(Source: ECI / CVoter)
Kisan Mahapanchayat: सियासत की कौन सी नई इबारत लिखेंगे 'अल्लाह हू अकबर' और 'हर-हर महादेव' के नारे?
UP Election: किसान आंदोलन के जरिए यूपी विधानसभा चुनावों से पहले क्या सियासत की कोई नई इबारत लिखी जा रही है? ये सवाल खड़ा होने की बड़ी वजह भी है जिसका अहसास बीजेपी समेत अन्य राजनीतिक दलों को होने लगा है. दरअसल, रविवार को मुजफ्फरनगर की महापंचायत में किसान नेता राकेश टिकैत ने जिस तरह से अल्लाह हू अकबर और हर-हर महादेव के नारे लगवाए, उसके गहरे मायने हैं.
इसके जरिए सिर्फ हिंदू-मुस्लिम एकता का ही नहीं बल्कि ये सियासी संदेश भी दिया जा रहा है कि अगर पश्चिमी यूपी में जाट और मुसलमान एक हो गए तो सूबे की राजनीतिक तस्वीर को बदलने की वे बड़ी ताकत रखते हैं. आंदोलन से जुड़े नेताओं के मुताबिक यूपी चुनाव होने तक किसानों की हर सभा-पंचायत के मंच से ऐसे नारों की गूंज सुनाई देती रहेगी और इसका मकसद सांप्रदायिक भाईचारे को तोड़ने वाली ताकतों को साफ लहजे में ये संदेश देना है कि इस 'जाटलैंड' पर दंगे करवाने की कोई जुर्रत न कर सके.
दरअसल, पश्चिमी यूपी का समूचा इलाका जाटलैंड कहलाता है और इस हिस्से में विधानसभा की करीब सौ सीटें हैं, जहां जाट और मुसलमान ही निर्णायक भूमिका में हैं. बरसों से इन दोनों समुदायों के बीच मुहब्बत और भाईचारे की परंपरा रही है. लेकिन 2014 के लोकसभा चुनावों से तकरीबन आठ महीने पहले अगस्त-सितंबर 2013 में मुजफ्फरनगर जिले के एक गांव से भड़की सांप्रदायिक दंगों की आग 21 दिन बाद ही बुझ पाई थी. इसमें 62 लोग मारे गए थे, जिनमें 42 हिंदू और 20 मुस्लिम थे और करीब सौ लोग जख्मी हुए थे. डर की वजह से सैकड़ों मुस्लिम परिवारों को अपना घर छोड़कर सुरक्षित ठिकाना तलाशने के लिए मजबूर होना पड़ा था.
इन दंगों के बाद जाट और मुसलमानों के बीच नफरत की जो दीवार खड़ी कर दी गई थी, वो अब काफी हद तक टूट चुकी है और इस खाई को पाटने में किसान आंदोलन की अहम भूमिका रही है. लेकिन किसान नेताओं को ऐसा खतरा लग रहा है कि सूबे के चुनावों से पहले कुछ सांप्रदायिक ताकतें दोबारा माहौल खराब कर सकती हैं. लिहाजा ऐसे नारों के जरिए हिंदू-मुस्लिम एकजुटता दिखाते हुए उन ताकतों के मंसूबों को पूरा नहीं होने देना इसका मकसद है.
हालांकि ये भी सच है कि जाटलैंड पर होने वाले जलसे या सभाओं में ये दोनों नारे लगने-लगवाने की शुरुआत तब हुई, जब चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने भारतीय किसान यूनियन की स्थापना करके किसानों को उनका हक दिलाने की आवाज बुलंद करना शुरू की थी. इसीलिए राकेश टिकैत को महापंचायत में लोगों को ये याद दिलाना पड़ा कि ये कोई नई बात नहीं है. उन्होंने कहा, 'टिकैत साहब के जमाने से ये नारे लगते थे. हर-हर महादेव और अल्लाहू अकबर के नारे इसी धरती पर लगते थे. ये नारे हमेशा लगते रहेंगे. दंगा यहां पर नहीं होगा. ये तोड़ने का काम करेंगे, हम जोड़ने का काम करेंगे. किसी गलतफहमी में मत रहना.'
किसान आंदोलनों और उसकी राजनीति पर नजर रखने वाले जानकार बताते हैं, 'पंचायतों में ये नारा प्रमुख रूप से लगता रहा है. पूजा-पाठ, हवन और नमाज भी होती थी. जामा मस्जिद के इमाम सैयद अब्दुल्लाह बुखारी टिकैत साहब के मित्रों में थे और किसान पंचायतों के दौरान कई बार मंच पर भी रहते थे. पंचायतों का संचालन गुलाम मोहम्मद जौला करते थे जो महेंद्र सिंह टिकैत के मित्र थे.' गुलाम मोहम्मद जौला पांच सितंबर की महापंचायत में भी मौजूद थे और इससे पहले 29 जनवरी को हुई पंचायत में भी थे जो गाजीपुर बॉर्डर पर राकेश टिकैत को धरने से हटाने की कथित कोशिशों के विरोध में आयोजित हुई थी.
उनके मुताबिक आठ साल पहले जाटों और मुस्लिमों के बीच हुए खूनी संघर्ष ने जो दूरियां पैदा की थीं, वे अब लगभग खत्म हो गई हैं. किसान आंदोलन में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुसलमानों ने जहां गाजीपुर बॉर्डर पर धरने पर बैठे राकेश टिकैत को अपना पूरा समर्थन दिया, तो वहीं 29 जनवरी को मुजफ्फरनगर में आयोजित पंचायत में गुलाम मोहम्मद जौला जैसे पुराने लोगों की मौजूदगी से भारतीय किसान यूनियन में हिन्दू-मुस्लिम एकता दोबारा देखने को मिली. पांच सितंबर को हुई महापंचायत में भी मुस्लिम समुदाय के लोग न सिर्फ भारी संख्या में मौजूद रहे, बल्कि उसे सफल बनाने में पिछले कई दिनों से वे ऐसे जुटे हुए थे, मानो घर में किसी का निकाह हो.
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