क्या हैं परमवीर चक्र पर बने इंद्र के वज्र की कहानी?
भारत केे पहले गणतंत्र दिवस यानी 26 जनवरी 1950 को पर तीन वीरता पुरस्कार स्थापित किए गए थे. जिनमें से परमवीर चक्र वीरता के लिए दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान है.

परमवीर चक्र उन बहादुर सैनिकों को दिया जाता है जिन्होंने दुश्मनों के सामने बहादुरी से सबसे विशिष्ट कार्य किया हो. परमवीर चक्र सेना के हर जवान के लिए बेहद खास मायने रखता है. यदि कभी आपने इस मेडल को देखा हो तो उसपर एक विशेष तरह की डिजाइन होती है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि वो विशेष डिजाइन है क्या और क्यों परमवीर चक्र पर उकेेरी गई है. यदि नहीं तो चलिए आज जान लेते हैं.
क्या है परमवीर चक्र पर उकेरी गई डिजाइन
दरअसल यदि आप परमवीर चक्र का मेडल देेखेंगे तो उसकेे आगे के हिस्से पर इंद्र के वज्र की तरह चार प्रतिकृति बनी होती हैं. दरअसल परमवीर चक्र के मेडल का डिजाइन सावित्री बाई खानोलकर ने किया था. परमवीर चक्र को 3.5 सेमी व्यास वाले कांस्य धातु की गोलाकार आकृति के रूप में तैयार किया गया. जिसके चारों तरफ वज्र के चार चिह्न बनाए गए. पदक के बीच में अशोक की लाट से लिए गए राष्ट्र चिन्ह चक्र को भी उकेरा गया. परमवीर चक्र के दूसरी तरफ कमल का चिह्न बनाया गया, जिसमें हिंदी और अंग्रेजी में परमवीर चक्र लिखा गया.
क्या है वज्र चिन्ह
सावित्री बाई खानोलकर ने परमवीर चक्र पर उकेरेे गए वज्र चिन्ह के लिए ऋषि दधिचि से प्रेरणा ली थी. यदि वज्र के बारे में आप नहीं जानते हैं तो बता दें कि नेशनल वॉर मेेेमोरियल केे मुुताबिक, ऋषि दधीचि ने वृत्रासुर के अंत के लिए देवताओं नेे ऋषि दधिचि की हड्डियों का दान मांगा. जिसके बाद संसार की रक्षा के लिए उन्होंने अपने शरीर का त्याग कर दिया और इन्हीं ऋषी दधिचि की हड्डियों से भगवान विश्ववकर्मा ने इंद्र के वज्र सहित देवताओं के अस्त्र बनाए थे. जिससे टकराकर वृृत्रासुर का शरीर रेेत की तरह बिखर गया था. इस तरह इस वज्र में ऋषि दधिचि केे त्याग, समर्पण की कहानी भी दिखती है और इसकी मजबूती भी.
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