Explained : क्यों सवालों के घेरे में है भारत की धार्मिक स्वतंत्रता?
अमेरिकी सरकार की एक संस्था ने भारत की धार्मिक स्वतंत्रता पर सवाल खड़े किए हैं. उसने अमेरिकी सरकार से सिफारिश की है कि भारत को धार्मिक स्वतंत्रता के मामले में चीन, ईरान, उत्तर कोरिया, पाकिस्तान और सऊदी अरब जैसे देशों के साथ रखा जाए.

भारत का संविधान इस देश के हर नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देता है. ये एक मौलिक अधिकार है, जिसका जिक्र संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 के बीच किया गया है. इसमें साफ तौर पर लिखा गया है कि सभी व्यक्तियों को धर्म के सभी पक्षों में स्वतंत्रता का अधिकार हासिल होगा. लेकिन अब भारत में दी गई यही धार्मिक स्वतंत्रता एक अंतरराष्ट्रीय संगठन के सवालों के घेरे में है.
इस संगठन का नाम है USCIRF. पूरा नाम है United States Commission on International Religious Freedom, जो अमेरिकी सरकार की एक स्वतंत्र संस्था है. इसका काम है पूरी दुनिया में धार्मिक या आस्था की स्वतंत्रता के उल्लंघनों पर निगरानी रखना. साथ ही अमेरिकी राष्ट्रपति, विदेश मंत्री और कांग्रस को पूरे मामले की जानकारी देना और नीतिगत सिफारिशें करना. हालांकि अमेरिकी सरकार इस संस्था की सिफारिशों को मानने के लिए बाध्य नहीं है. इस संगठन की स्थापना साल 1998 में International Religious Freedom Act of 1998 के तहत की गई थी. ये हर साल अलग-अलग देशों की रिपोर्ट जारी करता है, जिसमें भारत का भी जिक्र रहता है.
10 जून, 2020 को इस संस्था ने साल 2019 की अपनी रिपोर्ट जारी की है. इसमें जनवरी 2019 से लेकर दिसंबर 2019 तक के मामलों को शामिल किया गया है. रिपोर्ट को जारी किया है अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने. इस रिपोर्ट के आधार पर United States Commission on International Religious Freedom के एम्बेसडर सैमुअल ब्राउनबैक ने कहा है कि भारत ऐतिहासिक रूप से सभी धर्मों को लेकर सहिष्णु रहा है और यहां पर हर धर्म को सम्मान दिया जाता रहा है, लेकिन फिलहाल भारत में धार्मिक स्वतंत्रता के मसले पर जो भी हो रहा है, उसे लेकर अमेरिका बेहद चिंतित है. सैमुअल ब्राउनबैक ने कहा है कि भारत में जो चल रहा है, वो बेहद परेशान करने वाला है, क्योंकि यहां पर अधिक सांप्रदायिक हिंसा देखने को मिल रही है. ब्राउनबैक ने ये भी कहा है कि अमेरिका को उम्मीद है कि कोविड 19 के प्रसार के लिए भारत में अल्पसंख्यकों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जाएगा.
रिपोर्ट में लिखा गया है कि 2019 में भारत में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थितियों में भारी गिरावट हुई है और धार्मिक अल्पसंख्यकों पर अधिक हमले हुए हैं. अल्पसंख्यकों और उनके धार्मिक स्थलों के खिलाफ हिंसा हुई, उनके खिलाफ अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया गया, हिंसा को शह दी गई, लेकिन केंद्र सरकार ने किसी को सजा नहीं दी. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 2019 के दौरान पक्षपाती नीतियों, विद्रोहजनक भाषा और राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय स्तर पर अल्पसंख्यकों के विरुद्ध हिंसा के लिए सहनशीलता ने गैर हिंदू समुदायों में डर का माहौल बढ़ा दिया. फरवरी 2020 में दिल्ली में हुई हिंसा पर भी रिपोर्ट में सवाल उठाए गए हैं और दिल्ली पुलिस पर प्रत्यक्ष तौर पर हिंसा में भाग लेने की बात कही गई है.
इन स्थितियों को ठीक करने के लिए रिपोर्ट में अमेरिकी सरकार से कुछ सख्त कदम उठाने की भी वकालत की गई है. रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया है कि भारत को इस मामले में विशेष चिंता वाले देशों की श्रेणी में डाल देना चाहिए. साथ ही धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करने वाले अधिकारियों और सरकारी एजेंसियों के संयुक्त राष्ट्र में प्रवेश पर प्रतिबंध लगाएं. साथ ही ये भी कहा गया है कि अमेरिकी साझेदारी के जरिए भारतीय एजेंसिया कानूनों का पालन करें. इससे पहले साल 2018 की रिपोर्ट में भी इस एजेंसी ने भारत में धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों पर असंतोष जताया था और उस वक्त भी भारत की स्थितियों को खराब की श्रेणी में ही रखा था.
United States Commission on International Religious Freedom संस्था की स्थापना 1998 में हुई है. और अपने बनने के पांच साल बाद ही इस संस्था ने पहली बार साल 2003 में भारत को कंट्री ऑन पॉर्टिकुलर कंसर्न यानि कि विशेष चिंता वाले देश की श्रेणी में डाल दिया था. तब साल 2002 में गुजरात के गोधरा में दंगे हुए थे. रिपोर्ट में वजह भी इसी को बताया गया था. इसके बाद साल 2004 की रिपोर्ट में भी यूएससीआईआरएफ ने भारत को इसी श्रेणी में डाला था और उस वक्त भी वजह गोधरा दंगा ही बताया गया था. उसके बाद संस्था ने भारत को इस श्रेणी से बाहर कर दिया था. लेकिन अब साल 2019 की रिपोर्ट जब आई है तो एक बार फिर से भारत को उसी विशेष चिंता वाले देशों की श्रेणी में डाल दिया गया है. इस लिस्ट में चीन, ईरान, उत्तर कोरिया, पाकिस्तान, सऊदी अरब, तजाकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान जैसे देश शामिल हैं.
लेकिन भारत की ओर से इस रिपोर्ट को साफ तौर पर खारिज कर दिया गया है. इसी साल अप्रैल के अंत में जब इस संस्था ने अपनी रिपोर्ट के आधार पर भारत को विशेष चिंता वाले देशों की श्रेणी में डालने के लिए अमेरिका से कहा था, तो उस वक्त भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर की ओर से इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया गया था. विदेश मंत्री एस जयशंकर की ओर से इस रिपोर्ट को तैयार करने वाली अमेरिकी टीम का वीजा रद्द करते हुए कहा था कि हमें इस कमीशन से भारतीय नागरिकों के हालात और संवैधानिक रूप से सुरक्षित अधिकारों के बारे में सुनने की कोई ज़रूरत नहीं है.
1जून, 2020 को बीजेपी सांसद निशिकांत दूबे को लिखे अपने पत्र में विदेश मंत्री ने कहा था कि भारत में धार्मिक स्वतंत्रता के मसलों को लेकर यूएससीआईआरएफ का रवैया हमेशा से पक्षपातपूर्ण रहा है, जिसका भारत सरकार संज्ञान भी नहीं लेती है. विदेश मंत्री की ओर से कहा गया था कि हम अपनी स्वायत्तता और संविधान के तहत नागरिकों को मिले मौलिक अधिकारों के मामले में किसी विदेशी हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं करेंगे. वहीं विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा था कि संस्था की पक्षपातपूर्ण टिप्पणियां नई नहीं हैं, लेकिन इस बार गलतबयानी नए स्तर तक पहुंच गई है.
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