Bihar Assembly Election: भारत में कैसी थी सबसे पुरानी ईवीएम, जानें तब से अब तक क्या-क्या बदल गया?
Bihar Assembly Elections: इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का इस्तेमाल करके काफी लंबे समय से भारत में वोटिंग की जा रही है. आइए जानते हैं यह भारत में सबसे पहले कब इस्तेमाल हुई थी.

Bihar Assembly Election: भारत निर्वाचन आयोग आज शाम 4 बजे दिल्ली के विज्ञान भवन में बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करने जा रहा है. ऐसा कहा जा रहा है कि आयोग शायद बिहार में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर सकता है. इसी बीच आज हम जानेंगे कि भारत में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) की शुरुआत कैसे हुई और साथ ही समय के साथ-साथ उसमें क्या बदलाव आए.
भारत में ईवीएम की शुरुआत
1970 के दशक में चुनाव बूथ कैप्चरिंग और वोटों में हेरा फेरी से काफी ज्यादा प्रभावित थे. उस वक्त भारत के लगभग 35 करोड़ मतदाता मतपत्रों से वोटिंग करते थे. इसकी प्रक्रिया भी काफी धीमी थी और साथ ही हेरा फेरी की संभावना भी काफी ज्यादा थी. 1982 में केरल के परवूर टाउनशिप में ईवीएम का पहला परीक्षण किया गया. 123 मतदान केंद्रों में से 50 में ईवीएम मशीन लगाई गई. पहली बार मतदाताओं ने कागज पर मुहर लगाने के बजाय एक बटन दबाया.
कैसी थी भारत की पहली ईवीएम
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन की पहली पीढ़ी का डिजाइन काफी ज्यादा सरल था. यह दो भागों में बटी हुई थी: एक कंट्रोल यूनिट और दूसरी बैलेटिंग यूनिट. इन दोनों को केबल से जोड़ा जाता था. मतदाताओं को सिर्फ अपने पसंद के उम्मीदवार के नाम और प्रतीक के सामने वाले नीले बटन को दबाना होता था.
समय के साथ विकास
समय के साथ-साथ सुरक्षा और दक्षता की बढ़ती चिंताओं को दूर करने के लिए ईवीएम को अपग्रेड किया गया. शुरुआती एम1 मॉडल्स को 2006 तक इस्तेमाल किया गया. दरअसल इनमें छेड़छाड़ के खिलाफ मजबूत सुरक्षा का थोड़ा अभाव था. 2006 और 2013 के बीच एम 2 मॉडल में एक टाइम स्टैम्प सुविधा को शुरू किया गया. इसकी मदद से डेटा का वेरिफिकेशन और वोट की ट्रैकिंग करना संभव हो गया. 2013 से एम 3 मॉडल इस्तेमाल किया जाने लगा. इन मशीनों की खास बात यह है कि अगर इनमें किसी भी तरह की कोई छेड़छाड़ की जाए तो ये अपने आप बंद हो जाती हैं.
VVPAT की शुरुआत
दरअसल शुरुआत में मतदाताओं के लिए इस बात को पक्का करने का कोई जरिया नहीं था कि उनका वोट सही तरीके से डला है या नहीं. लेकिन वीवीपैट के इस्तेमाल के बाद अब मतदाताओं को उनके द्वारा चुने गए उम्मीदवार का नाम और चुनाव चिह्न दिखाने वाली एक पर्ची भी मिलती थी. यह एक बॉक्स में बंद होने से पहले कुछ सेकंड के लिए दिखाई देती थी. इस तकनीक का सबसे पहले इस्तेमाल 2013 में नागालैंड में एक उपचुनाव के दौरान किया गया.
सुरक्षा और विश्वास की मजबूती
आज के समय में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन एम 3 मॉडल माइक्रोचिप से लैस है. इन मशीनों के परिवहन की निगरानी जीपीएस ट्रैकिंग के जरिए की जाती है. इसका उद्देश्य यह है कि परिवहन के दौरान उन्हें कहीं और ना मोड़ा जा सके या फिर उसमें हेरा फेरी ना की जा सके. इसी के साथ मतदान के बाद उन्हें डबल लॉकिंग सिस्टम में सुरक्षित स्ट्रांग रूम में रखा जाता है. मतगणना के दिन तक यहां लगातार निगरानी की जाती है.
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Source: IOCL

























