कैसे होती है भिखारियों की जनगणना, जानिए किस राज्य में सबसे ज्यादा हैं उनकी संख्या?
भारत में भिखारियों की गिनती अलग से नहीं होती, बल्कि जनगणना में उन्हें beggars and vagrants की श्रेणी में दर्ज किया जाता है. 2011 की जनगणना के मुताबिक देश में कुल 4.13 लाख से ज्यादा भिखारी हैं.

आपने अक्सर मंदिरों के बाहर रेलवे स्टेशन या ट्रैफिक सिग्नल पर हाथ फैलाए लोगों को देखा होगा. कुछ बुजुर्ग तो कुछ छोटे बच्चों को गोद में लिए महिलाएं लोगों से भीख मांगती दिखाई देती है. लेकिन क्या कभी आपके मन में यह सवाल आया है कि आखिर देश में भिखारियों की गिनती कैसे होती है और किस राज्य में इनकी संख्या सबसे ज्यादा है.
भिखारियों की गिनती कैसे होती है?
भारत में भिखारियों की गिनती किसी अलग सर्वे से नहीं बल्कि जनगणना के दौरान की जाती है. जनगणना में ऐसे लोगों को beggars and vagrants की श्रेणी में शामिल किया जाता है. यानी वे लोग जो किसी भी तरह का उत्पादक काम नहीं करते और जीविका के लिए भीख पर निर्भर रहते हैं. यही आंकड़े सरकार संसद में पेश करती हो और इन्हीं के आधार पर नीतियां बनाई जाती है.
2011 की जनगणना के आंकड़े
2011 की जनगणना के अनुसार भारत में कुल 4,13,670 भिखारी और वंचित वर्ग के लोग दर्ज किए गए थे. इनमें से 2 लाख 21673 पुरुष और 19197 महिलाएं थी. हालांकि आंकड़े पुराने हैं लेकिन यही आधिकारिक उत्तर आज भी संदर्भ के रूप में सामने रखा जाता है.
किस राज्य में सबसे ज्यादा भिखारी?
राज्यवार आंकड़ों पर नजर डाले तो पश्चिम बंगाल सबसे ऊपर है. यहां कुल 81,244 भिखारी दर्ज किए गए थे, जो पूरे देश में सबसे ज्यादा है. इसके बाद उत्तर प्रदेश का नंबर आता है, जहां 65,835 भिखारी मिले. तीसरे नंबर पर आंध्र प्रदेश आता है जहां 30,218, फिर आता है बिहार जहां 29,723, इसके बाद मध्य प्रदेश जहां 28,695 और फिर राजस्थान आता है जहां 25,853 भिखारी है. वहीं पूर्वोत्तर राज्यों से जैसे नागालैंड, मिजोरम और सिक्किम में भिखारियों की संख्या बहुत कम है.
सरकार की क्या योजना है?
भीख मांगने वालों के पुनर्वास के लिए सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने स्माइल योजना चलाई है. इसके तहत उन्हें न सिर्फ आश्रय, बल्कि चिकित्सा, शिक्षा, कौशल विकास और रोजगार से जोड़ने की कोशिश की जाती है. दिल्ली, लखनऊ, पटना, नागपुर, इंदौर, हैदराबाद और बेंगलुरु जैसे शहरों में पायलट प्रोजेक्ट भी चलाएं गए हैं.
क्या कहती है अदालत?
दिल्ली हाई कोर्ट ने 2018 में अपने एक फैसले में कहा था कि लोग भीख इसलिए नहीं मांगते क्योंकि उन्हें अच्छा लगता है, बल्कि इसलिए क्योंकि उनके पास कोई दूसरा साधन नहीं होता है. भीख मांगना मजबूरी है अपराध नहीं. अदालत में इसे अपराध मानने के बजाय सामाजिक-आर्थिक समस्या बताकर पुनर्वास पर जोर दिया.
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