किस रस्सी पर दी जाती है फांसी, नाम क्या है और ये कहां बनाई जाती है?
फांसी के लिए मनीला रोप इस्तेमाल की जाती है, लेकिन सवाल ये उठता है कि आखिर इसमें ऐसी क्या खासियत है कि फांसी देने के लिए यही इस्तेमाल होती है.

हमारे देश में कोर्ट किसी व्यक्ति को फांसी की सजा सुनाता है तो उसके लिए एक तारीख तय की जाती है. उस तारीख पर ही उस व्यक्ति को फांसी दी जाती है. इसके लिए पिछले कुछ दशकों से एक खास रस्सी का इस्तेमाल होता आ रहा है, जो बक्सर जेल से ही आती है.
चाहे फिर पुणे जेल में अजमल कसाब को फांसी पर लटकाना हो या फिर कोलकाता में धनंजय चटर्जी को फांसी देनी हो. अफजल गुरू को भी फांसी देने के लिए बक्सर जेल से ही रस्सी आई थी. ऐसेल में सवाल ये उठता है कि आखिर इस रस्सी में ऐसा खास क्या है?
मनीला रोप कैसे पड़ गया नाम?
इस रस्सी को सबसे पहले फिलीपींस में एक पौधे से बनाया गया था, यही वजह है कि इसका नाम मनीला रोप या मनीला रस्सी पड़ गया. इस रस्सी को खास तरीके से तैयार किया जाता है. ये गड़ारीदार रस्सी होती है, जिसपर पानी का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता. बल्कि ये पानी को भी सोख लेती है. इससे लगाई गई गांठ अपनी पकड़ को मजबूत बनाए रखती है.
कब से बनाई जा रही हैं ये रस्सियां?
बिहार की बक्सर जेल में इस रस्सी को बनाने का कार्य 1930 से ही हो रहा है. यहां की बनी रस्सी से जब भी किसी को फांसी से लटकाया गया है तो वो असफल नहीं हुई है. दरअसल मनीला रस्सी बेहद खास तरह की होती है. जिसपर भारी से भारी सामान लटकाया जा सकता है. यही वजह है कि इसे फांसी देने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इसकी मजबूती का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसका इस्तेमाल पुल बनाने, भारी बोझों को ढोने और भारी वजन को लटकाने जैसे कामों में किया जाता है.
इस रस्सी पर 80 किलो तक के व्यक्ति को लटकाया जा सकता है. हालांकि फांसी देने से पहले कोशिश की जाती है कि 3 से 4 दिनों पहले ही ये रस्सी उस जेल में पहुंच जाए. ताकि जल्लाद अपराधी को फांसी पर लटकाने से पहले इसका अभ्यास कर सके.
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