क्या होती है चार्जशीट, इसके कितने दिन बाद सुनाई जा सकती है सजा?
What Is Chargesheet: नेशनल हेराल्ड मनी लॉन्ड्रिंग केस में सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर चार्जशीट फाइल की गई है. चलिए आज हम आपको बताते हैं कि आखिर चार्जशीट क्या होती है और इसके बाद सजा कब होती है.

प्रवर्तन निदेशालय यानि ईडी ने नेशनल हेराल्ड मनी लॉन्ड्रिंग केस में कांग्रेस सांसद राहुल गांधी, सोनिया गांधी और कांग्रेस ओवरसीज प्रमुख सैम पित्रोदा के खिलाफ दिल्ली के राउज एवेन्यू कोर्ट में चार्जशीद दर्ज की गई है. इसी मामले में ईडी ने सुमन दुबे समेत अन्य लोगों का नाम भी चार्जशीट में दाखिल किया है. अदालती प्रक्रिया में या फिर खबरों में तो हम चार्जशीट का नाम सुनते ही रहते हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि आखिर चार्जशीट क्या होती है और कोर्ट कचहरी में इसकी क्या अहमियत है. चलिए इस बारे में जानते हैं.
क्या होती है चार्जशीट
चार्जशीट, आपराधिक अदालत में अपराध के आरोप साबित करने के लिए तैयार की गई आखिरी रिपोर्ट होती है. पुलिस अधिकारी या फिर जांच एजेंसियां मामले की जांच पूरी करने के बाद एक लिखित दस्तावेज तैयार करती हैं. चार्जशीट में पीड़ित व्यक्ति या फिर किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किए गए अपराध के बारे में लिखित या फिर मौखिक जानकारी शामिल होती है. चार्जशीट में नाम का विवरण, अपराध का विवरण और सूचना की प्रकृति शामिल होती है. यह प्रक्रिया सीआरपीसी की धारा 173 के तहत दर्ज की जाती है.
अदालत तय करती है आरोप
चार्जशीट में एफआईआर दर्ज करने की प्रक्रिया से लेकर जांच पूरी होने तक की सारी जानकारी और रिपोर्ट शामिल होती है. जब चार्जशीट पूरी तरह से तैयार हो जाती है तो पुलिस स्टेशन का प्रभारी इसको एक मजिस्ट्रेट को देता है. मजिस्ट्रेट को अधिकार होता है कि वह चार्जशीट में मौजूद अपराध का संज्ञान ले, ताकि आरोप तय किए जा सकें. मजिस्ट्रेट के संज्ञान लेने के बाद वह शख्स को अभियुक्त मानते हैं. इसके बाद यह अदालत तय करत है कि अभियुक्तों में से किसके खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए सबूत हैं या फिर नहीं. जब अदालत आरोप तय कर देती है, इसके बाद आरोपी के खिलाफ कार्रवाई शुरू की जाती है.
कितने दिनों बाद सुनाई जाती है सजा
पुलिस 90 दिनों में चार्जशीट को तैयार करके अदालत में पेश करती है. यह अदालत में आरोपी के खिलाफ आरोप तय करने में मदद करती है और आगामी कानूनी प्रक्रिया के लिए तैयार करती है. अदालत चार्जशीट देखकर यह तय करती है कि आरोपी के खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं या नहीं. अगर सबूत पर्याप्त नहीं हुए तो वह आरोपों को निरस्त कर सकती है. इसके अलावा उसमें IPC की धारा या फिर अन्य प्रासंगिक धाराओं के बारे में लिखा जाता है, जिनके तहत उसपर आरोप लगाए जाते हैं. इसके बाद समन जारी होता है, फिर अदालत में हाजिर होना पड़ता है. इसके बाद अदालत आरोप तय करती है, फिर कोर्ट का ट्रायल चलता है और अंत में कोर्ट फैसला सुनाते हुए सजा तय करती है.
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Source: IOCL






















