डॉलर नहीं अपनी करेंसी में ट्रेड करते हैं ये देश, जानें लिस्ट में किसका नाम शामिल?
Local Currency Trade: दुनिया डॉलर से पूरी तरह बाहर नहीं आई है, लेकिन विकल्प तेजी से मजबूत हो रहे हैं. अपनी करेंसी में व्यापार अब सिर्फ आर्थिक फैसला नहीं, रणनीतिक हथियार बन चुका है.

दुनिया की अर्थव्यवस्था दशकों तक डॉलर के इर्द-गिर्द घूमती रही है, लेकिन अब तस्वीर तेजी से बदल रही है. वैश्विक राजनीति, प्रतिबंधों का डर और मुद्रा जोखिम ने कई देशों को सोचने पर मजबूर कर दिया है. सवाल यह है कि क्या डॉलर का वर्चस्व टूट रहा है? कौन से देश अपनी ही मुद्रा में व्यापार कर रहे हैं और वे ऐसा क्यों कर रहे हैं? इसका जवाब सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि रणनीतिक भी हैं और यही बदलाव आने वाले वर्षों की दिशा तय करेगा. दरअसल हाल ही में अंतरराष्ट्रीय कारोबार में रुपये की मजबूती बढ़ती जा रही है, इसलिए यह सवाल उठना लाजमी है.
डॉलर निर्भरता से बाहर निकलने की कोशिश
अंतरराष्ट्रीय व्यापार में अमेरिकी डॉलर लंबे समय तक सबसे भरोसेमंद माध्यम रहा है. लेकिन वित्तीय प्रतिबंधों, लेनदेन लागत और मुद्रा उतार-चढ़ाव के कारण कई देशों ने वैकल्पिक रास्ते अपनाने शुरू कर दिए हैं. लोकल करेंसी ट्रेड यानी अपनी मुद्रा में व्यापार से देशों को भुगतान संतुलन में राहत मिलती है, ऐसे में विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव घटता है और आर्थिक संप्रभुता मजबूत होती है.
भारत की रणनीति
भारत ने हाल के वर्षों में रुपये में व्यापार को बढ़ावा देने के लिए नीतिगत कदम उठाए हैं. रूस के साथ तेल, कोयला और रक्षा सौदों में रूबल और युआन का इस्तेमाल हुआ. ईरान के साथ भी प्रतिबंधों के दौर में रुपये में भुगतान की व्यवस्था देखने को मिली. नेपाल और भूटान जैसे पड़ोसी देशों में भारतीय रुपया व्यापक रूप से स्वीकार्य है, जबकि श्रीलंका और बांग्लादेश के साथ भी सीमित दायरे में लोकल करेंसी सेटलमेंट की पहल हुई है. भारत और यूएई के बीच रुपया-दिरहम ट्रेड फ्रेमवर्क ने खाड़ी क्षेत्र में नई राह खोली है.
चीन का युआन पुश और एशिया की धुरी
चीन अपनी मुद्रा युआन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने में लगातार सक्रिय है. रूस और चीन के बीच ऊर्जा और कच्चे माल का बड़ा हिस्सा युआन-रूबल में सेटल हो रहा है. सऊदी अरब के साथ कुछ तेल सौदों में युआन का प्रयोग शुरू होना ऊर्जा बाजार में बड़ा संकेत माना गया. अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के कई देशों के साथ इंफ्रास्ट्रक्चर और कर्ज से जुड़े समझौतों में भी युआन की भूमिका बढ़ी है.
रूस प्रतिबंधों के बाद बदली दिशा
यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी प्रतिबंधों ने रूस को डॉलर और यूरो से दूर किया है. नतीजतन रूस ने एशिया, मध्य एशिया और तुर्किये जैसे साझेदारों के साथ रूबल आधारित भुगतान को बढ़ावा दिया. भारत और चीन के साथ वैकल्पिक मुद्रा व्यवस्थाओं ने रूस के व्यापार को जारी रखने में अहम भूमिका निभाई.
खाड़ी, लैटिन अमेरिका और अफ्रीका की पहल
खाड़ी देशों में डॉलर का दबदबा अब भी मजबूत है, लेकिन यूएई जैसे देश लोकल करेंसी विकल्पों को स्वीकार कर रहे हैं. लैटिन अमेरिका में ब्राजील और अर्जेंटीना ने आपसी व्यापार में अपनी मुद्राओं के इस्तेमाल पर सहमति बढ़ाई है. अफ्रीका में कुछ देश चीन और रूस के साथ लोकल करेंसी या बार्टर मॉडल अपनाकर डॉलर जोखिम से बचने की कोशिश कर रहे हैं.
यूरोप और वैकल्पिक भुगतान तंत्र
यूरोपीय संघ के भीतर व्यापार स्वाभाविक रूप से यूरो में होता है. ईरान के साथ व्यापार को बनाए रखने के लिए यूरोप ने INSTEX जैसे वैकल्पिक भुगतान तंत्र पर भी काम किया, जिससे डॉलर-आधारित प्रणाली से बाहर लेनदेन संभव हो सके.
क्यों बढ़ रही है लोकल करेंसी ट्रेड की अहमियत
अपनी मुद्रा में व्यापार से देशों को लेनदेन लागत घटाने, मुद्रा जोखिम कम करने और प्रतिबंधों के असर से बचने में मदद मिलती है. हालांकि डॉलर अभी भी वैश्विक व्यापार की रीढ़ है, लेकिन बहुध्रुवीय दुनिया में लोकल करेंसी मॉडल तेजी से स्वीकार किया जा रहा है. यह बदलाव क्रमिक है, पर दिशा स्पष्ट है.
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