डॉक्टरी की पढ़ाई करते-करते हुईं आंखें कमजोर, कोर्ट में फीस वापस करने की लगाई गुहार, जानिए क्या है मामला
डॉक्टरी की ऑनलाइन पढ़ाई के चलते हुईं आंखें खराब, अब पिता ने कोर्ट में लगाई गुहार की फीस हो वापस नहीं करानी ऐसी जगह बेटी की पढ़ाई. जानिए किस मेडिकल कॉलेज का है मामला.

सीकर की नेहा कुमावत ने अपनी मेडिकल कॉलेज की सीट छोड़ने और फीस वापस मिलने के लिए राजस्थान हाईकोर्ट में याचिका दायर की है. नेहा, जो कि अलवर के गर्वनमेंट मेडिकल कॉलेज (GMC) की फर्स्ट ईयर की छात्रा हैं, का कहना है कि ऑनलाइन और यूट्यूब के जरिए पढ़ाई करने के कारण उनकी आंखों पर बुरा असर पड़ा है. जब उन्होंने कॉलेज से अपना एडमिशन रद्द करने की मांग की, तो कॉलेज ने इसे मना कर दिया. इसके बाद, नेहा हाईकोर्ट पहुंच गईं और न्याय की गुहार लगाई.
नेहा के पिता प्रदीप कुमावत ने मीडिया से बातचीत में बताया कि वे अपनी बेटी को डॉक्टर बनाना चाहते थे, इसीलिए उन्होंने उसका एडमिशन GMC अलवर में कराया था. लेकिन वहां ना तो अच्छे फैकल्टी हैं और ना ही कोई स्टाफ. पूरी पढ़ाई ऑनलाइन और यूट्यूब के माध्यम से कराई जाती है, जिससे उनकी बेटी को पढ़ाई में कोई समझ नहीं आ रही थी. इसके कारण उनकी आंखों की समस्या बढ़ गई है. पहले नेहा को 3-4 नंबर का चश्मा लगता था, लेकिन अब उसकी आंखों की समस्या बढ़कर 14 नंबर के चश्मे तक पहुंच गई है.
नेहा के पिता ने यह भी बताया कि उन्होंने बेटी को अलवर मेडिकल कॉलेज में मैनेजमेंट कोटे के तहत एडमिशन दिलवाया था, और इसके लिए लगभग 9 लाख रुपये की फीस भी भर दी थी. लेकिन एडमिशन लेने के बाद पता चला कि कॉलेज में न तो अच्छी फैकल्टी है और न ही स्टाफ. पूरी पढ़ाई यूट्यूब और प्रोजेक्टर के जरिए कराई जा रही थी, जिससे नेहा की आंखों की स्थिति और खराब हो गई.
उन्होंने कहा, "जब मैंने कॉलेज के प्रिंसिपल से ऑफलाइन पढ़ाई की मांग की, तो उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया. फिर जब मैंने बेटी का एडमिशन रद्द करने की बात की, तो कॉलेज ने साफ मना कर दिया और कहा कि पूरे 50 लाख रुपये देने होंगे. अब मैं कोर्ट में याचिका दायर कर रहा हूं ताकि मेरी बेटी का एडमिशन रद्द हो सके और फीस वापस मिले. अगर बेटी की आंखों में ही समस्या होगी तो वह डॉक्टर कैसे बनेगी? बेटी की जिंदगी से बढ़कर कुछ भी नहीं है."
कई मेडिकल कॉलेज में फैकल्टी की कमी
कई सरकारी मेडिकल कॉलेजों में फैकल्टी की कमी का सामना किया जा रहा है. राजमेस डायरेक्टरेट में बाबूओं का काम डॉक्टरों द्वारा किया जा रहा है, जबकि इन डॉक्टरों को मेडिकल कॉलेजों में शिक्षण कार्य के लिए नियुक्त किया जा सकता है. डायरेक्टरेट में कार्यरत अधिकतर डॉक्टर पहले वर्ष के एमबीबीएस के पाठ्यक्रम पढ़ाने वाले विषयों के विशेषज्ञ हैं. वर्तमान में लगभग 17 डॉक्टर असिस्टेंट डायरेक्टर, डिप्टी डायरेक्टर और एडिशनल डायरेक्टर जैसे महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत हैं. इन डॉक्टरों को अगर मेडिकल कॉलेजों में नियुक्त किया जाए, तो छात्रों को काफी राहत मिल सकती है.
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Source: IOCL






















