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2019 के बाद मुस्लिम वोटर्स ने बदला है पैटर्न, भाजपा की पसमंदा नीति बनी वजह, ये आंकड़े चौंकाने वाले

मुस्लिम समुदाय लंबे समय से एकजुटता के साथ मतदान करता आया है, लेकिन 2019 के बाद से हालात बदले हैं. भाजपा ने पसमंदा मुसलमानों को अपने साथ जोड़ने की पहल की. इसके बाद मुस्लिम वोटों के पैटर्न में बदलाव आया है.

लोकसभा चुनाव 2024 की तारीखों का एलान होना बाकी है, लेकिन सभी पार्टियों ने इन चुनावों की तैयारी शुरू कर दी है. सत्ताधारी दल एनडीए ने इन चुनावों में 50 फीसदी वोट हासिल करने का लक्ष्य रखा है. ऐसे में भाजपा के लिए मुस्लिम वोट भी बेहद महत्वपूर्ण होंगे. राम मंदिर निर्माण का फायदा एनडीए गठबंधन को मिलना तय है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी आगामी चुनावों में मुस्लिम वोट भी हासिल कर सकती है और आने वाले समय में भाजपा को वोट देने वाले मुसलमानों की संख्या में बढोत्तरी हो सकती है. इसकी वजह भाजपा की पसमंदा मुसलमानों के साधने की रणनीति रही है. इसी वजह से 2019 के बाद मुस्लिम वोटर्स का वोटिंग पैटर्न बदला भी है.

मुस्लिम वोटर्स का पैटर्न समझने के लिए पहले पसमंदा मुसलमानों के बारे में जानना जरूरी है. हिंदुओं की तरह मुसलमानों में भी जातियां होती हैं, लेकिन इनके बारे में ज्यादा चर्चा नहीं होती. भारत में कुल तीन तरह के मुसलमान हैं. पहले हैं अशरफ, जो मध्य पूर्व और मध्य एशिया से भारत आए मुसलमानों के वंशज हैं. दूसरे हैं अजलफ, जो कि पहले हिंदू हुआ करते थे और पिछड़े वर्ग का हिस्सा थे. वहीं, तीसरे हैं अरजल, जो कि हिंदू दलित समुदाय का हिस्सा थे और बाद में धर्म बदलकर मुसलमान बन गए. 

1990 में कई पिछड़े मुस्लिम नेताओं ने राजनीति में अशरफ मुसलमानों के वर्चस्व को चुनौती दी. इन नेताओं ने अलजफ और अरजल मुस्लिमों को एकजुट किया और इनके लिए नया नाम रखा- पसमंदा. यहीं से पसमंदा राजनीति की शुरुआत हुई, जिसे भाजपा आगे बढ़ा रही है. मुसलमानों को आमतौर पर उन मतदाताओं के रूप में देखा जाता है, जो एकजुट होकर मतदान करते हैं, लेकिन हकीकत इससे थोड़ी अलग है. 

क्या कहते हैं आंकड़े?
हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार सर्वे में पाया गया कि 2019 लोकसभा चुनाव के बाद मुस्लिमों का वोटिंग पैटर्न बदला है. 2020 बिहार चुनाव में 77 फीसदी मुस्लिमों ने महागठबंधन (विपक्षी दलों के गठजोड़) को वोट दिया था. 2021 में पश्चिम बंगाल में 75 फीसदी मुसलमानों ने तृणमूल कांग्रेस को वोट दिया. वहीं, 2022 में उत्तर प्रदेश में 79 फीसदी मुसलमानों ने समाजवादी पार्टी के पक्ष में मतदान किया. 2019 से पहले भी मुस्लिम मतदाताओं का पैटर्न बंटा हुआ था, लेकिन 2019 के बाद यह पैटर्न और भी ज्यादा उलझ गया है.

भाजपा की पसमंदा नीति ने डाला असर
साल 2022 में पीएम मोदी ने पसमंदा मुसलमानों को अहमियत देनी शुरू की और कार्यकर्ताओं से पसमंदा मुसलमानों के साथ जुड़ने को कहा. उन्होंने पसमंदा मुसलमानों के साथ कई कार्यक्रम भी किए. इससे पहले 2013 में उत्तर प्रदेश और 2017 में ओड़िशा में भी भाजपा की तरफ से ऐसे ही प्रयास हुए थे. कई मुस्लिम संगठनों ने पसमंदा मुस्लिमों को भाजपा कार्यकर्ताओं से दूर रहने को भी कहा. 

साल 2022 में लगभग 2000 मुस्लिमों के बीच किए गए सर्वे में सामने आया कि 2012 में राज्य के चुनिंदा मुस्लिमों ने राज्य चुनावों में भाजपा को वोट दिया था. 2017 में 12.6 फीसदी सामान्य मुस्लिमों और 8 फीसदी पसमंदा मुस्लिमों ने भाजपा को वोट दिया. वहीं, 2022 में सिर्फ 9.8 फीसदी सामान्य मुस्लिमों ने भाजपा को वोट दिया, लेकिन पसमंदा मुस्लिमों का वोट शेयर बढ़कर 9.1 हो गया. ऐसे में 2024 में भी भाजपा के लिए पसमंदा मुस्लिमों का वोट प्रतिशत बढ़ सकता है. 

90 फीसदी मुस्लिमों का मानना है कि अगर उनकी जाति के लिए चीजें बेहतर होती हैं तो उन्हें इसका फायदा मिलेगा. ऐसे में भाजपा की पसमंदा मुसलमानों को साधने की रणनीति कारगर साबित हो सकती है. 2019 के बाद से मुस्लिम वोटर्स के एकजुट होकर मतदान करने की प्रवृत्ति बढ़ी है, लेकिन इसी दौरान पसमंदा मुसलमान भी चर्चा में रहे हैं. ऐसे में भाजपा के लिए बड़ी संख्या में मुस्लिम वोट हासिल करना मुश्किल हो सकता है, लेकिन पसमंदा मुसलमान कुछ हद तक इसमें प्रभाव जरूर छोड़ेंगे.

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