बकरीद और मीठी ईद तो सुनी होगी, लेकिन आज है तीसरी ईद, जानें इसे क्यों मनाते हैं?
Eid Milad Un Nabi 2025: ईद-ए-मिलाद-उन-नबी पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के जन्म और उनकी शिक्षाओं की याद में मनाया जाता है. इस साल यह पर्व खास है क्योंकि इसके साथ उनके जन्म के 1500 साल पूरे हो रहे हैं.

ईद-ए-मिलाद-उन-नबी इस्लाम धर्म का वह पर्व है, जो पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के जन्म और उनके उपदेशों की याद में मनाया जाता है. इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार यह पर्व रबी-उल-अव्वल महीने की 12वीं तारीख को आता है. इस साल यह 5 सितंबर को पड़ा और इसी दिन दुनियाभर के मुसलमानों ने इसे धूम-धाम से मना रहे हैं.
क्यों मनाते हैं तीसरी ईद
इस दिन का महत्व केवल इसलिए नहीं है कि यह पैगंबर मोहम्मद साहब के जन्म का दिन है, बल्कि यह भी माना जाता है कि इसी दिन उनका इंतकाल भी हुआ था. यही वजह है कि मुस्लिम समाज में इसे दो तरह से देखा जाता है. कुछ लोग इसे खुशी और जश्न का दिन मानते हैं, जबकि कुछ इसे शोक और आत्ममंथन का अवसर मानते हैं. यही इसकी खासियत है, जो इसे अन्य ईदों से अलग बनाता है.
बेहद अहम है ईद-ए-मिलाद
पैगंबर मोहम्मद का जन्म लगभग 570 ईस्वी में मक्का की धरती पर हुआ था. उस समय समाज अंधकार और बुराइयों से घिरा हुआ था. माना जाता है कि पैगंबर साहब का आगमन उसी अंधकार को दूर करने और इंसानों को सच्चाई, बराबरी और इंसाफ के रास्ते पर चलाने के लिए हुआ. इस वजह से उनके जन्मदिन को सिर्फ एक उत्सव नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक संदेश का प्रतीक माना जाता है.
इस्लाम में सिर्फ दो ईद का है जिक्र
इस्लाम धर्म में केवल दो ही ईदों का सीधा उल्लेख मिलता है, पहला ईद-उल-फितर, जिसे मीठी ईद कहा जाता है, और ईद-उल-अजहा, यानी कुर्बानी की ईद. लेकिन पैगंबर मोहम्मद साहब का जन्मदिन इतना अहम है कि इसे भी ईद के रूप में मान्यता दी गई है. इस साल ईद-ए-मिलाद-उन-नबी का महत्व और बढ़ गया है, क्योंकि यह पैगंबर मोहम्मद साहब के जन्म के 1500 साल पूरे होने का अवसर भी है.
कुल मिलाकर, ईद-ए-मिलाद-उन-नबी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि आस्था, आध्यात्मिकता और पैगंबर मोहम्मद साहब की शिक्षाओं को याद करने का अवसर है. यह दिन मुसलमानों को याद दिलाता है कि इंसाफ, दया और समानता का रास्ता ही असली इंसानियत का पैगाम है.
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