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बीच समंदर में खत्म हो जाए पानी के जहाज का फ्यूल तो क्या वो डूब जाएगा, कैसा होता है उसका हाल?

पानी के जहाजों को आर्कमिडीज के सिद्धांत को ध्यान में रखकर तैयार किया जाता है. इसके मुताबिक, पानी में डूबी किसी चीज के ऊपर की ओर लगने वाला बल वस्तु द्वारा हटाए गए पानी के भार के बराबर होता है.

मान लीजिए कि आप अपनी कार से कहीं जा रहे हैं, अचानक गाड़ी का फ्यूल खत्म हो जाए तो क्या होगा? जाहिर है, गाड़ी वहीं खड़ी हो जाएगी. इसी तरह हवाई जहाज का फ्यूल खत्म हो जाए तो वे जमीन पर आ गिरेंगे, लेकिन क्या होगा जब बीच समंदर में पानी के जहाज का फ्यूल खत्म हो जाए? आप सोच रहे होंगे कि पानी का जहाज भी डूब जाएगा. हालांकि, ऐसा नहीं है. 

पानी के जहाज को इस तरह डिजाइन किया जाता है कि वह फ्यूल खत्म होने पर भी पानी के ऊपर तैरता रहे, लेकिन यह जितना आसान लग रहा है, उतना है नहीं. आज हम इसी आसान से दिखने वाले कठिन सवाल का जवाब जानेंगे और पानी के जहाजों के पीछे छिपी साइंस के बारे में भी बताएंगे.

यात्रा और माल ढुलाई के काम आते हैं पानी के जहाज

आपने अपने जीवन में कभी न कभी हवाई यात्रा तो करी ही होगी, लेकिन बहुत से कम लोग हैं जो पानी के जहाज पर बैठे होंगे. पानी के जहाज का इस्तेमाल लंबी यात्राओं के लिए तो किया ही जाता है, साथ ही इससे बड़ी मात्रा में माल ढुलाई का भी काम होता है. आंकड़ों को उठाकर देखेंगे तो विश्व का 90 फीसदी व्यापार शिपिंग के जरिए ही किया जाता है. यह व्यापार का एक पुराना तरीका है. 

इस सिद्धांत पर तैयार किए जाते हैं जहाज

अब आते हैं अपने सवाल पर. दरअसल, पानी के जहाजों को आर्कमिडीज के सिद्धांत को ध्यान में रखकर तैयार किया जाता है. इसके मुताबिक, पानी में डूबी किसी चीज के ऊपर की ओर लगने वाला बल वस्तु द्वारा हटाए गए पानी के भार के बराबर होता है. हालांकि, पानी के जहाजों को ऐसे तैयार किया जाता है, जिससे पानी की अपेक्षा उसका घनत्व बहुत कम हो जाए और वह तैरती रहे. आसान भाषा में कहें तो पानी के जहाज का वजन उसके द्वारा हटाए गए पानी के वजन से कम होता है, जिससे वह कभी नहीं डूबता और पानी के ऊपर तैरता रहता है. 

कब डूब जाता है जहाज?

समंदर में फ्यूल खत्म हो जाने पर पानी के जहाज पानी के ऊपर स्थिर हो जाते हैं और लहरों के साथ इधर-उधर खिसकने लगते हैं, लेकिन ये डूबते नहीं. हालांकि, पानी के जहाज में पानी भी रिसता रहता है, जिन्हें हटाने के लिए पंपों का इस्तेमाल किया जाता है. अगर फ्यूल खत्म होने पर ये पंप भी बंद हो जाएं तो एक समय बाद इसमें पानी इतना भर जाएगा कि जहाज डूबने की स्थिति में आ जाएगा. 

यह भी पढ़ें: किसी नदी का पानी पीने या नहाने लायक है या नहीं, ये कैसे होता है तय?

प्रांजुल श्रीवास्तव एबीपी न्यूज में बतौर सीनियर कॉपी एडिटर अपनी सेवाएं दे रहे हैं. फिलहाल फीचर डेस्क पर काम कर रहे प्रांजुल को पत्रकारिता में 9 साल तजुर्बा है. खबरों के साइड एंगल से लेकर पॉलिटिकल खबरें और एक्सप्लेनर पर उनकी पकड़ बेहतरीन है. लखनऊ के बाबा साहब भीम राव आंबेडकर विश्वविद्यालय से पत्रकारिता का 'क, ख, ग़' सीखने के बाद उन्होंने कई शहरों में रहकर रिपोर्टिंग की बारीकियों को समझा और अब मीडिया के डिजिटल प्लेटफॉर्म से जुड़े हुए हैं. प्रांजुल का मानना है कि पाठक को बासी खबरों और बासी न्यूज एंगल से एलर्जी होती है, इसलिए जब तक उसे ताजातरीन खबरें और रोचक एंगल की खुराक न मिले, वह संतुष्ट नहीं होता. इसलिए हर खबर में नवाचार बेहद जरूरी है.

प्रांजुल श्रीवास्तव काम में परफेक्शन पर भरोसा रखते हैं. उनका मानना है कि पत्रकारिता सिर्फ सूचनाओं को पहुंचाने का काम नहीं है, यह भी जरूरी है कि पाठक तक सही और सटीक खबर पहुंचे. इसलिए वह अपने हर टास्क को जिम्मेदारी के साथ शुरू और खत्म करते हैं. 

अलग अलग संस्थानों में काम कर चुके प्रांजुल को खाली समय में किताबें पढ़ने, कविताएं लिखने, घूमने और कुकिंग का भी शौक है. जब वह दफ्तर में नहीं होते तो वह किसी खूबसूरत लोकेशन पर किताबों और चाय के प्याले के साथ आपसे टकरा सकते हैं.

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