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जीत के बाद लीडर्स क्यों दिखाते हैं दो उंगली? कहां से हुई विक्ट्री साइन की शुरूआत

आपने देखा होगा कि जीत के बाद लीडर्स दो उंगलियों के माध्यम से वी का साइन बनाकर अपनी जीत को प्रदर्शित करते हैं. क्या आप जानते हैं कि वी साइन का इस्तेमाल विक्ट्री के तौर पर सबसे पहले कहां पर किया गया था?

आपने अक्सर देखा होगा कि राजनेताओं से लेकर खिलाड़ी तक कैमरा के सामने दो उंगलियां दिखाते हैं. चुनाव जीतने के बाद नेता खासकर दो उंगली दिखाकर अपनी विक्ट्री को प्रदर्शित करते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस विक्ट्री साइन की शुरूआत कहां से हुई थी और इसको जीत के रूप में क्यों प्रदर्शित किया जाता है? आज हम आपको बताएंगे कि विक्ट्री साइन की शुरूआत कैसे और कहां से हुई थी और दो उंगली दिखाने काम मतलब जीत क्यों होता है.  

विक्ट्री साइन

18 वीं लोकसभा चुनाव में जीत के बाद पीएम नरेंद्र मोदी और एनडीए के नेताओं ने कैमरा के सामने दो उंगली दिखाया था. इसके अलावा कांग्रेस नेता राहुल गांधी, सपा मुखिया अखिलेश यादव, नीतीश कुमार, चिराग पासवान समेत कई नेताओं ने जीत के तौर पर दो उंगली दिखाया था. इसके अलावा किक्रेट मैच, अभिनेता भी अक्सर कैमरे के सामने विक्ट्री साइन दिखाते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि विक्ट्री साइन की शरूआत कहां से हुई थी.

वी फॉर विक्ट्री

अब सवाल ये है कि भारत समेत दुनियाभर के नेता, खिलाड़ी, अभिनेता और आम इंसान जिस विक्ट्री साइन का इस्तेमाल हमेशा करता है, आखिर उसकी शुरूआत सबसे पहले कहां हुई थी? जानकारी के मुताबिक विक्ट्री साइन के लिए वी चिन्ह का इस्तेमाल अक्सर पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल के साथ जोड़ा जाता है. हालांकि यह प्रतीक वास्तव में पहली बार बेल्जियम में दिखाई दिया था. इसका इस्तेमाल टेनिस स्टार विक्टर डी लावेले ने किया था.

जानकारी के मुताबिक 1940 में विक्टर डे लावेले को लंदन में रेडियो बेल्जियम का आधिकारिक प्रस्तुतकर्ता नियुक्त किया गया था. अपने प्रसारणों के दौरान वो स्वतंत्र बेल्जियम के प्रतीक बन गए थे. एक साल बाद, उन्होंने सभी बेल्जियमवासियों से वी अक्षर को एक रैली के संकेत के रूप में अपनाने के लिए कहा था. क्योंकि वी फ्रेंच में Victoire (जीत) और फ्लेमिश में Vrijheid (स्वतंत्रता) का पहला अक्षर है. विक्टर की अपील के बाद जनवरी 1941 में इस चिन्ह का व्यापक रूप से उपयोग किया गया था. बेल्जियम, नीदरलैंड और उत्तरी फ्रांस के निवासियों ने नाज़ियों की अवहेलना करते हुए इसे इमारतों पर भी बनवाया था. वहीं ब्रिटिश युद्धकालीन नेता विंस्टन चर्चिल ने इस प्रतीक की सफलता को देखा और टेलीविज़न पर भाषण के दौरान इसका इस्तेमाल करने का फैसला किया था. इसके बाद उन्होंने पूरे युद्ध के दौरान इसका इस्तेमाल किया था. वहीं बाद में इस वी का इस्तेमाल विक्ट्री के तौर पर दुनियाभर में होने लगा था.

वी दिखाना फैशन नहीं जीत का संकेत

सोशल मीडिया पर कई बार यूजर्स फोटोशूट के दौरान दो उंगली दिखाकर यानी वी दिखाकर फोटो शूट कराते हैं. बता दें कि वी का इस्तेमाल फैशन के लिए नहीं बल्कि अपनी जीत को प्रदर्शित करने के लिए किया जाता है. लोकसभा चुनाव के बाद अलग-अलग दल के नेताओं ने भी वी साइन के साथ अपनी फोटो सोशल मीडिया पर पोस्ट किया है.

ये भी पढ़ें: इंडिया गठबंधन पेश कर सकता है सरकार बनाने का दावा? किन नियमों के तहत बनती है सरकार

गिरिजांश गोपालन को मीडिया इंडस्ट्री में चार साल से ज्यादा का अनुभव है. फिलहाल वह डिजिटल में सक्रिय हैं, लेकिन इनके पास प्रिंट मीडिया में भी काम करने का तजुर्बा है. दिल्ली विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की पढ़ाई करने के बाद गिरिजांश ने नवभारत टाइम्स अखबार से पत्रकारिता की शुरुआत की. उन्हें घूमना बेहद पसंद है. पहाड़ों पर चढ़ना, कैंपिंग-हाइकिंग करना और नई जगहों को एक्सप्लोर करना उनकी हॉबी में शुमार है। यही कारण है कि वह तीन साल से पहाड़ों में ज्यादा वक्त बिता रहे हैं. अपने अनुभव और दुनियाभर की खूबसूरत जगहों को अपने लेखन-फोटो के जरिए सोशल मीडिया के रास्ते लोगों तक पहुंचाते हैं.
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