आदतें अपनाई जा सकती हैं, जैसे कि लिटर बॉक्स साफ रखें, बिल्ली के मल-मूत्र को संभालने के बाद हाथ धोएं और पालतू को हेल्दी रखें.

इसे भी पढ़ें- TB Disease: टीबी की कितनी स्टेज होती हैं, किस स्टेज में इंसान का बचना होता है मुश्किल?

Disclaimer: यह जानकारी रिसर्च स्टडीज और विशेषज्ञों की राय पर आधारित है. इसे मेडिकल सलाह का विकल्प न मानें. किसी भी नई गतिविधि या व्यायाम को अपनाने से पहले अपने डॉक्टर या संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

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About the author सोनम

जर्नलिज्म की दुनिया में करीब 15 साल बिता चुकीं सोनम की अपनी अलग पहचान है. वह खुद ट्रैवल की शौकीन हैं और यही वजह है कि अपने पाठकों को नई-नई जगहों से रूबरू कराने का माद्दा रखती हैं. लाइफस्टाइल और हेल्थ जैसी बीट्स में उन्होंने अपनी लेखनी से न केवल रीडर्स का ध्यान खींचा है, बल्कि अपनी विश्वसनीय जगह भी कायम की है. उनकी लेखन शैली में गहराई, संवेदनशीलता और प्रामाणिकता का अनूठा कॉम्बिनेशन नजर आता है, जिससे रीडर्स को नई-नई जानकारी मिलती हैं. 

लखनऊ यूनिवर्सिटी से जर्नलिज्म में ग्रैजुएशन रहने वाली सोनम ने अपने पत्रकारिता के सफर की शुरुआत भी नवाबों के इसी शहर से की. अमर उजाला में उन्होंने बतौर इंटर्न अपना करियर शुरू किया. इसके बाद दैनिक जागरण के आईनेक्स्ट में भी उन्होंने काफी वक्त तक काम किया. फिलहाल, वह एबीपी लाइव वेबसाइट में लाइफस्टाइल डेस्क पर बतौर कंटेंट राइटर काम कर रही हैं.

ट्रैवल उनका इंटरेस्ट  एरिया है, जिसके चलते वह न केवल लोकप्रिय टूरिस्ट प्लेसेज के अनछुए पहलुओं से रीडर्स को रूबरू कराती हैं, बल्कि ऑफबीट डेस्टिनेशन्स के बारे में भी जानकारी देती हैं. हेल्थ बीट पर उनके लेख वैज्ञानिक तथ्यों और सामान्य पाठकों की समझ के बीच बैलेंस बनाते हैं. सोशल मीडिया पर भी सोनम काफी एक्टिव रहती हैं और अपने आर्टिकल और ट्रैवल एक्सपीरियंस शेयर करती रहती हैं.

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