पढ़िए उस आदमी की कहानी... जिसमें अपने जीवन में 1-2 नहीं, 500 से ज्यादा शादियां की
बिम्बिसार की तीन प्रमुख पत्नियां थीं. इनमें पहली पत्नी चेल्लमा थीं. दूसरी प्रमुख पत्नी खेमा और तीसरी प्रमुख पत्नी कोशाला देवी थीं. जबकि, बिम्बिसार ने अपने जीवनकाल में 500 से ज्यादा शादियां की थीं.

इतिहास ऐसे राजाओं-बादशाहों की कहानियों से भरा पड़ा है जिन्होंने अपने जीवनकाल में एक से ज्यादा शादियां कीं. लेकिन कुछ ऐसे भी रहे हैं जिन्होंने अपने जीवन में 100 से ज्यादा शादियां कीं. आज हम आपको ऐसे ही एक राजा की कहानी बताने वाले हैं जिन्होंने 100 या 200 नहीं, बल्कि 500 लड़कियों से शादी की थी. हालांकि, इनकी खास पत्नियों की लिस्ट में सिर्फ तीन ही नाम शामिल हैं.
कौन था यह राजा?
हम जिस राजा की बात कर रहे हैं वो मगध साम्राज्य के सम्राट बिम्बिसार थे. इन्होंने ही हर्यक वंश की स्थापना की थी. बिम्बिसार के शासनकाल की बात करें तो ये 558 ईसा पूर्व से 491 ईसा पूर्व तक था. इतिहास में बिम्बिसार को श्रेणिक नाम से भी जाना जाता था. कहते हैं पहले बौद्ध धर्म के अनुयाई थे, लेकिन अपनी पत्नी चेल्लमा के उपदेशों से प्रभावित होकर अंतिम समय में उन्होंने जैन धर्म को अपना लिया था.
500 पत्नियों की कहानी
ऐसे देखा जाए तो बिम्बिसार की तीन प्रमुख पत्नियां थीं. इनमें पहली पत्नी चेल्लमा थीं. दूसरी प्रमुख पत्नी खेमा और तीसरी प्रमुख पत्नी कोशाला देवी थीं. जबकि, कई इतिहासकार मानते हैं कि बिम्बिसार ने अपने जीवनकाल में 500 से ज्यादा शादियां की थीं. बौद्ध ग्रंथ महावग्ग के अनुसार, बिम्बिसार ने अपने जीवनकाल में लगभग 500 राजकुमारियों से विवाह किया था. ऐसा उन्होंने अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए किया था.
कैसे किया था बिम्बिसार ने धर्म परिवर्तन
सम्राट बिम्बिसार के धर्म परिवर्तन की बात करें तो वो शुरू से बौद्ध धर्म को मानते थे. उन्होने इस धर्म के प्रचार प्रसार के लिए कोई भी कमी नहीं छोड़ी. दरअसल, सुत्तनिपात की अट्ठकथा के पब्बज सुत्त को जब आप पढ़ते हैं तो पता चलता है कि बिम्बिसार ने सन्यासी गौतम बुद्ध का पहली बार दर्शन पांडव पर्वत के नीचे किया था, इसके साथ ही उन्हें अपने राजभवन में भी आमंत्रित किया था.
हालांकि, गौतम बुद्ध ने उनका निमंत्रण स्वीकार नहीं किया और अपने माग्र पर आगे बढ़ गए. इसके बाद बिम्बिसार ने बौद्ध धर्म के प्रचार प्रासर के लिए वो सब किया जो किया जा सकता था. हालांकि, इस दौरान उनकी मुलाकात चेल्लमा से हुई जो बाद में उनकी पत्नी बनीं. चेल्लमा जैन धर्म को मानती थीं और रोजाना इस धर्म के उपदेशों को पढ़ती थीं. सम्राट बिम्बिसार इन उपदेशों से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने जैन धर्म को स्वीकार कर लिया और बाद में अपनी राजधानी भी मगध से हटा कर उज्जैन में स्थापित कर ली.
ये भी पढ़ें: Missile Defence System: मिसाइलों की बारिश से इजरायल को बचाता है आयरन डोम, भारत के पास कितना मजबूत कवच?
Source: IOCL






















