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पुलिस की लाठियां बरसाने से क्या हो जायेगा बेरोजगार युवाओं का गुस्सा शांत?

बिहार से लेकर उत्तराखंड तक बेरोजगार युवाओं का गुस्सा फूट पड़ा है और वे सरकारी नौकरी की परीक्षाओं में हुई धांधली को लेकर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं.लेकिन सरकारें उनका दर्द सुनने की बजाय उन पर लाठियां बरसा रही हैं. केंद्र से लेकर राज्य की सरकारें बेरोजगारी कम होने के चाहे जितने बड़े दावे करती रहें लेकिन सच तो ये है कि पिछले साल तक देश में शिक्षित व रजिस्टर्ड बेरोजगार युवाओं की संख्या सवा पांच करोड़ से भी ज्यादा थी. सवाल उठता है कि राज्य सरकारों द्वारा सरकारी नौकरी के लिये आयोजित होने वाली अधिकांश परीक्षाओं में घोटाला क्यों होता है और इसके पीछे सक्रिय माफिया पर शिकंजा कसने के लिए हर सरकार बेबस क्यों बन जाती है? 

सवाल ये भी है कि अगर किसी नौकरी को लाखों रुपये में बेचा जायेगा तो एक गरीब व काबिल युवा उसे खरीदने के लिए इतना पैसा कहां से लायेगा? उत्तराखंड भर्ती परीक्षाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार की सीबीआई जांच की मांग को लेकर हजारों युवाओं ने देहरादून में बड़ा आंदोलन छेड़ दिया है. परीक्षाओं में हुई धांधली को लेकर सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करना कोई गुनाह नहीं है लेकिन राज्य सरकार की पुलिस ने उनके साथ ऐसा बर्ताव किया है, मानो वे देश के दुश्मन हों. युवाओं का सीधा आरोप सरकार पर है कि शांति पूर्वक चल रहे सत्याग्रह आंदोलन को तोड़ने के लिये पुलिस ने आधी रात में युवाओं पर हमला बोल दिया.  धरने पर बैठी छात्राओं को घसीट कर हिरासत में लिया गया. बुधवार की रात हुई पुलिस की कार्रवाई से नाराज हजारो युवाओं ने गुरुवार को देहरादून की राजपुर रोड को जाम कर दिया लेकिन पुलिस ने उन्हें हटाने के लिये बर्बरतापूर्ण तरीके से लाठीचार्ज किया. बेरोजगार युवाओं का कहना है कि जब तक सरकार भर्ती प्रकरण की जांच सीबीआई को नहीं सौंपती तब तक वे अपना आंदोलन वापस नहीं लेंगे.

अब सवाल उठता है कि भर्ती परीक्षाओं में अगर कोई घोटाला नहीं हुआ है और सरकार में बैठे चंद लोग कथित रूप से इसमें शामिल नहीं हैं,तो पुष्कर सिंह धामी सरकार को इस मामले की सीबीआई जांच कराने से आखिर किस बात का डर है? दरअसल,पहाड़ी राज्य होने के नाते उत्तराखंड में रोजगार एक बहुत बड़ा मुद्दा है. रोजगार के अवसर न मिलने की वजह से ही यहां के युवा पहाड़ों से पलायन करते हैं. सरकारी आंकड़ों पर अगर गौर करें तो उत्तराखंड में साल दर साल बेरोजगारी दर अन्य राज्यों के मुकाबले बेहद तेजी से बढ़ती जा रही है. उत्तराखंड सेवायोजन विभाग के अनुसार राज्य में रजिस्टर्ड बेरोजगारी की संख्या 868,641 है.प्रदेश के 13 जिलों पर अगर नजर दौड़ाएं तो देहरादून, हरिद्वार, उधमसिंह नगर, नैनीताल जैसे जिलों में बेरोजगारों की बड़ी फौज खड़ी है.पिछले छह वर्षों में उत्तराखंड की बेरोजगारी दर में करीब चार गुना से अधिक वृद्धि हो गई है.अप्रैल 2016 में बेरोजगारी दर 1.3 प्रतिशत थी, जो अब बढ़कर 5.2 प्रतिशत हो गई है.रही सही कसर प्रदेश में सरकारी नौकरी की भर्तियों में हो रहे घोटालों ने पूरी कर दी है. इससे निपटने के लिए ही धामी सरकार ने विधानसभा चुनाव से पहले करीब 24 हजार पदों पर भर्ती की विज्ञप्ति जारी की.उन्हीं परीक्षाओं में जमकर धांधली हुई और आरोप है कि परीक्षा में पास करवाने की गारंटी के साथ एक-एक उम्मीदवार से लाखों रुपये की रिश्वत ली गई.

इससे पहले साल 2000 से 2022 के दौरान हुई परीक्षाओं में भी इसी तरह का घोटाला होने के आरोप लगे थे. उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की भर्तियों में हुई उस धांधली के कारण हजारों युवाओं का भविष्य आज भी अंधेरे में ही लटका हुआ है. इसमें वह युवा भी हैं जो सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे थे. वह युवा भी हैं जिन्होंने एग्जाम दिया था. कुछ ऐसे भी होनहार युवा अभ्यर्थी थे, जिन्होंने पहले कई सालों तक तैयारी की उसके बाद एग्जाम दिया और उस एग्जाम में पास भी हुए. लेकिन आखिरी समय में उनकी ज्वाइनिंग ही लटक गई. हालांकि मुख्यमंत्री धामी ने किसी विपक्षी पार्टी या नेता का नाम लिए बगैर युवाओं से किसी तरह के 'बहकावे' में न आने का अनुरोध किया है और कहा कि उनकी सरकार युवाओं के हित में फैसले ले रही है और प्रदेश के युवाओं के साथ किसी तरह का अन्याय नहीं होने दिया जाएगा, लेकिन सवाल है कि उनका इतना कह देने भर से जिन योग्य युवाओं के साथ नाइंसाफी हुई है,क्या उन्हें इंसाफ मिल जायेगा?

बेरोजगार संघ के प्रवक्ता सुरेश सिंह ने कहा कि अनियमितताओं की वजह से रद्द हुई भर्ती परीक्षा देने वाले युवा बेरोजगार घूम रहे हैं जबकि नई भर्ती परीक्षाएं की जा रही हैं. उन्होंने इनमें भी धांधली की आशंका जताते हुए कहा कि जल्द से जल्द नकल विरोधी कानून लाया जाए और उसके बाद ही भर्ती परीक्षाएं आयोजित की जाएं. राज्य अधीनस्थ सेवा चयन आयोग द्वारा आयोजित स्नातक स्तरीय भर्ती परीक्षाओं के प्रश्नपत्रों के कथित रूप से लीक होने का पिछले साल खुलासा होने के बाद से उत्तराखंड में एक के बाद एक कई भर्तियों में अनियमितताएं सामने आयीं हैं जिसके कारण उन्हें रद्द करना पडा है. इसलिए बात उत्तराखण्ड की हो या किसी और राज्य की,सरकारों को भर्ती परीक्षाएं आयोजित करने वाले चयन आयोग की पूरी तरह से ओव्हर ऑयलिंग करके पूरी प्रक्रिया को ज्यादा पारदर्शी बनाने की जरुरत है.

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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