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मेक इन इंडिया का दहाड़ता शेर, 9 वर्षों में भारत ने बढ़ा दिए कई कदम आत्मनिर्भरता की ओर

जब भारत सरकार ने मेक इन इंडिया की शुरुआत की थी, तो आत्मनिर्भरता जाहिर तौर पर उसका एक बड़ा लक्ष्य था. एक प्रतियोगी के तौर पर चीन भी हमारे जेहन में था.

भारत के आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और विनिर्माण में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के लिए मोदी सरकार लगातार 'मेक इन इंडिया' पर जोर दे रही है. इसकी शुरुआत 2014 में प्रधानमंत्री मोदी ने पहली बार सत्ता संभालते ही कुछ दिनों बाद की थी. तब प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि इस अभियान का उद्देश्य भारत को एक वैश्विक विनिर्माण क्षेत्र यानी मैन्युफैक्चरिंग हब में बदल देना है, जिससे घरेलू और विदेशी दोनों ही तरह के निवेशों को बढ़ावा मिले. वह भी न केवल किसी एक खास क्षेत्र में, बल्कि हरेक क्षेत्र में इस तरह के कैंपेन से बढ़ावा मिले, सरकार का यही लक्ष्य था. पिछले 9 वर्षों में भारत ने 'मेक इन इंडिया' के माध्यम से काफी सफलता देखी है और इसका शुभंकर या लोगो जो दहाड़ता हुआ शेर है, वह अब सचमुच दहाड़ने लगा है. मेक इन इंडिया कई उद्योगों में फैला हुआ है, जिसमें ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स, टेक्सटाइल, रक्षा, घरेलू उत्पादन और नवीकरणीय ऊर्जा भी शामिल हैं. सरकार ने कई तरह से विकास और विनिर्माण को बढ़ावा देने वाले कदमों की शुरुआत की है. 

दहाड़ने लगा है मेक इन इंडिया का शेर 

सबसे पहले बात एक बड़ी खबर से शुरू करते हैं. चालू वित्त वर्ष के पहले 7 महीनों यानी अप्रैल से अक्टूबर के दौरान 8 बिलियन डॉलर का निर्यात भारत ने किया है. यह निर्यात भी केवल एक वस्तु का हुआ है और इसमें ज्यादातर हिस्सा आईफोन का है. इसका मतलब ये है कि भारत में आईफोन का निर्माण भी बढ़ा है और उसका निर्यात भी कई गुणा बढ़ गया है. इस साल अप्रैल से अक्टूबर के दौरान ऐपल इंक  ने भारत से 5 अरब डॉलर से ज्यादा कीमत के आईफोन का निर्यात किया है और यह जानकारी खुद ऐलप इंक ने दी है. यह बढ़ोतरी अभूतपूर्व है. भारत से आईफोन का निर्यात पिछले साल अप्रैल-अक्टूबर की तुलना में 177% बढ़ गया है. अब बात 'मेक इन इंडिया' की करें तो ऐपल इंक का यह निर्यात मुख्यतः उसकी ही बदौलत हुआ है.  2014 में लॉन्च किये गए मेक इन इंडिया का मुख्य उद्देश्य देश को एक अग्रणी वैश्विक विनिर्माण यानी मैन्युफैक्चरिंग और निवेश के लिए उचित स्थल में बदलना ही है. पिछले 9 वर्षों में 'मेक इन इंडिया' ने करीबन 27 क्षेत्रों में वैश्विक स्तर पर उपलब्धि हासिल की है, जिसमें मैन्युफैक्चरिंग और सर्विसेज के अलावा स्ट्रेटेजिक फील्ड भी शामिल है. भारत सरकार का प्रयास है कि यह पहल दुनिया भर के संभावित निवेशकों को भारत की ओर आकर्षित करे और यह उसी के लिए भारत की तरफ से खुला निमंत्रण भी है. 

जानिए क्या है 'मेक इन इंडिया' का उद्देश्य 

जब भारत सरकार ने मेक इन इंडिया की शुरुआत की थी, तो आत्मनिर्भरता जाहिर तौर पर उसका एक बड़ा लक्ष्य था. एक प्रतियोगी के तौर पर चीन भी हमारे जेहन में था. इसलिए, इस कार्यक्रम का लक्ष्य विदेशी निवेश को आकर्षित कर नया औद्योगिकीकरण करना और पहले से मौजूदा उद्योग का विकास करना भी था. इसके साथ ही विनिर्माण यानी मैन्युफैक्चरिंग की बढ़ोतरी को 12 से 14 फीसदी तक हरेक वर्ष करने का भी उद्द्शेय था. मैन्युफैक्चरिंग की पूरे देश के सकल घरेलू उत्पाद में हिस्सेदारी को बढ़ाकर 25 फीसदी करना और 10 करोड़ अतिरिक्त रोजगा का सृजन भी करना था. जाहिर है, इसमें से कुछ कार्यक्रम पूरे हुए, कुछ आधे हैं और कुछ रास्ते में ही हैं. 'मेक इन इंडिया' का एक उद्देश्य निर्यात आधारित विकास को बढ़ावा देना और एफडीआई यानी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ावा देना था. निर्यात जाहिर तौर पर बढ़ा है और एफडीआई जो 2014-15 में केवल 45.15 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, वह आठ वर्षो में रिकॉर्ड स्तर पर बढ़ा है. पिछले वित्त वर्ष यानी 2022 तक ही यह बढ़कर 83.6 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया था और अब भारत तीव्र आर्थिक सुधारों की वजह से ईज ऑफ डूइंग बिजनेस की तालिका में भी ऊपर आ गया है और यह बढ़कर 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित करने वाला है. खिलौनों का आयात 70 फीसदी तक घट गया है, जबकि इसी अवधि में भारतीय खिलौनों के निर्यात में 600 फीसदी से अदिक की शानदार बढ़ोतरी दर्ज की गयी है. 

आगे की राह और चुनौती

भारत सरकार ने 'मेक इन इंडिया' के तहत घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने और आयात के बोझ को कम करने के लिए मार्च 2020 में एक अनूठी योजना शुरू की, जिसका नाम पीएलआई यानी प्रोडक्शन लिंक्ड इनसेन्टिव स्कीम (उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना) है. इस योजना के माध्यम से सरकार भारतीय कंपनियों को उनके उत्पादों की बिक्री के आधार पर प्रोत्साहन प्रदान करती है. फिलहाल डिक्सन नाम की भारतीय कंपनी को हम इस योजना का झंडाबरदार कह सकते हैं. इसने इस साल यानी 2023 में श्याओमी, इंटेल, मोटोरोला और जियो जैसी अग्रणी वैश्विक कंपनियों से कई ठेके हासिल किए और हाल ही में इसने चीन की प्रमुख कंपनी लेनोवो के साथ भी करार किया है. डिक्सन कंपनी पीएलआई योजना के सबसे बड़े प्रचारक हैं, जिनके नतीजे बताते हैं कि किस तरह यह योजना भारत में मैन्युफैक्चरिंग की तस्वीर बदल सकती है. हालांकि, पीएम मोदी के महत्वाकांक्षी कार्यक्रम 'मेक इन इंडिया' की बुनियाद वाली यह योजना कुछ मामलों में पीछे भी रही. पीएलआई की वजह से मोबाइल डिवाइस (ऐपल व सैमसंग के कारण), इलेक्ट्रॉनिक्स, खाद्य प्रसंस्करण और फार्मा जैसे क्षेत्रों में बहुत प्रगति रही, लेकिन आईटी उत्पाद, रसायनिक बैटरी और कपड़ा जैसे क्षेत्रों में भारत को संघर्ष करना पड़ा है.

2020 में शुरू पीएलआई योजना के तहत शुरुआत में 1.97 लाख करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था, लेकिन मार्च 2023 तक महज 2,874 करोड़ रुपये जारी हुए. आशा थी कि योजना के चौथे साल यानी वित्त वर्ष 2024 में सबसे ज्यादा फंड मिलेगा, लेकिन वै​श्विक महामारी के कारण कई योजनाएं शुरू ही नहीं हो सकीं या उन्हें आगे बढ़ा दिया गया. अक्टूबर 2023 में सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र के लिए 1,000 करोड़ रुपये के वितरण को मंजूरी दी थी. विशेषज्ञ मानते हैं कि 80 फीसदी से अधिक आवंटन मोबाइल, फार्मा और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के लिए है, जो पहले ही वृद्धि कर रहे हैं. ऐसे में सरकार को उन क्षेत्रों के लिए रकम बढ़ानी चाहिए, जो पीछे चल रहे हैं. कपड़ा, बैटरी और स्टील जैसे क्षेत्रों के लिए रकम बढ़ानी होगी और इस वित्त वर्ष में वाहनों के फील्ड में जो 605 करोड़ रुपए आवंटित हुए थे, उनको सरकार को जल्दी से जारी करना चाहिए. जाहिर है कि भारत को मेक इन इंडिया के नाखून और दांत तेज करने होंगे, वरना जो भी रफ्तार उसने पकड़ी है, वह धीमी हो जाएगी. 

व्यालोक जेएनयू और आइआइएमसी से पढ़े हैं. विभिन्न मीडिया संस्थानों जैसे ईटीवी, दैनिक भास्कर, बीबीसी आदि में 15 वर्षों से अधिक का अनुभव. फिलहाल स्वतंत्र पत्रकारिता और अनुवाद करते हैं.
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