पहाड़ों में हर साल इतनी गंदगी छोड़ जाते हैं बाहर से घूमने आए लोग, जानकर हैरान रह जाएंगे आप
हर साल लाखों लोग पिकनिक मनाने पहाड़ों पर जाते हैं और हजारों टन गंदगी छोड़कर वापस चले आते हैं. चलिए, आपको बताते हैं कि घूमने जाने वाले लोग कितनी गंदगी छोड़कर वापस आते हैं.

लोग अपनों के साथ वक्त बिताने या फिर खुद को शांत रखने के लिए प्रकृति की गोद में जाते हैं और आते समय ढेर सारा कूड़ा और गंदगी पहाड़ों पर छोड़ जाते हैं. इसको लेकर कई बार लोकल और टूरिस्ट के बीच कहासुनी हो जाती है. भारत हो या नेपाल, स्विट्जरलैंड हो या तिब्बत हो. पहाड़ अब केवल सुंदरता के लिए नहीं, बल्कि कचरे के ढेर के लिए भी जाने- जाने लगे हैं. खासकर गर्मी और छुट्टियों के मौसम में जब लाखों सैलानी पहाड़ों की ओर रुख करते हैं, तब वो पीछे छोड़ जाते हैं प्लास्टिक की बोतलें, खाने के पैकेट, टिशू पेपर, बीयर कैन और कई टन कचरा. चलिए, आपको बताते हैं कि हर साल कितनी गंदगी पहाड़ पर टूरिस्ट छोड़कर जाते हैं?
कितनी गंदगी छोड़कर जाते हैं टूरिस्ट्स?
nypost की एक रिपोर्ट के अनुसार, नेपाली सेना और यूनिलीवर नेपाल द्वारा 2023 में किए गए एक सफाई अभियान में एवरेस्ट और आसपास के कैंपों से लगभग 78,000 पाउंड (35 टन) कचरा हटाया गया. रिपोर्ट के अनुसार, एवरेस्ट के रास्ते में हर पर्वतारोही औसतन 250 ग्राम कचरा प्रतिदिन छोड़ता है. भारत के टूरिस्ट हब हिमाचल के फागू, मतियाना और खड़ापत्थर में आपको हर तरफ कूड़े के ढेर नजर आ जाएंगे. यही हाल नॉर्थ ईस्ट के राज्यों का भी है. हालांकि, सिक्किम इसमें अपवाद है.
ट्रैकिंग रीजन को लेकर एक रिसर्च ncbi में पब्लिश हुई थी, जिसमें यह बताया गया था कि हर पर्यटक प्रति दिन औसतन 288 ग्राम कचरा छोड़ता है, जबकि भारत की राष्ट्रीय औसत 350 ग्राम प्रति दिन है. अगर सिर्फ मनाली की बात करें तो रिपोर्ट्स के अनुसार, पीक सीजन में प्रतिदिन 30 से 40 टन कचरा उत्पन्न होता है. 2019 के आंकड़ों के अनुसार, मात्र दो महीने मई और जून में 2,000 टन कचरा जमा हुआ था. ओवरऑल हिमालय क्षेत्र में पर्यटकों द्वारा प्रतिवर्ष 80 लाख टन तक कचरा बनता है, इनमें केवल ट्रैक्स पर लाखों टन और मनाली जैसे हॉटस्पॉट्स में पीक के महीनों में हजारों टन कचरा मजा हो जाता है.
कहां है असली समस्या?
अगर दिक्कत की बात करें तो ज्यादातर टूरिस्ट सिर्फ घूमने जाते हैं, लेकिन उस जगह को स्वच्छ कैसे रखा जाए, गंदगी को कैसे कम की जाए इससे उनको दूर दूर तक कोई मतलब नहीं होता. इन कचरों में ज्यादातर कचरा नॉन बायोडिग्रेडेबल होता है जैसे कि प्लास्टिक, ग्लास, मेटल आदि. ये पहाड़ों में सड़कर, ग्लेशियर में जमा होकर जलवायु और ईको-सिस्टम को प्रभावित कर रहे हैं. नदियों, वन्य जीवन और स्थानीय समुदायों पर इसका असर गंभीर पड़ रहा है. इस कचरे को कम करने के लिए लोकल और एनजीओ की तरफ से तरह-तरह के कदम उठाए जा रहे हैं.
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