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आज मुस्लिमों की तीसरी बड़ी ईद! लेकिन इसमें नहीं पढ़ी जाती नमाज, जानिए क्यों?

इसे ईद क्यों कहते हैं और अगर ईद कहते हैं तो फिर इसकी नमाज क्यों नहीं होती है. आज हम आपको बताएंगे कि ईद मिलादुन्नबी को ईद तो कहा जाता है लेकिन इसमें ईद की नमाज क्यों नहीं पढ़ी जाती.

ईद, वो त्यौहार जिसे हर मुसलमान बड़े जोरो शोरों से मनाता है और चाहता है कि हर दिन उसका ईद वाला हो. लेकिन इस्लाम के मुताबिक केवल दो ईदें मुसलमानों को मनाने का हुक्म है और वो है ईद-उल-फितर और ईद-उल-अजहा. यानी मीठी ईद और बकरी ईद. इसके अलावा इस्लाम में शुक्रवार यानी जुम्मे के दिन को भी ईद माना जाता है. लेकिन आजकल चर्चा में जो है वो ईद मिलादुन्नबी है, जी हां, इस्लाम के आखिरी पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के जन्म दिवस को ईद मिलादुन्नबी के तौर पर मनाया जाता है. लेकिन सवाल उठता है कि इसे ईद क्यों कहते हैं और अगर ईद कहते हैं तो फिर इसकी नमाज क्यों नहीं होती है. आज हम आपको बताएंगे कि ईद मिलादुन्नबी को ईद तो कहा जाता है लेकिन इसमें ईद की नमाज क्यों नहीं पढ़ी जाती.

ईद मिलाद उन नबी क्यों है बाकी दो ईदों से अलग

दरअसल, ईद मिलादुन्नबी को लेकर अलग-अलग उलेमाओं के अलग-अलग दावे और विचार हैं. जो प्रमाणिक दावा है वो यह है कि इस ईद का ईजाद हजरत मोहम्मद के इंतकाल के बाद हुआ है. बाकी की दो ईदें हजरत मोहम्मद के दौर से ही मनाई जाती रही हैं इसलिए उसकी दलील इस्लाम में मिलती है. लेकिन ईद मिलादुन्नबी जैसा कोई शब्द या त्यौहार इस्लाम में दिखाई नहीं पड़ता. अगर बात करें अहले हदीस या सलफी समूह के लोगों की तो वो इसे बिदअत करार देते हैं. बिदअत उसे कहा जाता है जो मोहम्मद साहब की शिक्षाओं के अलावा इस्लाम में मिला दिया जाता है.

वहीं बरेलवी और सुन्नी समूह के लोग इसे खुशी वाला दिन कहते हैं इसलिए इसके नाम के आगे ईद शब्द लगाया जाता है. कहा जाता है कि इसकी शुरुआत 10वीं शताब्दी में फातिमी खिलाफत (10वीं शताब्दी में मिस्र में) ने की थी, जिसके बाद 1207 में इसे एरबिल (जो अब इराक का हिस्सा है) में सार्वजनिक उत्सव के रूप में इसे पहली बार मनाया गया था. बाकि अलग अलग विद्वानों की अलग अलग राय है. ईद की नमाज खास तौर पर उन्हीं दो ईदों (फित्र और अजहा) पर फर्ज या वाजिब है. ईद मिलादुन्नबी के लिए ऐसी कोई नमाज़ न तो क़ुरआन में बताई गई है और न हदीस में।

क्यों नहीं होती इस दिन ईद की नमाज

अब जैसा कि पहले से क्लियर है कि पैगंबर की शिक्षा केवल दो ईदों में नमाज पढ़ने की रही है और ईद मिलाद उनकी वफात के बाद मनाया जाने लगा है, इसलिए इसे लेकर किसी नमाज का कोई हु्क्म नहीं है. इस्लाम के विद्वानों का मानना है कि पैगंबर या उनके साथियों ने उनके जन्मदिन को कभी कोई नाम नहीं दिया और ना ही सेलिब्रेट किया. असल में ईद मिलादुन्नबी (जिसे "मौलिद" भी कहते हैं) को ईद कहकर पुकारा जाता है, लेकिन यह इस्लामी शरियत के हिसाब से ईद-उल-फित्र और ईद-उल-अजहा जैसी असली "ईद" नहीं है. यह नाम पैगंबर की वफात के कई सालों बाद ईजाद किया गया है इसलिए इस्लाम से इसकी कोई दलील नहीं मिलती. लिहाजा लोग अपनी मोहब्बत दिखाने और खुशी मनाने के लिए इसे सेलिब्रेट करते हैं. हुक्म केवल दो ईदों की नमाज का ही मिलता है इसलिए ईद मिलादुन्नबी की कोई नमाज नहीं होती है.

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क्या है ईद मिलादुन्नबी और इसका मतलब

दरअसल, ईद का मतलब होता है खुशी. मिलाद का मतलब जन्मदिन और नबी मानें पैगंबर मोहम्मद साहब. उर्दू या हिंदी में इसका मतलब निकालें तो होगा नबी के पैदा होने की खुशी. ईद का मतलब होता है खुशी मनाना. इसलिए जब लोग पैगंबर के पैदा होने की खुशी मनाते हैं तो इस दिन को ईद करार दे दिया जाता है. इस्लाम के विद्वानों के अनुसार इस ईद की कोई प्रमाणिकता नहीं है और ना ही नबी के दौर में कभी किसी ने इस दिन को सेलिब्रेट किया. आपको यह भी बताते चलें कि ईस त्यौहार का ज्यादा प्रचलन भारतीय उपमहाद्वीप में ही है. कुछ ही लोग हैं जो इसे सेलिब्रेट करते रहे हैं. इस त्यौहार को लेकर अक्सर उलेमाओं में असहमति देखी गई है.

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शेख इंजमाम उल हक

हजरत शेख इंजमाम को पत्रकारिता में 2 साल से ज्यादा का अनुभव है. भारत की शाही संस्कृति और गौरवशाली इतिहास के गवाह राजस्थान से उनका संबंध है. भारत की शिक्षा नगरी के तौर पर मशहूर कोटा उनकी कर्मभूमि है, जहां हर साल हजारों युवक बड़े-बड़े सपने लेकर, आईआईटी–जेईई और नीट की तैयारी के लिए इस शहर को अपना बसेरा बनाते हैं, लेकिन इंजमाम को इस शहर का ये माहौल रास नहीं आया और उन्होंने डॉक्टर, इंजीनियर बनने के बजाए पत्रकार बनने का फैसला किया. हालांकि, कोटा से 72 किमी दूर एक छोटे से गांव सीसवाली में जन्म लेने वाले इंजमाम ने इंटरमीडियट तक की पढ़ाई इसी शहर से की.

बचपन से हिंदी में रुचि और लगाव उन्हें पत्रकारिता के लिए दिल्ली खींच लाया. जहां उन्होंने पत्रकारिता में स्नातक की डिग्री ली. उन्होंने जामिया मिलिया इस्लामिया से हिंदी साहित्य में MA और एम.फिल. की डिग्री भी हासिल की.

इंडिया न्यूज़ और विकिपीडिया के लिए कार्य करने के बाद इंजमाम एबीपी लाइव से बतौर ट्रेनी जुड़े और अब प्रमोट होकर बतौर कॉपी एडिटर अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं.

शेख इंजमाम का हिंदी और उर्दू से खासा लगाव है और दोनों भाषाओं में शौकिया शायरी भी करते हैं. उन्होंने कई कविताएं रची हैं और अनेक साहित्यिक लेखों का सृजन किया है. साहित्य की एक अन्य विधा व्यंग्य भी उनका पसंदीदा विषय है.

ट्रेंडिंग और राजनीति उनकी पसंदीदा बीट है. राजनीतिक खबरों पर पैनी नजर की वजह से वो रोजाना के ट्रेंड और सोशल मीडिया पर पनपने वाले विचारों की बखूबी समझ रखते हैं.

शेख इंजमाम को घूमना पसंद है और उन्होंने भारत के कई शहरों और देहात का सफर किया है और वहां के रीति रिवाज, रहन सहन और सामाजिक ताने बाने को खूब समझते हैं.

इंजमाम को फिल्में देखने और गाने सुनने का भी शौक है. अमरीश पुरी और सलमान खान को वह अपने पसंदीदा अभिनेताओं में शुमार करते हैं. सूफी और क्लासिकल म्यूजिक भी उन्हें रुहानी सुकून देता है. उन्हें फिल्मी अभिनेताओं, कलाकारों और नेताओं के इंटरव्यू देखने का भी शौक है.

भाषा पर मजबूत पकड़ और लेखन की विभिन्न शैली में गहरी समझ रखने की वजह से वो खूबसूरत अंदाज़ में बड़ी आसानी से खबरों को पेश करने में सफल रहते हैं.

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