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Property News: मुंबई के कई बिल्डर नियम तोड़कर सरकारी जमीन पर बटोर रहे पैसा, EWS मकानों की ग्राउंड रिपोर्ट से खुलासा

Mumbai Property: बिल्डर सरकार से ज़मीन लेते हैं लेकिन जितने फ्लैट EWS के लिए बनाना अनिवार्य है वहां निर्माण ना करके बड़े लोगों को फ्लैट बनाकर बेच देते हैं. वहीं EWS के लिए रिजर्व जमीन खाली छोड़ते हैं.

Mumbai Rental Scheme: नवी मुंबई में रेंटल हाउसिंग स्कीम के तहत करीब 9 प्रोजेक्ट बड़े बिल्डरों को दिए गए थे. उनको जमीन दी गई और बहुमंजिला इमारतें बनाई गईं. 75 फीसदी जगह पर बेचने के लिए फ्लैट्स बनाने थे, 25 फीसदी जमीन पर आर्थिक रूप से कमजोर लोगों (EWS) को घर बनाकर सिडको को देना था ताकि गरीबों को घर दिए जा सके. लेकिन वो घर वीरान पड़े हैं यानी ना तो आवंटित हुए और ना ही बेचे गए हैं.

EWS फ्लैट्स का आवंटन जानबूझ कर लटकाया जा रहा

जब हजारों घर तैयार हो गए थे तो कई साल से उनकी आवंटन प्रक्रिया क्यों लटकी हुई है? जानकारों के मुताबिक बिल्डरों की गलत नीयत इसकी बड़ी वजह है क्योंकि EWS फ्लैट्स के साथ बिल्डरों के लग्जरी प्रोजेक्ट्स बने हुए हैं. इन प्रोजेक्ट्स का बाजार भाव ऊंचा रहे शायद इसीलिए EWS फ्लैट्स का आवंटन जानबूझ कर लटकाया जा रहा है. 

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मुंबई के लोकल निवासी छोड़ चुके उम्मीद

मुंबई के लोकल निवासी अनिल तिवारी परिवार के साथ नवी मुंबई में रहते हैं. सबकी तरह इनका भी एक घर के लिए ख्वाब है. खुद एक बिल्डर के यहां नौकरी करते हैं लेकिन अब अपने घर की उम्मीद छोड़ चुके हैं. अनिल तिवारी से जब एबीपी न्यूज ने बात की तो उन्होंने बताया कि "ऐसा नहीं है गरीब परिवारों को घर देने के लिए काम नहीं हुआ. गरीब परिवारों के लिए ही मुंबई से लेकर नवी मुंबई तक, महाराष्ट्र सरकार ने बिल्डरों के साथ मिलकर रेंटल हाउसिंग स्कीम के तहत ऐसी कई इमारतें खड़ी करवा दी थीं. इसमें 8 हजार से ज्यादा फ्लैट्स बने हैं लेकिन एक भी गरीब को घर की चाबी नहीं मिल पाई." 

RTI एक्टिविस्ट मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को बता रहे जिम्मेदार

RTI एक्टिविस्ट राजीव मिश्रा का कहना है कि मुंबई में जब रेंटल हाउसिंग स्कीम की शुरुआत हुई तब एकनाथ शिंदे ही नगर विकास मंत्री हुआ करते थे. आज भी नगर विकास विभाग सीएम एकनाथ शिंदे के पास है. इसके बावजूद EWS परिवारों के लिए बनाए गए घर गरीबों को नहीं मिल पाए. जिस संस्था सिडको को घर आवंटित करने हैं वो देरी के लिए फ्लैट्स की बदहाली और बाकी संस्थाओं को जिम्मेदार ठहरा रहा है.

CIDCO ने क्या दिया अपडेट

CIDCO के मैनेजिंग डायरेक्टर अनिल डीग्गिकर का कहना है कि टोटल 8 हजार 5 सौ से ज्यादा फ्लैट्स मिलने वाले हैं. 1600 फ्लैट्स हैंडओवर हो रहे हैं, उनके रिपेयर करना है क्योंकि वो बहुत पुराने घर हैं. 2-3 महीने में 7 हजार घर भी मिल जाएंगे, नोडल एजेंसी MMRDA है वही बताएगा.

CREDAI के चेयरमैन ने क्या कहा

कन्फेडेरेशन ऑफ रियल एस्टेट डेवलपर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (CREDAI) के चेयरमैन विजय लखानी से भी एबीपी न्यूज ने बात की. उन्होंने कहा कि जिन डेवलपर को यह घर बनाने की जिम्मेदारी एमएमआरडीए ने दी थी उन्होंने अपना काम किया है. MMRDA के हिस्से के हजारों घर बनकर तैयार हो गए लेकिन इस योजना को लागू करने में सरकार को कई दिक्कत आ रही थी. घर बहुत छोटे यानी 160 स्क्वायर फीट के बनाए गए, उन्हें बेचना मुश्किल है और अगर किराए पर भी दिए जाए तो किराया कैसे वसूला जाएगा.

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विपक्ष लगा रहा महाराष्ट्र सरकार पर आरोप

गरीबों के लिए बनाए गए इन घरों का क्या होगा? इसका जवाब नगर विकास विभाग को देना है, जो मुख्यमंत्री शिंदे के पास है. CIDCO और MMRDA जैसी संस्थाएं गोलमोल जवाब दे रही हैं लेकिन विपक्ष सीधे-सीधे सरकार को दोषी ठहरा रहा है. महाराष्ट्र सरकार के पूर्व मंत्री जितेंद्र आव्हाड का कहना है कि महाराष्ट्र  सरकार की ये लापरवाही सिर्फ नवी मुंबई में नहीं, मुंबई में भी है. वो गरीबों को घर देना ही नहीं चाहती है.

EWS कैटेगरी के तहत बने इन घरों की हालत अब खराब

EWS कैटेगरी के तहत बनाए गए इन घरों की हालत अब खराब होने लगी है और इनकी दोबारा मरम्मत की नौबत आ चुकी है. अगर प्लानिंग सही तरीके से हुई होती तो आज इन घरों की चाबियां इनके असल हकदारों को मिल चुकी होती. मुंबई की रेंटल हाउसिंग स्कीम में देर से बिल्डरों की नीयत पर सवाल उठ ही रहे हैं. गलत नीति के चलते सरकार भी कठघरे में है क्योंकि महाराष्ट्र सरकार ने किराये पर देने के लिए घर बनाए तो, लेकिन कई साल बाद भी सरकार ये नहीं तय कर पाई कि गरीबों को किरायेदार बनाया जाए या मकान मालिक?

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