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दिल्ली की जीत से मोदी ब्रांड का दबदबा और देश की राजनीति को मिला स्पष्ट संदेश 

दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी की जीत के साथ ही विरोधी खेमे का एक बड़ा गढ़ ढह गया. पार्टी ने न केवल जीत दर्ज की, बल्कि प्रभावशाली तरीके से चुनाव में बढ़त बनाई. इस नतीजे से न केवल बीजेपी बल्कि कांग्रेस को भी राहत मिली. कांग्रेस को राहत इसलिए क्योंकि उसने हरियाणा का बदला ले लिया है. आम आदमी पार्टी ने चुनाव से पहले कांग्रेस से नाता तोड़ते हुए अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया और प्रचार के दौरान कांग्रेस पर तीखे हमले किए. 

अगर पिछले 27 वर्षों की दिल्ली की राजनीति को देखें तो 1999, 2014, 2019 और 2024 में बीजेपी ने लोकसभा चुनावों में जीत दर्ज की, लेकिन विधानसभा में सफलता हासिल नहीं कर पाई. खासकर पिछले दो चुनावों में बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन इस बार की जीत ने पार्टी की पुरानी पीड़ा को खत्म कर दिया.

नरेंद्र मोदी की अजेय छवि और मजबूत होगी

लोकसभा चुनावों में अपेक्षित सफलता न मिलने के बाद यह चर्चा तेज हो गई थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता घट रही है. कांग्रेस और राहुल गांधी को लेकर भी अटकलें लगाई जा रही थीं कि वे अब एक सशक्त विकल्प बन सकते हैं. लेकिन हरियाणा और महाराष्ट्र के बाद बीजेपी की दिल्ली में भी जीत से यह स्पष्ट संकेत मिला है कि मोदी की नेतृत्व क्षमता अब भी बरकरार है और उनके सामने कोई ठोस विकल्प नहीं है.

 INDIA गठबंधन कमजोर होगा

2024 के आम चुनावों में बीजेपी की अपेक्षाकृत कमजोर प्रदर्शन के बाद, कांग्रेस को यह विश्वास होने लगा कि वह अकेले मोदी सरकार को चुनौती दे सकती है. लेकिन इसी आत्मविश्वास के कारण INDIA गठबंधन में दरारें आ गईं. समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, शिवसेना (यूबीटी) और आम आदमी पार्टी जैसी क्षेत्रीय पार्टियों में अपने अस्तित्व को लेकर चिंता बढ़ गई, जिससे वे कांग्रेस से दूरी बनाने लगीं.

संघ शक्ति का डंका 

लोकसभा चुनावों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने बीजेपी के चुनाव प्रचार से दूरी बनाए रखी थी. माना जाता है कि इसकी मुख्य वजह बीजेपी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा का वह बयान था, जिसमें उन्होंने संकेत दिया था कि अब पार्टी को संघ के समर्थन की आवश्यकता नहीं है. इसी कारण कई विश्लेषकों ने बीजेपी के अपेक्षित प्रदर्शन न कर पाने का कारण संघ की निष्क्रियता को बताया.

बीजेपी दिल्ली में जीत दर्ज  करने के बाद मुख्यमंत्री पद के लिए कई नाम पर चर्चा हैं. संभावित चेहरों में प्रवेश वर्मा, कपिल मिश्रा, रविंदर सिंह नेगी, सतीश उपाध्याय और रमेश बिधूड़ी प्रमुख हैं.   

प्रवेश वर्मा         
  नई दिल्ली सीट से चुनाव लड़ रहे प्रवेश वर्मा मुख्यमंत्री पद के सबसे मजबूत दावेदारों में से एक माने जा रहे हैं. अपने चुनावी अभियान में उन्होंने 'केजरीवाल हटाओ, देश बचाओ' का नारा दिया और AAP सरकार को प्रदूषण, महिला सुरक्षा और यमुना की स्वच्छता जैसे मुद्दों पर कठघरे में खड़ा किया.

कपिल मिश्रा
बीजेपी के प्रखर हिंदुत्ववादी नेता कपिल मिश्रा वर्तमान में दिल्ली बीजेपी के उपाध्यक्ष हैं. पूर्व में AAP के विधायक रह चुके मिश्रा की पूर्वांचली समुदाय में अच्छी पकड़ है. हालांकि, 2020 के दिल्ली दंगों के दौरान उन पर भड़काऊ भाषण देने के आरोप भी लग चुके हैं, जिससे उनकी उम्मीदवारी विवादों में रही है. 
 
रविंदर सिंह नेगी 
पटपड़गंज सीट से बीजेपी के उम्मीदवार रविंदर सिंह नेगी तब सुर्खियों में आए जब पीएम मोदी ने एक सार्वजनिक मंच पर उनके पैर छुए. 2020 के चुनाव में वे मनीष सिसोदिया से मात्र 3,807 वोटों के अंतर से हारे थे, जो उनकी लोकप्रियता को दर्शाता है.

सतीश उपाध्याय
मालवीय नगर सीट से पहली बार चुनाव लड़ने वाले सतीश उपाध्याय का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और ABVP से गहरा जुड़ाव रहा है. संगठन में उनके लंबे अनुभव के कारण वे मुख्यमंत्री पद के लिए एक गंभीर दावेदार माने जा रहे हैं.
 

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.] 
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