पाकिस्तान की बुनियाद है आतंक 'Operation All Out' महज दिखावा

पाकिस्तान अपने देश में आतंकवादियों का सफाया करने के लिए ऑपरेशन ऑल आउट शुरू करने की योजना बना रहा है. शुक्रवार को इसकी घोषणा की गई है. जिसमें यह कहा गया है कि पाकिस्तान में जितने भी प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन हैं, उसे ऑपरेशन ऑल आऊट के तहत जड़ से समाप्त कर दिया जाएगा. चूंकि पाकिस्तान के आर्थिक हालात अभी ठीक नहीं है. वह आईएमएफ से 1.1 बिलियन डॉलर के फंडिंग के लिए प्रयासरत है. ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि क्या पाकिस्तान का यह आतंकवादी संगठनों के सफाया करने की बात कहीं आईएमएफ के वित्तीय पैकेज को हासिल करने की दिशा में उठाया गया है? क्या यह सिर्फ दुनिया को दिखाने का लिए छलावा तो नहीं है? पाकिस्तान के आतंकवादियों के सफाया करने की रणनीति को कैसे देखा जाना चाहिए?
पाकिस्तान का निर्माण ही आतंकवाद पर हुआ था. पाकिस्तान के निर्माण के पहले डायरेक्ट एक्शन डे हुआ था. डायरेक्ट एक्शन डे को सामान्य भाषा में जिहाद कह सकते हैं. जिसमें लाखों लोग पहले ही दिन मारे गए थे. उसके बाद 1947 के अगस्त में जो जंग शुरू हुई थी और सितंबर और अक्टूबर तक लोग मारे जाते रहे थे और एक अनुमान है कि लगभग 35-40 लाख लोग मारे गये थे. ये डायरेक्ट एक्शन डे किसके खिलाफ हुआ था. ये उन लोगों के विरुद्ध था जो लोग मुसलमान नहीं थे. इस्लामी आतंकवाद है वो किसके खिलाफ होता है, जो लोग मुसलमान नहीं हैं या जो सच्चे मुसलमान नहीं हैं. जो गैर इस्लामी देश हैं और वहां जो मुसलमान रह रहे हैं उनके खिलाफ आतंक होता है और जो इस्लामी देश हैं वहां पर इसलिए होता है कि सच्चा मुसलमान कौन है, शिया की सुन्नी. पाकिस्तान में शियों के खिलाफ, अहमदियों के खिलाफ, सुजाओं के खिलाफ हमले होते रहते हैं. मस्जिदों में ब्लास्ट होते रहते हैं. नमाज के समय और रमजान के वक्त में भी होता है. ऐसे में जिस देश की बुनियाद ही घृणा पर है, जिस देश की बुनियाद ही इस्लामिक आतंकवाद पर है.
वह इस्लामी आतंकवाद के खिलाफ कभी भी कदम उठाने के खिलाफ असमर्थ है क्योंकि यह उसके अस्तित्व के खिलाफ चला जाएगा. लेकिन चूंकि पूरी दुनिया से अब वह कट रहा है, उसकी आर्थिक स्थिति खराब हो रही है. वह अपने ही ट्रेंड आतंकवादियों से कुछ वैसा ही करेगी कि जैसे फिल्म हाथी मेरे साथी में राजेश खन्ना अपने ट्रेंड हाथी को भेज देता है. वह हिरोइन को डराता है और उसके बाद में हीरोइन से दोस्ती कर लेता है. लेकिन हाथी तो उसका अपना ही था. हाथी ने हिरोइन को उतना ही डराया जितना उसे डराने की जरूरत थी. पाकिस्तान में जो आतंकवादी हैं वे वहां की सरकार के द्वारा न सिर्फ पोषित हैं बल्कि उसकी बुनियाद ही आतंक पर है. उसके नौकरशाही, विश्वविद्यालय और उसकी सेना और संस्थाएं आतंकवाद पोषित हैं. जिस किसी को भी इस पर संदेह हो उसे यह सवाल पूछना चाहिए कि पाकिस्तान का निर्माण किस आधार पर हुआ था ? क्या उसमे इस्लामी आतंकवाद नहीं था ?
क्या वो आज के आतंकवाद से अलग था सैद्धांतिक तौर पर ही नहीं कर्म के रूप में भी? आज जब संकट आन खड़ा हुआ है तो वो उन लोगों से संगठनों से यह आग्रह करेगा कि आप लोग कुछ समय के लिए शांत हो जाइए, किसी दूसरे काम में लग जाइए. चूंकि यह रणनीति की बात है. काफिर अगर गैर मुस्लिम लोग हैं उनको हम झांसे में लाएंगे, उनसे पैसा लेंगे. फिर इन्हीं पैसों से हथियार खरीदेंगे और धीरे-धीरे अपने पांव पर खड़े हो जाएंगे, मजबूत हो जाएंगे और फिर इनको मारेंगे. फिर जिहाद को आगे बढ़ाएंगे. कहा गया है कि कयामत के दिन हम विजयी होंगे और कयामत के दिन तक हम लोग खड़े रहेंगे और पूरी दुनिया को मुसलमान बना देंगे. ये उनका सिद्धांत है. जब तक इस सिद्धांत को बुद्धिजीवी खास करके जो गैर मुस्लिम बुद्धिजीवी हैं वो लोग नहीं समझेंगे तो हम कभी भी उनकी रणनीति को नहीं समझेंगे.
कोई कह सकता है कि वे तो मुसलमानों को भी मारते हैं. लेकिन वो इसलिए मारते हैं कि कौन शुद्ध मुसलमान है और कौन नहीं. कौन सुन्नत को मान रहा है कौन सुन्नत को नहीं मान रहा है. जब आपकी बुनियाद लड़ाई पर हो और कोई दुश्मन ही नहीं रहे तो आप कैसे जीवित रहेंगे. दुश्मन नहीं तो आप नहीं. यहां पर पाकिस्तान के समझ आईएमएफ ने कुछ ऐसी शर्ते रख दी हैं जिस कारण पाकिस्तान इस तरह की पॉलिसी पर बात करने को मजबूर हुआ है. चूंकि आईएमएफ और विश्व बैंक में जिन लोगों का शेयर है उन्होंने ऐसी शर्ते रख दी हैं तो अब वह ऑपरेशन ऑल आऊट चला रहा है? वह पहले से इस तरह का एक्शन क्यों नहीं लिया. पाकिस्तान एक मात्र देश है जो पूरी तरह से मिलिट्री के हाथ में है. बाकी देशों की अपनी मिलिट्री है लेकिन पाकिस्तान के बारे में यह बिल्कुल अलग है. वह देश ही मिलिट्री के हाथ में है.
वहां कि मिलिट्री क्या है वह आतंकवादियों का एक फॉर्मल ट्रेनिंग सेंटर है. हमें इन चीजों को ठीक से समझने की जरूरत हैं. चूंकि पाकिस्तान हमारा पड़ोसी है. पड़ोसी हमारे चाहने और नहीं चाहने से नहीं होता है. हमें उसके साथ डील करना सीखना पड़ेगा. हमसे ज्यादा खराब स्थिति में तो इजराइल है. उसके तो तीनों तरफ दुश्मन ही हैं. फिर भी इजरायल टिका हुआ है. सिर्फ इसलिए है, क्योंकि वह अपने दुश्मनों की मानसिकता को समझता है. वह तकनीक में इतना आगे है कि अब उसके दुश्मन भी उसके आगे झुकने लगे हैं. हमें भी उन मामलों में सतर्क रहने के साथ ही नीति बनानी चाहिए.
दुनिया में दो ही स्थिति होती है. पहला या तो युद्ध होता है और दूसरा उसकी तैयारी होती है. युद्ध की तैयारी को शांति कहते हैं और जब युद्ध चल रहा होता है उसे शांति की वार्ता कहते हैं. अगर हम हजारों सालों का इतिहास उठाकर देखें तो पाएंगे कि जिन समाजों ने, देशों ने ऐसा नहीं किया उनका अस्तित्व ही मिट गया. छठी शताब्दी के पूर्व अरब में कौन लोग थे हम लोग कितना जानते हैं. उनकी स्वीकृति क्या थी, ज्ञान-विज्ञान क्या था, उनके गीत क्या थे, साहित्य क्या था उनके बार में कितना जानते हैं. क्योंकि नहीं पता है क्योंकि वो समाज बहुत ज्यादा सुसंगठित नहीं था. वह समाज युद्ध और शांति का जो गहन रिश्ता है उसको नहीं जानता है. युद्ध और शांति एक ही सिक्के के दो पहलू होते हैं. इसी के इर्द-गिर्द राष्ट्रीय नीतियां होती है, आर्थिक, सांस्कृतिक, शिक्षा, संविधान, विदेश नीति होती है.
1947 में अपने देश में 32 ऑर्डिनेंस फैक्ट्री थी. यानी 1947 में इंग्लैंड, अमेरिका, फ्रांस और कोई एक और देश इनको छोड़ कर कोई भी देश दुनिया में सैनिक के मामले में संपन्न नहीं था. भारत की तरफ से 24 लाख लोग अंग्रेजों के लिए द्वितीय विश्व युद्ध में लड़े थे. द्वितीय विश्व युद्ध जो जीता गया वो इंग्लैंड, अमेरिका और फ्रांस ने नहीं जीता था. वह भारत के सैनिकों ने जिताया था. ऑर्डिनेंस फैक्ट्री में उसके बाद हमने जूता बनवाना शुरू कर दिया. हमने उसका रणनीतिक तौर पर इस्तेमाल नहीं किया. जब 1948 में पाकिस्तान ने हम पर हमला किया हमने रणनीति तौर पर उसे जवाब नहीं दिया. उस युद्ध में हमारे सैनिक तो जीत गए, लेकिन हमारे नेता हार गए.
1962 में चीन से हमारे सैनिक युद्ध जीत गए लेकिन टेबल पर नेता हार गए क्योंकि हमने अपनी वायुसेना को हमला करने की अनुमति नहीं दी थी. 1971 में हमने बांग्लादेश तो बना दिया क्या हमने पीओके पर अपना कब्जा किया नहीं, वहां भी हमारे सैनिक जीत गए और नेतृत्व हार गया. जब हम आतंकवादियों के बारे में बात करें तो हमें यह देखना होगा कि आतंकवादी सरकारों से कितने जुड़े हैं. वहां के सैनिक से कितने जुड़े हैं. उनका नेताओं से कितना जुड़ाव है. पाकिस्तान में सैनिक का, नौकरशाही का, राजनीति का और मजहब का सभी का वहां के आतंकवाद से गहरा नाता है. ऐसे में आप उसको खत्म नहीं कर सकते हैं. आतंकवाद खत्म मतलब पाकिस्तान खत्म. ऑपरेशन ऑल आऊट महज एक दिखावा है और कुछ नहीं.
[ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है.]




























