DUSU प्रेसिडेंट बने आर्यन मान को कितना पैसा मिलेगा, क्या इस पद पर होती है सैलरी?
आर्यन मान बने DUSU अध्यक्ष, इस पद पर कोई सैलरी नहीं मिलती. संगठन को 20 लाख रुपये का बजट मिलता है, जिसका प्रबंधन छात्रों और गतिविधियों के लिए किया जाता है.

दिल्ली यूनिवर्सिटी छात्रसंघ (DUSU) चुनाव में इस बार ABVP ने धमाकेदार जीत दर्ज की है. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) ने अध्यक्ष पद समेत तीन महत्वपूर्ण सीटों पर कब्जा किया, जबकि कांग्रेस के छात्र संगठन NSUI केवल उपाध्यक्ष पद पर ही सीमित रह गया. पिछली बार के मुकाबले NSUI को एक सीट का नुकसान हुआ और अध्यक्ष पद भी एबीवीपी के हाथों से निकल गया.
इस बार DUSU के अध्यक्ष बने आर्यन मान हैं. हालांकि छात्रों को यह जानकर हैरानी होगी कि DUSU के अध्यक्ष पद पर कोई सैलरी नहीं मिलती. यानि आर्यन मान को सीधे तौर पर कोई वेतन या मासिक पैसा नहीं मिलेगा. लेकिन इस पद का बजट काफी बड़ा होता है. जीतने वाले संगठन को कुल 20 लाख रुपये का बजट दिया जाता है, जिसे छात्रसंघ की गतिविधियों, सांस्कृतिक प्रोग्राम, इवेंट्स और रिसर्च प्रोजेक्ट्स पर खर्च किया जाता है. इस पैसे का इस्तेमाल व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं किया जाता.
सचिव पद पर कुणाल चौधरी और संयुक्त सचिव पद पर दीपिका झा ने जीत दर्ज की. इन तीनों पदों पर एबीवीपी के उम्मीदवार पहले दौर से ही रुझानों में आगे थे और आखिरी मतगणना में यह जीत पक्की हुई. वहीं उपाध्यक्ष पद पर गोविंद तंवर को हार का सामना करना पड़ा. NSUI की ओर से केवल उपाध्यक्ष पद पर राहुल झांसल ने जीत हासिल की. अध्यक्ष पद के जोसलिन नंदिता चौधरी, सचिव पद के कबीर और संयुक्त सचिव पद के लवकुश भड़ाना को चुनाव में हार मिली.
मतदान और कार्यकाल
छात्रसंघ चुनाव के लिए मतदान गुरुवार को हुआ था और इस बार 39.45 प्रतिशत वोटिंग दर्ज की गई. DUSU के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव और संयुक्त सचिव का कार्यकाल कुल 11 महीने का होता है. 12वें महीने में नए चुनाव कराए जाते हैं. छात्र संगठन अपने उम्मीदवार इन पदों पर खड़ा करते हैं. अध्यक्ष का पद सबसे अहम माना जाता है, क्योंकि यही संगठन के तमाम कामकाज को देखता है.
DUSU अध्यक्ष की पावर और जिम्मेदारी
DUSU अध्यक्ष का पद केवल प्रतीकात्मक नहीं होता, बल्कि यह काफी शक्तिशाली भी है. इस पद पर बैठने वाले को अलग ऑफिस दिया जाता है और वह यूनिवर्सिटी के प्रशासनिक फैसलों में हिस्सा लेता है. यदि कोई निर्णय अध्यक्ष को मंजूर नहीं होता है, तो वह विरोध दर्ज करा सकता है.
अध्यक्ष को यूनिवर्सिटी से जुड़ी तमाम समस्याओं को हजारों छात्रों का नेतृत्व करते हुए सुलझाना होता है. यह पद छात्र नेताओं को राजनीतिक अनुभव देने में भी मदद करता है और भविष्य में राजनीति में कदम रखने के लिए अवसर प्रदान करता है.
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Source: IOCL





















