आखिर आज भी हुकूमत के लिए सिर्फ इक खिलौना क्यों है इंसां की हस्ती?

इस देश में जन्मे लेकिन अपनी कलम से पूरी दुनिया में शोहरत बटोरने वाले साहिर लुधियानवी ने बरसों पहले एक नज़्म लिखी थी. उसे याद दिलाना इसलिए जरूरी बन जाता है कि हम अपनी ही सरकार से सवाल पूछने के लिए डरने पर आखिर इतना मजबूर क्यों हो जाते हैं.साहिर ने लिखा था-
"ये महलों ये तख़्तों ये ताजों की दुनिया
ये इंसां के दुश्मन समाजों की दुनिया
ये दौलत के भूखे रिवाजों की दुनिया
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है.
हर इक जिस्म घायल हर इक रुह प्यासी
निगाहों में उलझन, दिलों में उदासी
ये दुनिया है या आलम-ए-बद-हवासी
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या
यहां इक खिलौना है इंसां की हस्ती
ये बस्ती है मुर्दा-परस्तों की बस्ती
यहां पर तो जीवन से है मौत सस्ती
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है."
मैंने उनकी नज़्म के आख़िरी हिस्से को इसलिए नहीं लिखा कि अपनी आंखों में मज़हबी चश्मा पहने बहुत सारे लोग उसे बर्दाश्त ही नहीं कर पाएंगे. लेकिन आते हैं, उस काम की बात पर जो मंदिर-मस्जिद और लाउड स्पीकर की आवाज़ के बहाने आपकी जेब काटने का ऐलान कर चुकी है. अगर आपने अपने घर, कार या व्यापार के लिए किसी भी बैंक से कर्ज ले रखा है, तो अपने साथ होने वाली इस जेबकतरी के ख़िलाफ़ आप देश के किसी भी थाने में एफआईआर भी दर्ज नहीं करा सकते. इसलिये कि ये अपराध किसी आम इंसान ने नहीं बल्कि आपके वोटों से चुनी हुई सरकार ने किया है.
अब बताइये कि आपकी जेब पर डाका डालने वाले इस जुर्म की शिकायत देश का कौन -सा थाना दर्ज करने की हिम्मत जुटा पायेगा. हो सकता है कि समाज की भलाई में लगे कुछ सक्रिय लोग इसे सुप्रीम कोर्ट तक ले जाएं लेकिन वो भी भड़कते अंगारों में अपने हाथ भला क्यों जलाएगा. इसलिये कि विधायिका के फैसलों में दखल देने से वो हमेशा बचता है. सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा चीफ जस्टिस एन वी रमण तो साफतौर पर ये कह चुके हैं कि लोकतंत्र के चारों स्तंभों की अपनी 'लक्ष्मण-रेखा ' है और किसी को भी इसे पार नहीं करना चाहिये.
आपको याद होगा कि कोरोना काल में सरकार ने उस आपदा को अवसर में बदलने के लिए कहा था. लेकिन अब वही अवसर उन लोगों के लिए बड़ी आपदा बनकर आ गया है, जिन्होंने होम या कोई और लोन ले रखा है. दरअसल,रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के रेपो रेट ( Repo Rate) बढ़ाने के फैसले के बाद बैंकों ने कर्ज महंगा करना शुरू कर दिया है. महंगे कर्ज (Costly Loan) का सबसे बड़ा खामियाजा उठाना पड़ेगा उन लोगों को जिन्होंने हाल के दिनों में बैंक या हाउसिंग फाइनैंस कंपनी ( Housing Finance Loan) से होम लोन ( Home Loan) लेकर अपना आशियाना खरीदा है. आरबीआई ने रेपो रेट में 40 बेसिस प्वाइंट की बढ़ोतरी करने का फैसला लिया है जो कि अब 4.40 फीसदी हो गया है.
इसकी सबसे बड़ी मार मध्यम वर्ग वाले उस नौकरीपेशा वर्ग पर पड़ेगी, जिसके पास अपनी सैलरी के अलावा कमाई का और कोई दूसरा जरिया नहीं है. हालांकि कर्ज देने वाले बैंकों व फाइनेंस कंपनियों की दुनिया का एक सच ये भी है कि वे नए ग्राहकों को लुभाने के लिए अपनी ब्याज दर कम रखते हैं लेकिन इस फैसले के बाद पुराने होम लोन लेने वालों की ईएमआई महंगी होनी तय है.
आरबीआई ने रेपो रेट फिलहाल 40 बेसिस प्लाइंट बढ़ाया है. लेकिन जानकारों की मानें तो इसके बढ़ने का सिलसिला यहीं थमने वाला नहीं है. रूस यूक्रेन युद्ध अभी थमा नहीं है. महंगाई बढ़ती ही जा रही है ऐसे में आरबीआई आने वाले दिनों में रेपो रेट और बढ़ाने का फैसला ले सकता है जिसके बाद आपकी ईएमआई और भी बढ़ जाएगी,भले ही आपने चाहे जैसा क़र्ज़ अपने बैंक से ले रखा हो.
जरा गौर कीजियेगा और सोचियेगा कि कोरोना काल के इन दो सालों में जिनकी नौकरियां चली गईं और जिन्होंने उस सैलरी के आसरे पर ही अपना आशियाना बनाने का कर्ज ले रखा था,उनका क्या हश्र हुआ होगा. उसके बाद उनके ज़ख्मों पर कोई मरहम लगाने की बजाय उसे और ज्यादा गहरा करने की हिमाकत किस देश की सरकार ने की है. दुनिया के किसी एक छोटे-से मुल्क की सरकार ने भी अपने लोगों को महंगाई के और बड़े दलदल में फंसाने के फैसला शायद ही लिया हो. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि लोकतंत्र में मिले अपने अधिकारों की आवाज़ उठाने से लोग आखिर अब इतना डरने क्यों लगे हैं? इसलिए साहिर की कलम से निकली ये बात सोचने पर मजबूर कर देती है कि क्या वाकई ऐसा है कि-
"यहां इक खिलौना है इंसां की हस्ती
ये बस्ती है मुर्दा-परस्तों की बस्ती"
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)




























