जिन्ना नहीं इस शख्स ने की थी पाकिस्तान बनाने की मांग, मौत के बाद लाश का हुआ ये हाल
भारत और पाकिस्तान दोनों पहले एक देश थे लेकिन आजादी की मांग के समय पाकिस्तान को एक अलग देश के रूप में बनाने की मांग हुई. चलिए बताते हैं कि किसने यह मांग किया.

भारत से एक दिन पहले यानी 14 अगस्त को पाकिस्तान में आजादी का जश्न मनाया जाता है और 15 अगस्त को भारत में आजादी का जश्न मनाया जाता है. अंग्रेजों ने करीब 200 साल भारत पर राज किया और जाते जाते देश को दो हिस्सों भारत और पाकिस्तान में बांट कर चले गए. जिस समय आजादी की मांग हो रही थी उसी समय टू नेशन की बात होने लगी थी. देश के कुछ तत्कालीन नेता इसके पक्ष में थे तो कुछ टू नेशन की थ्योरी के खिलाफ थे. टू नेशन थ्योरी का समर्थन मोहम्मद अली जिन्ना और ऑल इंडिया मुस्लिम लीग दोनों कर रहे थे. उनकी मांग थी कि धर्म के आधार पर मुस्लिमों के लिए एक अलग देश होना चाहिए.
मोहम्मद अली जिन्ना को पाकिस्तान का संस्थापक माना जाता है. हमें पता है कि जिन्ना ने ही सबसे पहले पाकिस्तान की मांग की. लेकिन आज हम आपको बताते हैं कि असल में किस शख्स ने सबसे पहले पाकिस्तान को बनाने की मांग की थी और आखिरी में उसकी लाश के साथ क्या हुआ था.
1930 में रखी गई नींव
भारत से एक अलग देश पाकिस्तान बनाया जाए इस बात की नींव साल 1930 से रखनी शुरू हो गई थी. उस समय चौधरी रहमत अली जो इंग्लैंड के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में लॉ की पढ़ाई कर रहे थे, उन्होंने ही पहली बार अपने दोस्तों के सामने भारत को दो टुकड़ों में बांटकर एक अलग मुस्लिम देश बनाने का आइडिया पेश किया था.
उसने साल 1933 में तीसरे गोलमेज सम्मेलन के दौरान, अपने इस 'एक अलग मुस्लिम नेशन थ्योरी' को ब्रिटिश और भारतीय प्रतिनिधियों के बीच रखने की कोशिश की. बाद में चौधरी रहमत अली का मुस्लिम देश बनाने का यह आइडिया बाकी मुस्लिम लीडरों ने पुरजोर तरीके से उठाया.
मुस्लिम लीग का समर्थन
चौधरी रहमत अली के पाकिस्तान नेशनल मूवमेंट की शुरुआत को देखते हुए बाद में मुस्लिम लीग ने भी इसका झंडा अपने हाथ में उठा लिया. जब मुस्लिम लीग ने इसका झंडा उठाया तो लोगों को लगा कि पाकिस्तान की मांग मोहम्मद अली जिन्ना ने की है और इस तरह पाकिस्तान अलग देश बनने के बाद जिन्ना ही उसके संस्थापक कहलाए.
क्या हुआ चौधरी रहमत अली का
पाकिस्तान की मांग करने वाले चौधरी रहमत अली, पाकिस्तान की आजादी के समय पाकिस्तान में नहीं थे वे इंग्लैंड में थे और उनको कोई पूछने वाला नहीं था. दरअसल उनके और जिन्ना के पाकिस्तान वाले सपने के बीच काफी मतभेद था. जिन्ना ने रहमत के पाकिस्तान वाली सोच को पूरा नहीं होने दिया था जिसके चलते उन्होंने जिन्ना के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. जिसके चलते रहमत को देश से निकाल दिया गया था.
इंग्लैंड में रहमत अली की आर्थिक हालात काफी खराब हो गए कोई उनको पूछने वाला भी नहीं बचा. तबियत खराब होने के चलते 3 फरवरी 1951 को रहमत ने दुनिया को अलविदा कह दिया. हालांकि, इसकी जानकारी किसी को नहीं मिली उनकी लाश कमरे में सड़ती रही. लाश की बदबू जब पड़ोसियों तक पहुंची तो उनको निकालकर दफनाया गया. उनको दफनाने के लिए भी कोई उनका अपना नहीं था इसके चलते उनको दफनाने का काम कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी ने किया.
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Source: IOCL























