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कोरोना संकट के बीच अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर राहत, औद्योगिक उत्पादन में उछाल; महंगाई दर में आई कमी

आरबीआई मौद्रिक नीति तय करते समय मुख्य रूप से खुदरा मुद्रास्फीति पर गौर करता है. सब्जियों के दाम में सालाना आधार पर 14.2 प्रतिशत की कमी आयी.

कोरोना वायरस महामारी की दूसरी गंभीर लहर से जूझ रहे देश के लिये बुधवार का दिन अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर राहत भरा रहा. ताजा आंकड़ों के मुताबिक मार्च महीने में औद्योगिक उत्पादन में 22.4 प्रतिशत का उछाल आया वहीं खुदरा मुद्रास्फीति अप्रैल में तीन महीने के न्यूनतम स्तर 4.29 प्रतिशत पर आ गयी. एक साल पहले ‘लॉकडाउन’ के कारण आर्थिक गतिविधियां पूरी रह से ठप होने से तुलनात्मक आधार कमजोर रहने तथा विनिर्माण क्षेत्र के बेहतर प्रदर्शन से मार्च 2021 में औद्योगिक उत्पादन में अच्छी वृद्धि दर्ज की गयी. राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के बुधवार को जारी आंकडों में यह जानकारी दी गई.

 

औद्योगिक उत्पादन में उछाल

हालांकि, यदि पूरे साल की बात की जाये तो वित्त वर्ष 2020- 21 में औद्योगिकी उत्पादन में 8.6 प्रतिशत की गिरावट रही है. इससे पहले जनवरी और फरवरी 2021 में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) के आधार पर औद्योगिक उत्पादन में क्रमश: 0.9 प्रतिशत और 3.4 प्रतिशत का संकुचन हुआ था. इसके बाद मार्च महीने में खनन, विनिर्माण और बिजली क्षेत्रों के बेहतर प्रदर्शन के कारण औद्योगिक उत्पादन में अच्छी वृद्धि दर्ज की गयी. साथ ही पिछले साल का तुलनात्मक आधार कमजोर रहने का भी लाभ हुआ. कोविड महामारी की रोकथाम के लिये मार्च 2020 में ‘लॉकडाउन’ लगाया गया था. इससे तब आईआईपी में 18.7 प्रतिशत की गिरावट आयी थी.

 

मुद्रा स्फीति की धीमी रफ्तार

 

मुद्रास्फीति के मामले में भी राहत रही. सरकारी आंकड़े के मुताबिक सब्जियों, अनाज और खाने- पीने की दूसरी वस्तुओं के दाम घटने से खुदरा मुद्रास्फीति की रफ्तार अप्रैल में धीमी पड़कर 4.29 प्रतिशत रही है. यह पिछले तीन महीने में मुद्रास्फीति का न्यूनतम आंकड़ा है. एक महीना पहले मार्च में खुदरा महंगाई दर 5.52 प्रतिशत रही थी. आरबीआई मौद्रिक नीति तय करते समय मुख्य रूप से खुदरा मुद्रास्फीति पर गौर करता है. सब्जियों के दाम में सालाना आधार पर 14.2 प्रतिशत की कमी आयी. चीनी और कन्फेक्शनरी से जुड़े उत्पादों के दाम में 5.99 प्रतिशत गिरावट आई वहीं अनाज के दाम 2.96 प्रतिशत घटे हैं.

 

मांस-मछली और खाद्य तेल महंगे

खाद्य श्रेणी में मांस और मछली, खाद्य तेल, फल तथा दाल के दाम सालाना और तिमाही दोनों की तुलना में ऊंचे बने हुए हैं. यह संरचनात्मक आपूर्ति बाधाओं को प्रतिबिंबित करता है और कोविड-19 की दूसरी लहर की रोकथाम के लिये कुछ राज्यों में लगाये गये ‘लॉकडाउन’ से स्थिति और बिगड़ सकती है. इसके अलावा मुख्य मुद्रास्फीति (कोर इनफ्लेशन) मजबूत बनी हुई है। इसका कारण खुदरा ईंधन के दाम में तेजी है.

 

एक्यूट रेटिंग्स एंड रिसर्च के मुख्य विश्लेषण अधिकारी सुमन चौधरी ने कहा, ‘‘कोविड महामारी के फिर से फैलने के कारण खुदरा दाम में वृद्धि का स्पष्ट जोखिम बना हुआ है. लेकिन तिमाही आधार पर अगर वृद्धि भी होती है तो तुलनात्मक आधार के कारण आंकड़ा नरम रह सकता है.’’ डेलॉयट इंडिया की अर्थशास्त्री रूमकी मजूमदार ने कहा कि मुद्रास्फीति के ऊपर जाने का जोखिम बना हुआ है क्योंकि वैश्विक स्तर पर जिंसों और कच्चे तेल के दाम में तेजी की प्रवृत्ति है.

 

इक्रा लिमिटेड की प्रधान अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा कि अप्रैल 2020 में देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान आपूर्ति बाधाओं के चलते खुदरा मुद्रास्फीति आधार ऊंचा रहा, उसे देखते हुए अप्रैल 2021 में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित मूद्रास्फीति तीन महीने के सबसे कम स्तर पर चली गयी. हालांकि, यह आंकड़ा भी उम्मीद से ऊंचा ही लगता है. उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि कुल मिलाकर स्थानीय स्तर पर लगे प्रतिबंधों का अप्रैल माह के दौरान कीमतों पर सीमित असर रहा है.

मुद्रास्फीति 5 प्रतिशत तक पहुंचने का अनुमान

 

नायर ने कहा कि जैसे ही पिछले साल के लॉकडाउन प्रभावित महीनों से आगे के आंकड़े आयेंगे तो मुद्रास्फीति एक बार फिर से औसतन पांच प्रतिशत के दायरे में पहुंच सकती है. यदि ऐसा होता है तो ब्याज दरों में आगे और कटौती की उम्मीद खारिज हो सकती है. उन्होंने कहा कि फिलहाल महामारी को देखते हुये आर्थिक परिदृश्य अनिश्चित बना हुआ है और ऐसे में हमें उम्मीद है कि 2021 के ज्यादातर समय मौद्रिक नीति का रुख लगातार उदार बना रहेगा. आईआईपी के बारे में चौधरी ने कहा कि स्थानीय स्तर पर लगाये गये ‘लॉकडाउन’ की बाधाओं के बावजूद बिजली उत्पादन वित्त वर्ष 2020-21 में लगभग 2019-20 के स्तर पर पहुंच गया है. यह घरों में बिजली की अधिकतम मांग का नतीजा है जो औद्योगिक तथा वाणिज्यिक गतिविधियों के लिये मांग में कमी की भरपाई कर रही है.

 

उन्होंने कहा, ‘‘सालाना आधार पर तुलनात्मक आधार कमजोरे होने से विनिर्माण में तेजी है. लेकिन निर्यात से जुड़े क्षेत्रों और खासकर रिफाइंड पेट्रोलियम उत्पादों के क्षेत्र में इस साल मार्च में गतिविधियां तेज रही.’’ चौधरी के अनुसार, ‘‘हलांकि विनिर्माण क्षेत्र में तेजी आगे भी बने रहने को लेकर प्रश्न चिन्ह है। इसका कारण कोविड महामारी के कारण अप्रैल और मई में उत्पन्न बाधाएं हैं...’’ एनएसओ के आंकड़े के अनुसार औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) में 77.63 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने वाले विनिर्माण क्षेत्र में मार्च 2021 में 25.8 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी. खनन क्षेत्र का उत्पादन 6.1 प्रतिशत जबकि बिजली उत्पादन में 22.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई.

 

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