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क्या हैंगिंग टिल डेथ की सजा है क्रुएल? फिर भारत आज भी क्यों करता है इसको फॉलो?

भारत में आज भी कैपिटल पनिशमेंट के दिए फांसी की सजा दी जाती है. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में इस सजा को हटाकर किसी और तरीके को अपनाने की बात कही गई है. ऐसे में आइए जानते हैं इसके बारे में.

भारत में एक बार फिर कैपिटल पनिशमेंट को लेकर बहस छिड़ गई है. हालही में सुप्रीम कोर्ट में एक PIL की सुनवाई के दौरान ये कहा गया कि भारत में दी जाने वाली कैपिटल पनिशमेंट की सजा में अपराधी को फांसी पर लटकाने का तरीका बिल्कुल गलत है.  

दरअसल, भारत में हैंगिंग तिल डेथ की पनिशमेंट रेयरेस्ट ऑफ द रेयर केसिस में दी जाती है. इसमें अपराधी को तब तक सूली पर लटकाया जाता है, जब तक वह मर न जाए. लेकिन इस तरीके के काफी क्रुएल होने के कारण इसका विरोध हो रहा है और भारत में कैपिटल पनिशमेंट के दूसरे तरीके जैसे- जहरीला इंजेक्शन देकर अपराधी को मारने पर जोर दिया जा रहा है. ऐसे में आइए जानते हैं कि क्यों भारत आज भी फांसी की सजा को फॉलो करता है.

कैसे हुई फांसी की सजा की शुरुआत ?

भारत में भारतीय न्याय संहिता (BNS) के सेक्शन 393 के अंतर्गत दी जाने वाली फांसी की सजा ब्रिटिश टाइम से चली आ रही है. उस दौरान ये सजा इंडियन कैदियों को दी जाती थी ताकि कोई ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आवाज न उठा सके. लेकिन आजादी के बाद भारत ने अंग्रेजों के कई नियम और कानूनों को जैसे का तैसे अपना लिया और आज तक ये सिस्टम यूं ही चला आ रहा है. भारत के अलावा कई और देशों में भी कैपिटल पनिशमेंट की सजा दी जाती है पर सभी देशों के तरीके अलग है. जैसे- सऊदी अरब में सिर कलम करने की सजा दी जाती है. ऐसे में भारत में दी जाने वाली फांसी की सजा को ये कहकर क्रिटिसाइज किया जाता है कि ये बेहद दर्दनाक और अपमानजनक होती है.

फांसी की सजा के बदले कौनसा ऑप्शन बेहतर?

फांसी की सजा को लेकर लोगों का मानना है कि ये बिल्कुल भी न्यायपूर्ण नहीं है. ऐसे में इसके अलावा कैपिटल पनिशमेंट के कई दूसरे ऑप्शंस हैं, जिन्हें भारत अपना सकता है. इनमें लीथल इंजेक्शन देना, शूटिंग, इलेक्ट्रोक्यूशन या फिर गैस चैंबर में डालकर भी अपराधियों को मारा जा सकता है. ऐसे में ये मौत कम दर्दनाक और फांसी की सजा से ज्यादा रेस्पेक्टेबल होगी. साथ ही, फांसी की सजा भारतीय संविधान के आर्टिकल 21 (राइट टू लाइफ) का भी उल्लंघन करती है, जिसमें कहा गया है कि हर किसी को डिग्निटी के साथ मरने का अधिकार है.

कितने लोगों को मिली है फांसी की सजा ?

ग्लोबल NGO एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के मुताबिक कुल 55 देशों में ये सजा दी जाती है, जिसमें भारत, अमेरिका और चीन जैसे देश भी शामिल हैं, जबकि 70 प्रतिशत देशों में इसे अबोलिश कर दिया गया है. एमनेस्टी इंटरनेशनल की 2023 की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2022 के मुकाबले साल 2023 में फांसी की सजा के मामले 31 परसेंट बढ़े हैं. भारत में भी साल 2023 में सबसे अधिक फांसी की सजा सुनाई गई थी.

इसे भी पढ़ें : सच या अफवाह, क्या थी बाइसाइकिल फेस की बीमारी, महिलाओं को क्यों था खतरा?

आंखों में सपने लिए, घर से हम चल तो दिए, जानें ये राहें अब ले जाएंगी कहां... कहने को तो ये सिंगर शान के गाने तन्हा दिल की शुरुआती लाइनें हैं, लेकिन दीपाली की जिंदगी पर बखूबी लागू होती हैं. पूरा नाम दीपाली बिष्ट, जो पहाड़ की खूबसूरत दुनिया से ताल्लुक रखती हैं. किसी जमाने में दीपाली के लिए पत्रकारिता का मतलब सिर्फ कंधे पर झोला टांगकर और हाथों में अखबार लेकर घूमने वाले लोग होते थे, लेकिन धीरे-धीरे उनकी आंखों में इसी दुनिया का सितारा बनने के सपने पनपने लगे और वह भी पत्रकारिता की दुनिया में आ गईं. उन्होंने अपने इस सफर का पहला पड़ाव एबीपी न्यूज में डाला है, जहां वह ब्रेकिंग, जीके और यूटिलिटी के अलावा लाइफस्टाइल की खबरों से रोजाना रूबरू होती हैं. 

दिल्ली में स्कूलिंग करने वाली दीपाली ने 12वीं खत्म करने के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय में एडमिशन लिया और सत्यवती कॉलेज से पॉलिटिकल साइंस ऑनर्स में ग्रैजुएशन किया. ग्रैजुएशन के दौरान वह विश्वविद्यालय की डिबेटिंग सोसायटी का हिस्सा बनीं और अपनी काबिलियत दिखाते हुए कई डिबेट कॉम्पिटिशन में जीत हासिल की. 

साल 2024 में दीपाली की जिंदगी में नया मोड़ तब आया, जब उन्होंने गुलशन कुमार फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (नोएडा) से टीवी जर्नलिज्म में पोस्टग्रेजुएट डिप्लोमा की डिग्री हासिल की. उस दौरान उन्होंने रिपोर्टिंग, एडिटिंग, कंटेंट राइटिंग, रिसर्च और एंकरिंग की बारीकियां सीखीं. कॉलेज खत्म करने के बाद वह एबीपी नेटवर्क में बतौर कॉपीराइटर इंटर्न पत्रकारिता की दुनिया को करीब से समझ रही हैं. 

घर-परिवार और जॉब की तेज रफ्तार जिंदगी में अपने लिए सुकून के पल ढूंढना दीपाली को बेहद पसंद है. इन पलों में वह पोएट्री लिखकर, उपन्यास पढ़कर और पुराने गाने सुनकर जिंदगी की रूमानियत को महसूस करती हैं. इसके अलावा अपनी मां के साथ मिलकर कोरियन सीरीज देखना उनका शगल है. मस्ती करने में माहिर दीपाली को घुमक्कड़ी का भी शौक है और वह आपको दिल्ली के रंग-बिरंगे बाजारों में शॉपिंग करती नजर आ सकती हैं.

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