टैरिफ के नाम पर अमेरिका की तबाही का सामान ला रहे डोनाल्ड ट्रंप! 95 साल पहले भी US भुगत चुका अंजाम
अमेरिकी उत्पादों पर मोटे टैरिफ से उसकी विदेशों में मांग लगभग खत्म सी हो गई और निर्यात में भारी गिरावट आई. नतीजतन, अमेरिकी कंपनियों को भारी नुकसान हुआ और वहां बेरोजगारी दर भयानक रूप से बढ़ गई.

कहते हैं कि जिसने इतिहास से सबक नहीं सीखा, उसे तबाह होने से कोई नहीं रोक सकता. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) को शायद ये जुमला नहीं पता है. यही वजह है कि उन्होंने जब से यूएस की सत्ता संभाली है, उनकी जुबान से टैरिफ (Tariff) शब्द हट ही नहीं रहा है. हर रोज उनकी तरफ से टैरिफ को लेकर धमकी आती रहती है. उनकी टैरिफ धमकियों की वजह से पूरी दुनिया में ट्रेड वॉर की स्थिति पैदा हो गई है.
दरअसल, ट्रंप को लगता है कि विदेशी सामानों पर मोटा टैरिफ लगाकर वह अमेरिका को फिर से महान बना लेंगे. लेकिन, वह भूल रहे हैं कि साल 1930 में ऐसी ही गलती अमेरिकी कांग्रेस ने की थी और उसका अंजाम ये हुआ था कि पूरी दुनिया में महा मंदी आई और अमेरिका की स्थिति ऐसी हो गई थी कि उसकी अर्थव्यवस्था रसातल में चली गई थी.
95 साल पहले की गलती दोहरा रहे हैं ट्रंप
ये साल था 1930. अमेरिका के राष्ट्रपति Herbert Hoover थे. इनकी भी सोच थी कि वह विदेशी सामानों पर मोटा टैरिफ लगाकर अमेरिका को महान बानएंगे और अमेरिकी कंपनियों की स्थिति मजबूत करेंगे. इसी वजह से उनकी सरकार ने हॉले-स्मूट टैरिफ एक्ट 1930 (1930 Hawley-Smoot Tariff Act) पास किया.
इस एक्ट का मकसद विदेशी वस्तुओं पर टैरिफ बढ़ाकर अमेरिकी उद्योगों और किसानों को सुरक्षा प्रदान करना था. इस कानून के तहत उस समय 20,000 से ज्यादा आयातित वस्तुओं पर टैरिफ लगाया गया, जिससे उनकी कीमतें बढ़ गईं और वे अमेरिकी बाजार में कम प्रतिस्पर्धी हो गईं.
अमेरिका के लिए तबाही लाया था फैसला
हालांकि, इस कानून का असर उल्टा हुआ. टैरिफ बढ़ने के कारण अन्य देशों ने भी अमेरिकी निर्यात पर जवाबी टैरिफ लगा दिए. खासतौर से यूरोप और अन्य क्षेत्रों के देशों ने अमेरिकी उत्पादों पर भारी टैरिफ लगाया. इससे अंतरराष्ट्रीय व्यापार में भारी गिरावट आई और वैश्विक अर्थव्यवस्था प्रभावित हो गई.
अमेरिकी उत्पादों पर मोटे टैरिफ से उसकी विदेशों में मांग लगभग खत्म सी हो गई और निर्यात में भारी गिरावट आई. नतीजतन, अमेरिकी कंपनियों को भारी नुकसान हुआ और वहां बेरोजगारी दर भयानक रूप से बढ़ गई.
इसके अलावा, यह कानून महामंदी (Great Depression) को और गहरा करने का कारण बन गया. 1929 में शुरू हुई महामंदी के दौरान अमेरिकी अर्थव्यवस्था पहले से ही संकट में थी और हॉले-स्मूट टैरिफ एक्ट ने इस संकट को और बढ़ा दिया.
बड़े अर्थशास्त्री भी मानते हैं ट्रंप का फैसला गलत
डोनाल्ड ट्रंप ने जब से विदेशी सामानों पर मोटा टैरिफ लगाने की बात कही है, दुनिया के कई बड़े अर्थशास्त्रियों ने इसे ट्रंप सरकार के कुछ सबसे खराब फैसलों में से एक माना है. कुछ अर्थशास्त्री तो इसे अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा मानते हैं.
Fortune पर छपी एक खबर के अनुसार, अमेरिका के पूर्व ट्रेजरी सचिव लैरी समर्स कहते हैं कि ट्रम्प की टैरिफ नीति "रोको या मैं अपने पैर में गोली मार लूंगा." जैसी धमकी है. वहीं, वॉल स्ट्रीट जर्नल का संपादकीय बोर्ड भी मानता है कि ट्रंप की टैरिफ धमकी इतिहास की सबसे मूर्खतापूर्ण ट्रेड वॉर कराएगा. जेपी मॉर्गन भी इस फैसले से चिंतित है.
कुलमिलाकर ये कहा जा सकता है कि अर्थशास्त्रियों के बीच इस बात पर आम सहमति है कि टैरिफ अमेरिका के लिए फायदेमंद नहीं हैं और इससे वैश्विक व्यापार युद्ध छिड़ सकता है. अगर ऐसा हुआ तो इसका सबसे बुरा असर आम अमेरिकी नागरिकों पर पड़ेगा. बीबीसी से बात करके हुए, कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर मेरेडिथ क्राउली भी यही कहती हैं. वह कहती हैं कि टैरिफ से सबसे कम आय वाले लोगों पर बहुत ज़्यादा आर्थिक बोझ पड़ सकता है.
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Source: IOCL
























